ईशानी” – दीपा साहू “प्रकृति”

वाह री किस्मत प्यार भी हुआ तो कोसो दूर बैठे उस लड़के से जिसे “ईशा” रत्ती भर नहीं जानती।कोरोना महामारी में जब सब काम काज़ ऑनलाइन हो चुका था,इस कंपनी से उस कंपनी मीटिंग मेलजोल आदि  ऑनलाइन माध्यम से हो रहे थे “ईशा” “शिवांशु” की मुलाकात भी हुई ऑनलाइन मीटिंग्स में।एक राज्य से दूसरे राज्य के बीच पनपता प्रेम  शिवांशु ,ईशा के दिल में घर कर चुका था।पर शिवांशु को बताने से डरती थी।कहीं रही सही दोस्ती न टूट जाए।वो छोड़ के चला न जाए।उसका साथ मात्र ईशा को साँसों से मिला देता था।और थोड़ा बहुत शिवांशु को एहसास तो था कि ईशा उसे दोस्त से ज्यादा रिश्ता रखती है । ईशा ने उसके साथ दो बरस बिता दिए बिना ये बताए कि वो उसे चाहती है।न कभी मुलाकात न कभी बात सिर्फ ऑनलाइन मीटिंग्स के दौरान जो बातें हो गई सो हो गई।और कुछ सोसिअल एकाउंट के ज़रिए जुड़े रहे।बस ईशा को उसका ऊपरी व्यक्तित्व प्रभावित करता रहा।अंदर से कैसा होगा ये तो सिर्फ ईशा अपने मन में ख़याल ही बना सकती है,कि वो लगता तो अच्छा है व्यवहार से भी नर्म है,अच्छा इंसान ही लगता है,किसी का बुरा करने वाला तो नहीं लगता।इस तरह ईशा के लिए वो अच्छाई की ही मूरत है, अगर कोई बुराई देखी भी तो नज़रंदाज़ करने की कोशिश कर दी।हर किसी में होती है बुराई तो।खैर शिवांशु की दोस्ती तो थी पर वो उसे चाहती थी।सोचती काश वो भी उसे इतना प्यार करता कि जीवन के सारे गम भूल जाए उसके प्यार में काश कि वो उसे अपना लेता काश कि वो उसे मिल जाता।पर उसे वो कभी कुछ कह न पाई।और जैसे उसी में ठहर सी गई।उसके आगे पीछे वो बढ़ ही नहीं पाई।उससे दोस्ती के बाद उसने किसी से दोस्ती नहीं की।अगर कोई रिश्ता भी आ गया शादी के लिए तो पहले ही घबरा जाती उसे शिवांशु का खयाल आता,वो उसे कैसे भूलेगी,किसी और के साथ…………..उफ़्फ़फ़फ़ मगर शिवांशु से कहे भी क्या ,वो क्यों उससे प्यार करेगा।वो तो हाई फाई स्टेटस का इंसान है उसके आगे पीछे तो लड़कियों की लाइन लगी होती होगी,वो तुझ जैसी लड़की को क्या घास डालेगा- ईशा ने सोचा।

……….और कभी उससे कुछ न कह पाई ईशा ने शिवांशु को अपने जीवन में उस स्थान पर बिठा दिया,जहां शिव रहते हैं जिस  शिव को वो पूजती है।उत्तर -पूर्व में बसने वाले उस “शिव” में जिसे पूजने से कोई हर्ज नहीं कोई रोक टोक नहीं।वो जहां जिस भी स्थिति में रहेगी उसे पूज सकती है।शिव की पार्वती की तरह वो शिव की ईशानी बन उन विल्व पत्रों,में जल में,प्रेम की पवित्र भावना बना शिव को अर्पण कर जीवन भर के लिए उपासना का स्थान दे दिया।और उसे भूलने की कोई चेष्ठा नहीं करना चाहती।

………तुम शिव में रहोगे शिवांशु।गौरी, पार्वती,ईशानी बन गई ।

………….अब किसी और का साथ सिर्फ कर्तव्यों का निर्वहन होगा,हां वफादारी उससे ज़रूर रखूंगी।वफादारी में कोई कमी न होगी उसे उसके हिस्से का हर सुख दूंगी।बस मेरे हिस्से का दर्द छूपकर जिया करूँगी।वो एक ऐसा सुख है जो प्रेम हो जाने के बाद मिलता है।

…….. कहते हैं न.प्रेम हर किसी से नहीं होता।वो कोई एक ही होता है।जिसे हम रूह से प्यार कर बैठते हैं।प्रेम कोई ज़रूरी नहीं जिनसे शादी हो उन्हीं से हो ।प्रेम का रिश्ता बहुत अजीब है।जाने कब किससे कहां हो जाए।और पता भी नहीं चलता।पर ये तो सच है प्यार किसी एक से ही होता है वैसा प्रेम फिर दुबारा किसी से नहीं होता।अगर वो नहीं है या हमें नहीं मिला तो हम भले किसी के साथ रहे कर्तव्य निर्वहन करते है।पूरे पवित्र हृदय से अपनी जिम्मेदारियां भी निभाते हैं। पर वो हृदय का कोना आजीवन उसकी टीस लिए रहता है।

………….ईशानी शिवांशु को कभी बताने की हिम्मत न जुटा पाई……………..

दीपा साहू “प्रकृति”

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