इतना गुमान ठीक नहीं – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

कहते हैं न कि जीवन में सब दिन किसी का घमंड रहता नहीं है ‌‌ कभी न कभी टूटता ज़रूर है और जिसको सबसे ज्यादा बेइज्जत किया है उसी के सामने टूटता है ।

                      ऐसे ही रमा गुमान में हर वक्त रहती थी घमंड से चूर। अपने आगे किसी को कुछ समझती ही न थी। देखने सुनने में थोड़ी अच्छी थी ,रूप रंग पर क्या घमंड  ये तो ईश्वर का दिया हुआ वरदान है लेकिन क्या करें लोग उसपर भी घमंड करते हैं । वैसे ही रमा भाभी भी थी गोरा रंग और हर समय बनी ठनी रहना हमेशा अपने को टिपटाप दिखाना उनकी आदत थी।

पति की भी अच्छी कमाई थी और दो बेटे थे , पढ़-लिख कर नौकरी कर रहे थे।वो पति को भी कुछ नहीं समझती थी। एक देवर था ससुर नहीं थे सास थी जो सब साथ में ही रहते थे ।देवर संजय की शादी की तरफ बढ़ा भाई कोई ध्यान ही न देता था मां कई बार कह चुकी थी बेटा राजीव छोटे भाई की भी शादी करने की सोच मेरे जीते-जी उसका भी घर बस जाएं तो सुकून से भर सकूंगी।जब संजय के बड़े भाई भाभी ने ध्यान नहीं दिया तो एक बेटी भी थी उससे कहा कि छोटे भाई के लिए कोई लड़की देखो। फिर उसी ने संजय की शादी करवाई।

                      अब संजय की शादी हो गई सौम्या से । अपने नाम के हिसाब से वो सौम्य ही थी । वैसे तो देखने सुनने में सौम्या भी अच्छी थी बस रंग थोड़ा सांवला था। लेकिन यौवन में तो रंग चाहे जैसा भी हो हर लड़की सुंदर दिखती है ।कद काठी में भी अपनी जेठानी रमा से काफी मिलती जुलती थी ।भूल से भी कोई कह देता था कि रमा तुम्हारी देवरानी तो तुमसे मिलती जुलती है तो रमा बुरा मान जाती क्या कह रही हो कहां मैं कहां वो ,वो तो मेरे पैर की धोवन भी नहीं है अब आगे से उसकी तुलना मेरे से न करना।

               रमा      बात बात में सौम्या पर छींटाकशी करती । सौम्या की शादी के बाद पहली दीवाली पड़ी तो उसके मायके से घर में सभी के लिए कपडे और जेठानी के लिए भी साड़ी आई जब सौम्या रमा को साड़ी देने गई तो तो बोली भाभी मां ने ये साड़ी आपके लिए भेजीं है । साड़ी ,ये कैसी साड़ी है मैं तो नहीं पहनती ऐसी साड़ी रमा बोली, हां तुम पहन सकती हो क्यों कि जिस रंग की तुम हो उसी रंग की साड़ी भी दे दी है तुम्हारी मां ने ।

कुछ तो ढंग के कपड़े खरीदा और पहना करो मुझे तो तुम्हारे साथ चलने में भी शर्म आती है । सौम्या नरम दिल और संस्कारी  लड़की थी वो रमा को कोई जवाब न देकर वापस कमरे में आ गई । चुपचाप बैठे देखकर संजय ने सौम्या से पूछा क्या हुआ साड़ी लेकर गई थी न भाभी के पास उन्होंने तुम्हारा अपमान ही किया होगा सौम्या के आंख में आंसू आ गए ।मत रो सौम्या वो भाभी ऐसी ही है ।

               आज घर में जेठ जेठानी के कुछ दोस्त अपनी फैमिली के संग आए हुए थे तो रमा ने सौम्या से कुछ नाश्ता बनाने को कहा । सौम्या पाक-कला में होशियार थी और अच्छा खाना बनाती थी ये बात रमा जानती थी लेकिन तारीफ कैसे कर दें । सौम्या ने दही बड़े ब्रेड रोल र टमाटर का सूप बनाया।

लेकिन तुम बाहर लेकर उन लोगों के सामने मत आना ऐसी हिदायत दी सौम्या के लिए । मेहमान आए और सभी ने नाश्ता किया और खूब तारीफ किया । तभी रमा की सहेली बोल बैठी भी कहां है देवरानी हमें भी तो मिलवाओ ,अरे उसके तो सिर में बहुत दर्द था तो वो कमरे में आराम करने चली गई है । पाक-कला में काफी होशियार थी सौम्या लेकिन सौम्या की कोई तारीफ़ करे ये रमा को पंसद नहीं था ।

              यूं ही समय बीतता गया अब रमा के बड़े बेटे की शादी आ गई । कुछ मेहमान रमा के मायके से आ रहे थे ।उनकी टे्न रात के बारह बजे आनी थी सबके लिए खाना बना कर रखना था ‌। वैसे तो खाना बनाने वाली लगी थी लेकिन उसके साथ किसी को लगना पड़ता था वो अकेले नहीं कर पाती थी ।तो साथ में सौम्या करवा रही थी ।अब इतने सारे लोगों की रोटी बनानी थी तो सौम्या ने कहा मालती लाओ मैं बेल देती हूं रोटी और तुम सेंक लो ।

रात को खाने के लिए करीब दस लोगों की रोटियां सेंकनी थी ।सो सौम्या ने बड़ी बड़ी और बिल्कुल पतली पतली रोटियां बेली , सौम्या ने अपनी मां से सीखा था वो भी बहुत अच्छी और खूब बड़ी बड़ी रोटियां बनाती थी ।रात में सब खाना खाकर सो गए  लेकिन जब सुबह नाश्ते के समय सब इकट्ठा हुई तो रमा के जीजा जी पूछने लगे भी रमा ये बताओ कि रात को रोटियां किसने बनाई थी क्यों जीजाजी सही नहीं थी क्या करें नहीं लाजवाब थी इतनी मुलायम और इतनी पतली रोटियां ऐसा लग रहा था कि रूमाली रोटी खा रहा हूं

सब चुप कोई न बोल रहा है क्योंकि रमा ने देखा था सौम्या को रोटी बनाते पर बता नहीं रही थी तभी खाना बनाने वाली मालती बोली पड़ी छोटी भाभी ने बनाई थी रोटियां ।अरे नहीं मालती ने बनाई थी रमा कहने लगी ।नहीं भाई साहब मैंने तो सिर्फ सेंकी थी मालती बोली बेली तो छोटी भाभी ने थी। बहुत अच्छी भाई सौम्या बहुत अच्छी रोटियां थी रमा के बड़े भाई और जीजा जी बोले ।अब रमा का चेहरा देखने लायक था कि सौम्या की कैसे तारीफ हो गई।

          मोहल्ले में निकलती तो जो भी उनकी जान पहचान वाला मिलता उससे यही बोलती तुम लोग तो घर में बैठी रहती हो देखो मेरा पति हुई रोज घुमाने ले जाता है ।और फिर बाहर ही खा-पीकर आते हैं । वैसे भी एक दिन खाना बनाने वाली नहीं आती तो घर में खाना न बनता बाहर ही खाया जाता।

इस बात का जिक्र वो बड़े शान से करती थी कि मैं नहीं बनाती खाना वाना मैं तो बाहर खाती हूं ।दो बेटों का भी बड़ा घमंड था मेरे तो दो दो हीरा जैसे बेटे हैं एक बार किसी ने उनको जवाब दे दिया था कि सबके बेटे अपने मां बाप के लिए हीरा होते हैं भाभी जी केवल आपके ही नहीं है ।                        समय बीतते बीतते रमा के दोनों बेटों की शादी हो गई ।और सौम्या के भी दो बच्चे हैं गए ।घर छोटा पड़ने लगा हलांकि रमा के बच्चे बाहर थे लेकिन आते जाते रहते थे तो जगह की जरूरत पड़ती थी ।

इसलिए रमा और सौम्या ने अलग-अलग रहने का फैसला कर लिया ।सास की कुछ समय पहले मृत्यु हो गई थी।समय के हिसाब से और लग्जरी लाइफ जीने लगी रमा और अब सौम्या को गाड़ी और एसी की धौंस दिखाने लगी ।मैं तो बिना एसी के सोती नहीं हूं और बिना गाड़ी के कहीं जाती नहीं हूं ।अब तो जमीन पर पैर भी नहीं रखना। दिनभर आराम और नौकरों-चाकरों से घिरे हुए रमा को गंभीर बिमारियों ने जकड़ लिया ।शरीर भारी होता गया और एक एक नई बीमारी घर करती गई ।हर हफ्ते अस्पताल पहुंच जाती ।

           उधर सौम्या सब काम खुद से ही करती और अपने आपको चुस्त-दुरुस्त बनाए रखा था।इस बात पर भी रमा सौम्या को नीचा दिखाती कि तुमने कोई नौकर नहीं रखा है । फिर उसका नतीजा ये हुआ कि इस तरह की लाइफ स्टाइल से एक दिन उनका शुगर और वी पी इतना हाई हुआ कि लकवा मार गया।

अब तो हर चीज को मोहताज हो गई ।सारी सुंदरता धरी रह गई ।बेटों का बड़ा घमंड था बेटियां न होने पर बहुत खुश थी । बेटे बहू के एक हफ्ता रूककर नौकरों के भरोसे छोड़कर चले गए कोई करने को तैयार नहीं ।अब वही सौम्या जिसका हर पल अपमान करती थी , अपने से कमतर समझती थी सेवा कर रही है देखभाल कर रही है ।आज सौम्या से रमा कह रही है काश, एक बेटी होती तो हमेशा मेरे पास रहती ।बेटों का गुमान उतर रहा था ।

              अब रमा भाभी वाकर के सहारे थोड़ा थोड़ा चलने लगी है । सौम्या ने कहा भाभी अब आप कोशिश करो धीरे धीरे ठीक हो जाओगी हां सौम्या ।आज रमा भाभी ने अपना गुमान पीछे छोड़ कर सौम्या से कहा तुमने कितना ख्याल रखा मेरा सौम्या मैं तुम्हारा कितना अपमान करती रही मुझे माफ़ कर दो सौम्या। सौम्या बोली ठीक है भाभी घर के लोग ही तो एक दूसरे के काम आते हैं न इसमें माफी मांगने की जरूरत नहीं है।

         सौम्या सोचने लगी न जाने क्यो लोग इतना गुमान करते हैं । परिस्थितियां कब बदल जाए कोई नहीं जानता । इसलिए हमेशा सामान्य रहे । अच्छे दिनों में इतराए नहीं और बुरे दिनों में घबराएं नहीं ।समय तो बदलता ही रहता है अच्छे और बुरे दिन तो आते जाते रहते हैं ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

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