ईश्वर जो करता है अच्छा करता है – नेकराम: Moral stories in hindi

रात के 8:00 बज चुके थे सोहनलाल कारखाने से छुट्टी करके घर चल पड़ा वह हमेशा पैदल ही घर जाता था ,,सड़क किनारे उसे हमेशा की तरह छोले भटूरे की दुकान दिखाई थी सोहनलाल ने अपनी पैंट की जेब टटोली तो दस का नोट पैंट में पड़ा मिला,, सोहनलाल छोले भटूरे की रेहड़ी के पास खड़ा होते हुए बोला,, एक प्लेट छोले भटूरे की,, कितने रुपए की है तब दुकानदार कहने लगा चालिस रूपए की एक प्लेट है,, सोहनलाल ने दस का नोट दिखाते हुए कहा क्या दस रुपए में छोले भटूरे आ जाएंगे,,,,

दुकानदार कढ़ाही से भटूरे निकालते हुए बोला,, भाई जान,, दस रुपए का जमाना गया,, मोहल्ले में जो साप्ताहिक बाजार लगता है उसमें भी ₹35 की छोले भटूरे की एक प्लेट मिलती है , छोले भटूरे खाने हैं और जेब में नहीं पैसे चलो चलो आगे बढ़ो,,,,

दुकानदार की बात सुनकर सोहनलाल का चेहरा उतर गया उसे लगा मैंने दुकानदार से दस रुपए के छोले भटूरे मांग कर गुनाह कर दिया थोड़ा आगे बढ़ा तो जलेबी वाले की रेहड़ी दिखाई दी सोहनलाल के मुंह में पानी आ गया गरमा गरम जलेबी खाऊंगा जलेबी की दुकान पर एक तख्ती लटक रही थी उसमें लिखा था 100 ग्राम जलेबी बीस रुपए की ,, सोहनलाल कुछ देर तो रेहड़ी के पास खड़ा रहा वह दुकानदार कढ़ाई में जलेबी गोल-गोल घूमा रहा था करारी करारी जलेबी वहां खड़े लोग आनंदपूर्वक खा रहे थे,,

सोहनलाल ने दुकानदार से कहा क्या दस रुपए की जलेबी मिल जाएगी

दुकानदार ने सोहनलाल को नीचे से ऊपर तक देखते हुए कहा,, भाई दुकानदारी का समय है क्यों मजाक कर रहे हो शक्ल से तो पढ़े-लिखे लग रहे हो तख्ती में लिखा हुआ है 100 ग्राम जलेबी बीस रुपए की,, और फिर भी अनपढ़ों की तरह पूछ रहे हो चलो आगे बढ़ो ,,भाई

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जलेबी की दुकान छोड़कर सोहनलाल और आगे बढ़ा तो गोलगप्पे की रेहड़ी पर महिलाएं और पुरुष गोलगप्पे और टिक्की खा रहे थे वहां भी एक तख्ती लटक रही थी उस पर लिखा था,, ₹40 की टिक्की ₹20 के गोलगप्पे 45 रुपए के दही भल्ले और पापड़ी

सोहनलाल सोचने लगा अगर दुकानदार से कहूंगा कि दस रुपए के गोलगप्पे दे दो कहीं दुकानदार चिल्लाने लगे और सब लोगों के सामने कह दे की चलो भागो यहां से तब तो मेरी बड़ी बेज्जती होगी

सोहनलाल ने दस का नोट देखा और सोचने लगा अगर इस दस के पीछे एक जीरो और लग जाए तो यह नोट सौ रुपए का नोट कहलाएगा तब मैं गोलगप्पे और टिक्की खाकर भी दुकानदार से वापस पैसे मांग सकता हूं मगर सोचने से क्या होता है दस का नोट दस का ही रहेगा

सोहनलाल धीरे-धीरे अपने कदम पीछे करता हुआ घर की ओर चल पड़ा रास्ते में वेज बिरयानी वाला दिखाई दिया उसकी दुकान पर भारी भीड़ लगी थी मगर तख्ती पर ₹60 की एक प्लेट लिखी थी सोहनलाल ने कदम ना रोके आगे कुछ दूरी पर चलने के बाद सोहनलाल को समोसे की एक दुकान दिखाई दी उसकी रेहड़ी पर भी एक तख्ती लटक रही थी जिस पर लिखा था दस रुपए में गरमा गरम समोसा,,

सोहनलाल ने अपने पैर वही रोक लिए दुकानदार से कहा एक समोसा खिला दो गरमा गरम ,, दुकानदार ने कहा पहले टोकन ले लो फिर समोसा मिलेगा,,

,,,, हां हां तुम समोसे में चटनी लगा कर रखो मैं अभी टोकन लेकर आता हूं ,,,,

सोहनलाल ने जेब में हाथ डाला तो दस का नोट नहीं मिला सोहनलाल ने पैंट की जब अच्छी तरह टटोली मगर दस  का नोट गायब था , दुकानदार फिर बोला भाई साहब समोसे में चटनी लगा दी, है

,,, टोकन जल्दी खरीद लो ,,

सोहनलाल ने कहा लगता है मेरा दस का नोट कहीं रास्ते में गिर गया है  पता नहीं किस रेहड़ी की दुकान के पास मेरा दस का नोट गिर गया है दुकानदार खींझता हुआ बोला मुफ्त में समोसे खाने चले आते हैं, तुम जैसों की नौटंकी हम अच्छी तरह जानते हैं,,

दिल्ली में 10 वर्षों से दुकान चला रहा हूं समोसो की ,, तुम जैसे लोगो से निपटना मुझें अच्छी तरह आता है,,

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सोहनलाल दुखी मन से उन्हीं दुकानों के पास पीछे को लौट आया ,, गोलगप्पे की रेहड़ी के आसपास अपना दस का नोट ढूंढने लगा किंतु दस का नोट नहीं मिला फिर जलेबी की रेहड़ी के इर्द-गिर्द टहलता रहा लोगों ने पूछा भी सड़क पर क्या ढूंढ रहे हो ,,भाई ,, सोहनलाल चुप रहा है उसे डर था,, अगर लोगों को भनक लग गई तो मेरा दस का नोट उठाकर अपनी जेब में रख लेंगे,,

निराश होकर सोहनलाल छोले भटूरे की रेहड़ी पर पहुंचा 10 मिनट वहां अपना नोट खोजता रहा रात के 10:00 बज चुके थे थक हारकर घर चल पड़ा पत्नी ने दरवाजा खोला और पूछा तुम रोज 8:30 बजे घर आ जाते थे आज 10:00 बजे आए हो क्या कारखाने में ओवर टाइम लगा रहे थे,,

सोहनलाल ने चुप रहने में भलाई समझी और हाथ मुंह धो कर पलंग पर बैठ गया तब बीवी बोली आज सुबह गलती से तुम्हारी जेब में दस का नोट रख दिया था,, फिर निकालना भूल गई लाओ मुझे मुन्नी के लिए दूध भी लाना है,, सोहनलाल कुछ कहता की पत्नी ने कमीज की जेब में हाथ डाला और जेब से दस का नोट निकाल लिया तब सोहनलाल सोचने लगा मैंने तो सारी जेब टटोली थी मगर दस  का नोट नहीं मिला था शायद हड़बड़ी में ,,मैंने जेब ठीक से चेक नहीं की थी और मुझे लगा की नोट सड़क पर गिर गया है,,

तब पत्नी बोली आज पता है मैंने क्या बनाया है तुम्हारी पसंद का भोजन ,, घरवाली एक थाली में छोले भटूरे लाते हुए बोली आज मैंने टेलीविजन में देख-देकर छोले भटूरे बनाए हैं खास तुम्हारे लिए,,

सोहनलाल सोचने लगा दस रुपए बच गए मुन्नी के दूध के लिए और मुझे खाने के लिए मिल गए छोले भटूरे ,,।।

                ,,, ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है ,,,,

नेकराम सिक्योरिटी गार्ड

मुखर्जी नगर दिल्ली से

स्वरचित रचना

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