इस्तीफ़ा – रंजना बरियार

चाँद खिड़की से झाँक रहा है… मानों उसका चाँद उसकी आँखों में झाँक कर कह रहा हो..’उठ सुमी यहाँ क्या कर रही? चलो, चाँद के उस पार चलें’… नहीं , ये तो मेरा चाँद नहीं.. ये मौन है.. शीतलता देता है.. पर साथ चलने को नहीं कहता…पर मेरा चाँद तो शीतलता देता है…अग्नि को तुषार में बदल देता है…हाँ साथ चलने को तो वो भी नहीं कहता.. पर उसकी छाँव तले दुनिया दिखती है..चाँद के उस पार भी दिखता है…

                 साकेत कॉलिंग… सुमी ने घड़ी देखा.. दो बज रहे हैं… इतनी रात गये साकेत क्यों कॉल कर रहा है… बग़ल में मम्मी सो रही हैं…वॉशरूम जाकर उसने तुरंत फ़ोन पिक किया..” हाय.. क्या हुआ साकेत ? इतनी रात को क्यों कॉल किया?”

”सुमी, बात ही ऐसी है…मैंने एक मंदिर में बात की है..  हमारी शादी वहाँ हो सकती है… पर सुबह के चार बजे तक ही… तुम अभी घर से निकल  कर आ जाओ… हम शादी कर लेते हैं, फिर सुबह होने के पहले तुम्हें घर छोड़ दूँगा…” साकेत ने एक साँस में कह डाला..

फिर उसने आगे कहा,… ‘ फिर दूसरे दिन हम कोर्ट मैरिज कर लेंगे… और प्रमाण पत्र के साथ तुम्हारे मम्मी- पापा के सामने हाज़िर हो जाएँगे!”…. ‘कम फ़ास्ट स्वीट हार्ट.. आइ एम वेटिंग आउट साइड योर होम… ‘। ‘ऐसे कैसे साकेत…मम्मी… पापा पे क्या बीतेगी..?’… सुमी ने सहमते हुए कहा… नहीं.. सुमी.. अगर हमें शादी करनी है , तो इसके सिवा कोई उपाय नहीं… साकेत ने दृढ़ता से कहा। ठीक है.. कह कर सुमी ने फ़ोन काट दिया…



       फेस वाश कर वाश रूम से निकली, मम्मी को देखा.. मम्मी  सो रही थीं… नहीं , उन्होंने कुछ नहीं सुना..मम्मी मुझे माफ़ करना… मैंने आज तक आपसे और पापा से कुछ नहीं छुपाया.. पर आज आपसे बिना बताए ज़िंदगी का सबसे बड़ा निर्णय लेने जा रही हूँ…पापा के कमरे की ओर कदम नहीं बढ़ रहे… पर बग़ैर माफ़ी माँगे नहीं जा सकती … पापा तो गहरी नींद में सो रहे हैं…रात के दो बजे कौन जगा रहता है…पापा आप मुझे अकेले ऑफिस तक नहीं जाने देते हैं…बैंगलोर में मेरी नौकरी हुई तो आपने भी अपना स्थानांतरण करवा लिया… पर आज आपकी ये बेटी अकेली जा रही है..अपनी ज़िंदगी का सबसे बड़ा काम करने… माफ़ करना…आपलोग मेरी शादी के लिए तैयार होते, तो मैं ऐसा निर्णय क़तई नहीं लेती…फिर अपने कमरे में.. दर्पण में ख़ुद को निहारती…’क्या मैं वाक़ई खुश हूँ?…कहते हैं दर्पण झूठ नहीं बोलता.. फिर ख़ुशी की रेखाएँ क्यों नहीं दिखतीं?.. जिस ख़ुशी के लिए दो वर्षों से मैं संघर्ष कर रही हूँ.. आज वो चलकर मेरे दरवाज़े आई है… पर ख़ुशी के वजाय चेहरे पर डर के भाव दिख रहे हैं… कुछ समझ में नहीं आ रहा… खैर चलो, अब ये सब क्या सोचना… एक बार मम्मी से मिल लूँ..

जब मैं किसी बात से परेशान होती हूँ, मम्मी मेरी पेशानी चूम कर हिम्मत बढ़ाती हैं..मम्मी…पेशानी की ओर झुकती हुई बिटिया को मम्मी ने गले लगा लिया.. ” बेटा साकेत को बुलाओ… हम तुम्हारा धर्म परिवर्तन करवाकर तुम्हारी शादी करवा देंगे.. छुप कर मत करो… ” कह कर फूट – फूट कर रोने लगीं.. पापा भी उठकर अपने कमरे से आ गए… उन्हें समझते देर नहीं लगी… ‘ बेटा मम्मी ठीक कह रही हैं..’

सुमी ने घड़ी देखी.. साढ़े तीन…दरवाजा खोला… पापा भी पीछे पीछे… साकेत कहीं नज़र नहीं आ रहा.. फाटक के बाहर निकल कर देखा… पापा भी पीछे पीछे… साकेत का कहीं नाम नहीं…

सुमी ने पापा की तरफ़ देखकर सर हिला दिया…पापा ने गले लगा लिया.. सहारा देकर बिटिया को अंदर लेआए..

        सुबह नौ बजते ही सुमी ने कम्पनी को इस्तीफ़ा प्रेषित कर दिया।

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रंजना बरियार

 

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