शिखा गुस्से में उबल रही थी, सारी जिंदगी बीता दी, इनलोगो की खुशी में, उसका आज ये सिला मिला.., “आप बैकवर्ड हो, पढ़ी -लिखी होकर भी इतने दकियानूसी विचार धारा… अरे मॉम दुनिया चाँद पर पहुँच गई और आप अभी तक जांति -पाति के बोझ को ढो रही हो,”बेटे की बात रह -रह कर शिखा को चुभन पैदा कर रही…।
छब्बीस साल के रिश्ते पर एक साल पहले बना रिश्ता भारी पड़ रहा, कल तक की “दुनिया की बेस्ट मॉम ” आज दकियानूसी दिखने लगी..। बेटे तरुण को साथ काम करने वाली सहकर्मी ” रोजी “पसंद आ गई, रोजी को तरुण की सादगी और यथार्थ में जीने की आदत भा गई, दोनों तरफ की सहमति के बाद घरों में बात गई,
रोजी के माता -पिता को कोई आपत्ति नहीं थी, उन्हें तरुण हर तरह से रोजी के उपयुक्त लगा, उधर रोजी शिखा और अविनाश को पसंद नहीं आई, नापसंद का कारण अपनी जाति का न होना और रोजी का पहनावा…।
लोग क्या कहेंगे, जरूर लड़के में कोई खोट होगी तभी जाति में कोई लड़की नहीं मिली,शिखा को यही चिंता खाये जा रही थी, ऊपर से रोजी का स्कर्ट और जीन्स का पहनावा उसे और परेशान कर रहा था, पर बेटे की जिद की वजह से उन्हें हाँ कहनी पड़ी..।
कुछ दिन बाद बुझे मन से शिखा शादी की तैयारी करने लगी, रोजी अक्सर उसे फोन करती, शिखा का उससे बात करने का मन न करता, हूँ… हाँ कर रख देती…। अविनाश ने समझाया भी,” अब शादी तो हो ही रही तो क्यों न खुश हो कर करें, वैसे लड़की को निकट से जानने पर वो अच्छी ही लगी, तुम भी उसे खुले मन से अपना लो…।”
लड़की वालों की एक ही मांग थी लड़की की शादी चर्च से करेंगे, शिखा अपने रीति -रिवाज़ से करने पर अड़ी थी, तब रोजी ने ही आगे बढ़ अपने माँ -बाप को समझाया “शादी किसी भी रिवाज़ से हो, वो शादी ही होगी, अतः आप लोग माँ का कहना मान लें, क्योंकि अब मुझे उस घर में उनके रीति -रिवाज़ निभाने है “..।
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रोजी को बात से अविनाश और तरुण के मन में उसका कद ऊंचा हो गया, शिखा का पारा गिरा जरूर पर पूरी तरह गया नहीं…।
नीयत समय पर शादी हो गई, रोजी ने हर विवाद वाली जगह पर कभी इसको तो कभी उसको मान देकर समझदारी दिखाई। शिखा को उसकी खुबियाँ दिख रही थी पर विश्वास अभी भी नहीं था।क्योंकि रोजी का चर्च जाना या मॉर्डन ड्रेस पहनना उन्हें पसंद नहीं आ रहा था…। रोजी ने उल्टी -सीधी साड़ी पहनने की कोशिश की, पर बात न बनी, उसकी परेशानी देख अविनाश जी ने उसे समझाया “तुम बहू जरूर हो पर तुममें हम बेटी की छवि देखते है, तुम्हे जो आरामदायक कपड़े लगे वही पहना करो…।”रोजी फिर अपने पुराने पहनावे पर आ गई, हाँ शिखा और अविनाश का बहुत ख्याल रखती थी, शिखा भले ही कम बात करें पर रोजी दिन भर उसके साथ लगी रहती…।
अड़ोस -पड़ोस और रिश्तेदारी में खूब बातें बन रही थी..। एक दिन रोजी टीशर्ट -शॉर्ट्स में घूम रही थी, पड़ोसन ने देखा तो शिखा से बोली “अरे शिखा,कैसी बहू लाई हो जिसे न तो बड़ो की इज्जत का ख्याल है न ही मान मर्यादा का….,, समझा दो उसे ये छोटा पैंट और स्कर्ट ससुराल में नहीं पहनना चाहिए,। अब लड़की नहीं किसी की बहू और पत्नी है…, हमारी बहुओं को देखो क्या मजाल जो सर से पल्ला सरक जाये…..।
आवाज इतनी तेज थी शिखा को ही नहीं घर में सबको सुनाई, रोजी की ऑंखें भर आई, वो वहाँ से हट कर कमरे में चली गई…।
“अरे दीदी किसकी बहू इज्जत करती है किसकी नहीं, ये पहनावे से कैसे समझा जा सकता है…, जहाँ तक मेरी बहू का सवाल है, वो पल्लू रखें बहुओं की तरह पीछे चुगली तो नहीं करती, इज्जत तो व्यवहार में, आँखों में होती, पहनावे में नहीं …। मेरी बहू शॉर्ट्स जरूर पहनती है पर उसके विचार या संस्कार शॉर्ट्स नहीं है,, खबरदार जो आज के बाद मेरी बहू के बारे में कुछ कहा….।”शिखा की बुलंद आवाज मोहल्ले में गूंज उठी,।
.. रोजी दौड़ कर आई और शिखा के गले लग गई,”माँ, मै अब साड़ी पहनने की कोशिश करुँगी,किसी को कुछ कहने का मौका नहीं दूंगी “
“बेटा साड़ी पहनना सीख लो, पर तुम्हे जो पहनना है पहनो, इज्जत आँखों की होती है, पहनावे की नहीं..,.”शिखा ने प्यार से रोजी को देखते कहा…।दो जोड़ी ऑंखें मुस्कुरा उठी,नजरिया अच्छा होना चाहिए…।
क्या कहते हो दोस्तों, क्या सच में पहनावा, इज्जत का मापदंड होता है, या आँखों की शर्म और व्यवहार की शालीनता इज्जत का मापदंड होता है… क्या कहते हो आप सब…??
—=संगीता त्रिपाठी
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