Moral stories in hindi : शादी के अगले साल ही शिखा मां बनने जा रही थी।ससुराल में सास सबसे ज्यादा खुश थी।इकलौते बेटे की औलाद के सुख का मोह उनकी आंखों से झलकता था।स्थानीय चिकित्सालय में आज से सत्ताइस साल पहले सोनोग्राफी की सुविधा उपलब्ध नहीं थी।
शिखा हर तीन महीने में कंपनी मुख्यालय (बिलासपुर)के अस्पताल में सोनोग्राफी करवाने जाती थी। परिवार में ननद, ससुरजी,सास और पति थे।पूरे आठ महीने सभी ने पूरा ख्याल रखा था,शिखा का।शिखा घर के काम सुचारू रूप से कर रही थी।
नौंवा महीना लग चुका था,तभी ससुर जी के पोस्टेड ग्लैंड का ऑपरेशन हुआ।पूरे एक महीने अस्पताल में ही थे।रात में सास सोतीं थीं,उनके साथ।एक दिन सुबह-सुबह अस्पताल से आकर रोज़ की तरह जब उन्होंने शिखा से बच्चे की हलचल के बारे में पूछा तो शिखा सहमते हुए बोली कि रात से हलचल समझ में नहीं आ रही।
आनन-फानन में अस्पताल जाने पर पता चला कि बच्चे को ऑक्सीजन की कमी हो गई है,शिखा के जरिए उसे ऑक्सीजन दिया गया।सास को पूरी उम्मीद थी कि हलचल शुरू हो जाएंगी,पर ऐसा नहीं हुआ।अगले पांच दिन डॉक्टर ने इसी दिलासे में निकाल दिए कि हलचल होगी।आखिरकार छठवें दिन मृत बच्चे की नार्मल डिलीवरी करवाई गई।
शिखा को अपने दुख से ज्यादा परिवार वालों का दुख साल रहा था।पति टूट गए थे अंदर से।सास अनमनी सी हो गईं।शिखा ठीक से अपना दुख दिखा भी नहीं पाई,क्योंकि वह तो मां थी,पर बच्चे से जुड़े सभी लोगों का दुख उसे अपने दुख से ज्यादा ही लगता।
सास ने भी खुद को मना लिया था यह कहकर कि जमीन बंजर नहीं,फिर होगी फसल।साल बीतते-बीतते शिखा फिर मां बनने जा रही थी,तीसरे महीने ही गर्भ पात हो गया अपने आप।यही क्रम अगले दो सालों में कई बार चला।शिखा ईश्वर से यही पूछती कि उसकी किस्मत में मां बनने का सुख है भी या नहीं?
अगली बार संयोग से एक अच्छे चिकित्सक से संपर्क हुआ और उनके आश्वासन से,सही चिकित्सा करवाने पर, शिखा फिर से मां बनने जा रही थी चौथी बार।इस बार नौ महीने पहाड़ की तरह बीतें,परिवार के।तय समय पर शिखा ने स्वस्थ बेटे को जन्म दिया।
आंखों से झरते आंसुओं को पोंछते हुए सास की गोद में जब बेटे को देखा तो शिखा अपनी नार्मल डिलीवरी की वेदना भूल गई।सास अपने बेटे के बेटे को गोद में लेकर रोए जा रही थी।
शिखा ने ईश्वर पर अपनी आस्था आज प्रमाणित होते देख ली।बेटा लगभग दो साल का हुआ तो शिखा ने एक स्कूल में पढ़ाना शुरू किया। दशहरे का समय था,घर की साफ-सफाई शुरू हो चुकी थी,साल भर के पर्व के लिए।शाम को अचानक शिखा के पेट में दर्द शुरू हो गया।
अस्पताल जाने पर पता चला,फिर गर्भवती है शिखा।इस बार सभी को बेटी चाहिए थी।तीन -चार दिनों तक अस्पताल में रहने के बाद चिकित्सकों ने बताया कि बच्चा अब नहीं रहा।बहुत ज्यादा खून निकल चुका है।शिखा ने आसमान की तरफ देखकर कहा “क्यों इतनी परीक्षा ले रहें हैं प्रभु?मैंने क्या बिगाड़ा है?जान बूझकर कभी किसी का अहित नहीं किया।”
डॉक्टर ने परामर्श दिया कि अगले दिन आकर डी एन सी करवा लें,अस्पताल में।खून और यूरिन की जांच हो चुकी थी, रिपोर्ट निगेटिव था।बच्चा जीवित नहीं था अंदर।पता नहीं क्यों ,शिखा का मन नहीं मान रहा था।धार-धार रोए जा रही थी,तब सास ने दिलासा दिया”मत रो बेटा,ईश्वर की मर्जी के आगे किसकी चलती है?”अगली बार सब ठीक होगा।”
शिखा अस्पताल पहुंची अगले दिन तो निश्चेतना वाले डॉक्टर ने जैसे ही पूछा”बेटा कुछ खाया तो नहीं है ना सुबह?इस इंजेक्शन से तुम कुछ समय के लिए अचेत हो जाओगी।अब तो शिखा को काटो तो खून नहीं।सास ने सुबह ही तो बिस्किट और चाय दिया था शिखा को।
टेबल पर बैठकर शिखा ने कुबूल कर लिया कि उसका पेट खाली नहीं है,चाय और बिस्कुट है पेट में। डॉक्टर ने सास को नसीहत देकर कल आने के लिए कहा।अगले दिन ऑपरेशन थियेटर में एमरजेंसी डिलीवरी (सिजेरियन)के इतने मरीज थे कि शिखा का नंबर ही नहीं आया।पति और सास भी अब खिसिया रहे थे।
अस्पताल से घर लौटने के रास्ते में एक छोटा सा काली मंदिर होता था,जो अब भी है।लौटते समय मंदिर के सामने खड़ी होकर शिखा ने कहा “प्रभु,और कितनी परीक्षा लोगे मेरी?अपनी आंखों के सामने अपने अंशों को नष्ट होते देखने का दंश और कितना सहे वह?
उसका इतना कहना था कि पेट में कुछ हलचल का आभास हुआ,शिखा को।अभी मुश्किल से दो महीने भी पूरे नहीं हो पाए थे।शिखा अब अड़ गई।पति से विनती कर के बोली”कहीं प्राइवेट में चलो ना दिखा दें, सोनोग्राफी करवा के देखते हैं।
“जो पति शिखा की बात इतनी आसानी से कभी नहीं मानते थे,आज अपने व्यवहार के विपरीत प्राइवेट संस्थान में लेकर आए शिखा को। डॉक्टर ने सोनोग्राफी करते ही पति को कक्ष में बुलाया और कहा”देखिए आपकी पत्नी के गर्भ में तीन महीने का गर्भ है।जुड़वां बच्चें हैं।एक नष्ट हो चुका है,एक सुरक्षित है।हां एक बात जरूर कहूंगा खास ध्यान रखिएगा।
डॉक्टर की बात सुनकर शिखा और उसके पति सकते में आ गए।शिखा सोच रही थी तीन दिन पहले ही अगर डॉक्टर ने चेककर लिया होता,तो उसका बच्ना कब का नष्ट हो जाता।हे भगवान,कितना बचाया तुमने मुझे प्रभु,ये करिश्मा तुम ही कर सकते हो।
डॉक्टर ने शिखा और पति दोनों को समझाया”एक बच्चा नष्ट हो चुका है,एक बिल्कुल स्वस्थ है,अलग थैले में हैं दोनों, अलग-अलग नली से जुड़े हैं नाभि से।ठीक समय पर जब डिलीवरी करवाना तब ध्यान रखना दो नार निकलेगी।
“घर आकर शिखा समझ नहीं पा रही थी कि कैसे शुक्रिया अदा करे ईश्वर का।सास ने मोहल्ले वालों की बातों में आकर डरकर कहा भी शिखा से कि इस बार मत रिस्क लो।पता नहीं कुछ अपंगता हो जाएगी तो बच्चे के साथ हम सभी को परेशानी हो जाएगी।
“पता नहीं शिखा को इतना आत्मविश्वास कहां से आया और हिम्मत भी कि सास से बोल ही दिया “मां ,मेरी आंखों के सामने कितने जीवन को नष्ट होते देखा है मैंने।अब इस बार जब ईश्वर ने अपना इशारा देकर इसे नष्ट होने से अब तक बचाया है,तो मैं नौ महीनों का इंतज़ार करूंगी।अगर मेरे बच्चे में कुछ अपंगता हुई भी तो,मैं संभालूंगी उसे।इस नन्हीं सी जान के साथ कोई खिलवाड़ नहीं होने दूंगी मैं।”
धैर्य के साथ अगले छह महीने बिताए शिखा ने।तय समय पर अस्पताल जाकर एक स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया शिखा ने।जन्म होते ही शिखा के पति उसकी आंखें,उंगलियां,हांथ और पैर देखने लगे कि ठीक है या नहीं। नार्मल डिलीवरी से जन्मीं, साढ़े तीन किलो की बच्ची किसी गुड़िया के जैसे अपने पिता की गोद में फुदक रही थी।
आज वही बच्ची पुणे में नौकरी कर रही है।दिमाग भी दो के बराबर ही है उसका।सारी कहानी दादी से सुनने के बाद शिखा से पूछा था उसने”आपको इतने कम समय में कैसे पता चला कि पेट के अंदर कुछ हलचल हो रही है?”शिखा ने तब जवाब दिया “पता नहीं,शायद ईश्वर का इशारा मिला था।”
शुभ्रा बैनर्जी