आकाश, आकाश जोर जोर से आवाज लगाने पर भी वो बस अंगड़ाई ले रहा था।
उठ जाओ धूप पर्दे को चीरती हुई आंगन तक आ गई है।
फिर वो बड़बड़ाने लगी ” पहले तो रात रात मोबाइल देखते रहेंगे फिर सुबह इन्हें उठाते रहो।
सारे रात्रि चर प्राणी होते जा रहे है।
किसी से बात करने को कह कर तो देखो हमारे पास समय कहा है दिन भर तो कोल्हू के बेल की तरह लगे रहते है।”
फिर ठंडी श्वास लेते हुए सोचने लगी वो समय ही ठीक था
मोबाइल नहीं होते थे तो हर गर्मी की ,सर्दी की छुट्टियों में किसी न किसी रिश्ते को बुन आते थे।
अब तो दूरियां कम होनी चाहिए तो ये अहम आसमां को चीरने लगे है।
ज्यादा कुछ कह दो तो “क्यों उसके पास टाइम नहीं है मैं फालतू बैठा हु ?”
जुमला सुनने को मिल जाएगा।
इतना सब कुछ सोचते सोचते ही सरस्वती ने आकाश का कमरा साफ कर दिया था।
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पर आकाश अभी भी खर्राटे ही खींच रहा था।
सरस्वती ;” सुनो कमला , आकाश का कमरा छोड़ दो बाकी साफ कर दो।”
कमला ;” बुरा मत मानिएगा दीदी पर आकाश भैया अब बच्चे तो है नहीं 22 वर्ष के बच्चे के बाप है।
कुछ जिम्मेदारियां इन्हें भी ओढ़ने दीजिए।
तभी तो जीवन को समझेंगे ।
वैसे छोटे मुंह बड़ी बात है पर आप ओर हम हम उम्र ही है।
मेरे बच्चे आपके आकाश से बड़े ही होंगे फिर रुकी अपनी साड़ी के पल्लू से पसीना पहुंचा और बोली मै तुलना नहीं कर रही हु।
पर बहु,पोते पोतियां घर में खिलखिलाते है ना तो इन उदास दीवारों में भी जान आ जाती है।
सरस्वती धम से सोफे पर बैठ गई और बोली ” मेरे घर के हर एक हालात से तुम परिचित हो “
बहु रीवा ने समय से बच्चे को अपने पैरो पर खड़ा कर दिया
ओर अच्छा भी किया।
पर देखो ना इसका इगो?
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कमला :” तो आप बहु का साथ क्यों नहीं देती?”
सरस्वती का चेहरा एकदम उदास हो गया आखों में नमी सी आ गई भर्राये गले से बोली ” मैं तो आज भी उसी के साथ हु”
पर मां की ममता है ना?
ये मुझे इसके पास रखती है।
इसके पापा भी ऐसे ही थे ,बहुत सोचा था की इसे उन जैसा नहीं बनने दूंगी पर खून का असर ……
कमला कांच के गिलास में पानी ले आई ” ये लीजिए दीदी
आप पानी पीजिए “
बच्चो पर थोड़ी थोड़ी ज़िम्मेदारी नहीं सौंपते है ना तो वो कुछ समझ ही नहीं पाते।
हर मां , बाप बच्चो को अपनी छत्र छाया में रखना चाहता है ताकि उन्हें सकून मिल सके।
पर ……
उन्हें जिम्मेदार बनाने का फर्ज भूल जाता है।
तभी आकाश के कमरे से खटपट की आवाज आते ही कमला अपने काम पर लग जाती है।
सरस्वती :” आकाश उठ गया बेटा मैं चाय बना देती हु तू फ्रेश हो जा।”
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आकाश ;” मम्मी आप रिया से बात करो तो उसे कह देना मैने वैभव के लिए लड़की देख ली है,रिश्ता पक्का ही समझो।
सरस्वती चौक कर बोली ;” तुमने वैभव से बात की ?”
आकाश ;” क्यों ?
बाप हु उसका उससे हर बात पूछूंगा?”
पापा जी ने कभी हमसे कोई बात पूछी ?
जो किया अपनी मर्जी से किया तो अब …….?”
सरस्वती आकाश के सामने हाथ बांधे खड़ी होकर बोलने लगी ;” हां तो तभी तो तीसरी पीढ़ी आ गई पर ये दीवारें अभी भी उदास है।
तुम लोगों का इतना गुमान ठीक नहीं परिस्थियां कब रंग बदल ले पता ही नहीं चलता।
वो जमाना अलग था चल गया।
अब जमाना अलग है।
वैभव ने एक लड़की पसंद कर ली है ।
मैं देख आई हु मुझे पसंद है।
हर चीज थोपो मत ।
हां , कोई बात गलत हो तो समझाओ उसको रीजन बता कर कन्वेंस करो।
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पर अगर वो सही है तो उसे खुशी से जीने दो।
जैसे तुम्हारे पापा ने किया वही तो तुम कर रहे हो बस पीढ़ी
दर पीढ़ी यही चलेगा।
तुम तो एक कदम ओर आगे हो।”
आकाश ;” मतलब “?
सरस्वती ;” कम से कम तुम्हारे पापा ने मुझे तो कुछ नहीं कहा तुमने तो रिया को भी ……,,
कही अपनापन पनपने ही नहीं दिया वो तो रिया संस्कारी थी
जो अब तक इन दीवारों में रंग बिखेरने की चेष्टा कर रही है।
खैर अब मैंने उसे मना कर दिया कह दिया ” तुम अपनी जिंदगी आराम से जियो आकाश का दिल पत्थर का है
वो मुझे ही नहीं समझा तुम्हे क्या समझेगा ?
आकाश ;” आप मेरी मां हो या उसकी?”
सरस्वती ये कहते हुए बिल्कुल नहीं झिझकी ;” उसकी “
आकाश के अहम ओर वहम का महल धारशायी हो चुका था।
दीपा माथुर