स्वीडन जैसा खूबसूरत शहर, बर्फ से ढकी सड़कें, सड़क किनारे लगे सेब और चेरी के फलों से लदे पेड़। एक सुंदर गर्म कमरा जिसकी खिड़की से पर्दा हटाकर सड़कों पर होती आवाजाही को एकांत में टकटकी लगाकर देखती आशिता। हाथ में कॉफी का मग और साइड टेबल पर रखा सैंडविच जिसे अपने ही खयालों में गुम हुए वो लगभग भूल चुकी है।
लगभग हर सन्डे को यही रूटीन होता है उसका। कॉफी के मग के साथ उसका हाथ थामकर ये बर्फबारी कोई उसके साथ बैठकर देखे,यह ख्याल भी अब तो दिमाग से कोसों दूर जा चुका है ।
इंडिया में एक रहते हुए कभी ये सब उसकी कल्पना में भी नहीं आया था।
जीवन हमेशा एक सा नहीं रहता। कभी छांव कभी धूप यही जीवन का नियम है। एक प्यार करने वाला पति और दो प्यारे बच्चे यही दुनिया थी उसकी। पति रवीश उनकी जरूरतें पूरी कर सकें इतना कमा लेते थे। धीरे धीरे बच्चे बड़े हुए तो आशिता भी एक कॉलेज में पढ़ाने लगी। वहां पढाने के दौरान ही उसने अपनी अधूरी रह गई पढ़ाई को भी पूरा कर लिया।
जीवन में भरपूर आनंद था। घर में न पैसों की कमी थी न प्रेम की। लेकिन न जाने इस हंसते खेलते परिवार को कब और किसकी नज़र लगी। रवीश का स्वास्थ तेज़ी से गिरने लगा। जांच कराने पर पता चला उसे अंतिम स्टेज का कैंसर है। उफ्फ कितना अविश्वसनीय था सब। दोनो बच्चे अभी 12और 14साल के थे। उन्हें अभी मां बाप दोनों की ज़रूरत थी। उनके भविष्य के लिए पिता के साथ साथ रुपयों की भी जरूरत थी। इधर जो भी जमा पूंजी थी सब आशिता ने रवीश के इलाज में खर्च कर दिया था। आशिता ने पर्सनल लोन लेकर रवीश का इलाज कराया हर संभव कोशिश की लेकिन रवीश उसे परिवार की असंख्य जिम्मेदारियों के बीच अकेला छोड़ गया।
दिन महीने बीते तो आशिता अपना दुख भूल बच्चों को संवारने में लग गई । सबसे बड़ा प्रश्न था पैसे?? उसकी सैलरी से घर नहीं चल सकता था। संकट की इस घडी में उसकी पुरानी सहेली ने बहुत साथ दिया। उसने अपने पति के रेफरेंस से स्वीडन में एमबीए कॉलेज में उसको लेक्चरर की जॉब दिलवा दी।
दोनो बच्चों को हॉस्टल में एडमिशन करा कर वह स्वीडन के लिए निकल पड़ी। यहां पहुंच कर उसकी पैसों से संबंधित दिक्कत तो दूर हो गई थी लेकिन वह बिलकुल अकेली पड़ गई थी।
भरा पूरा परिवार छोड़ कर आज वह अपनी जिम्मेदारियों के कारण अकेली रह गई थी। उसने खुद को काम में डूबा दिया था। जिसके कारण उसको तरक्की भी मिलने लगी। दोनों बच्चों की पढ़ाई अच्छे से चल रही थी। देखते ही देखते दस साल बीत गए। बच्चे अब सेल्फ डिपेंडेंट हो गए थे। उनकी अपनी लाइफ थी। इस बार छुट्टियों में इंडिया आते समय उसने सोचा क्यूं न अब वतन वापसी कर ली जाय।
घर आकर उसने बच्चों से इस बारे में बात की तो बेटा बिगड़ने लगा। क्या मम्मी यहां क्या रखा है जो आप इतना अच्छा जॉब छोड़ना चाहती हो। मैंने भी अब अपना बिजनेस स्टार्ट कर दिया है। मुझे भी घर में रहने को टाइम नहीं रहता। आप यहां अकेले करोगी क्या??
आशिता उदास होकर वापिस स्वीडन लौट आई थी। शायद उसका इंतजार करने वाले बच्चे इतने बड़े हो चुके थे कि अब उन्हें मां की जरूरत नहीं रही थी। लेकिन उसका मन जो इतने सालों से रिक्त था उसे अब किसी के साथ और सहारे की जरूरत महसूस होती।
पिछले दस सालों में एंथोनी ने उसका हर संभव साथ दिया था। उसने चाहा भी कि आशिता उससे शादी कर ले लेकिन आशिता अपने बच्चों से आगे किसी रिश्ते के बारे में सोच ही नहीं पाती थी।
अब जब बच्चे भी अपने जीवन में आगे बढ़ रहें हैं तो मुझे भी आगे बढ़कर जीवन को गले लगा लेना चाहिए। रवीश की यादें वह कभी नहीं भूल सकती थी लेकिन ऐसा उदासीन एकल जीवन अब बोझ लगने लगा था। 45साल की आशिता ने फिर से अपने जीवन में रंग भरने का निर्णय लिया और एंथोनी के निवेदन को स्वीकार कर लिया। महीनों तक शून्य में ताकते हुए विचार सागर के मंथन के पश्चात आख़िर उसने एंथनी को अपना जीवन साथी स्वीकार कर लिया।
“बेटा, एंथनी अंकल को जानते हो न मैने सोचा है कि हम दोनों शादी कर लेते हैं। तुम लोग भी अब सेटल हो गए हो, और बेटा अब अकेला नहीं रहा जाता। न कोई मित्र न रिश्तेदार न परिवार!! मैं ही जानती हूं ये दस साल मैंने कैसे बिताए हैं। लेकिन शायद मेरा तप पूर्ण हो गया है। तुम दोनों की लाइफ बिलकुल सेट हो गई है। मैंने अपना फ़र्ज़ पूरा कर दिया है। अब मेरा भी मन है दो पल सुकून के बिताऊँ। मुझे पता है तुम यही कहना चाहते हो कि ये भी कोई शादी की उम्र है?? लेकिन मैं फैसला कर चुकी हूं। तुम दोनों भी अगर मां की खुशी में शामिल होना चाहो तो दस तारीख को स्वीडन आ जाना। मुझे तुम्हरा इंतजार रहेगा।”
अपने मन की सारी बातें कहने के बाद आशिता बहुत देर तक मोबाइल पकड़े रोती रही। लेकिन अब खुद को पहले की मुकाबले बेहद हल्का महसूस कर रही थी वह।
आठ तारीख की सुबह दोनों बच्चे स्वीडन पहुंच गए थे। बेटे ने मां की आंखों में आए आंसू पोंछते हुए कहा,”आपको क्या लगा था मम्मी हम आपकी शादी के अगेंस्ट होंगे??
पिछले साल जब मै आपसे मिलने आया था एंथनी अंकल ने मुझे अपने दिल की बात बताई थी। मुझे पता था आप इतनी आसानी से शादी के लिए नहीं मानोगी इसलिए जब आपने देश वापसी की बात की तो मैंने आपको इंडिया लौटने का मना करके वापिस भेज दिया। मैं चाहता था आप एक बार अपने खुद के लिए सोचें। अपनी भावनाओं को महसूस करें। एक बार हमसे अलग होकर अपना अस्तित्व स्वीकार करें।
हम दोनों को आप पर गर्व है ममा। आप हमारी सुपर हीरो हो।आपको खुश रहने का पूरा अधिकर है। अपने मन से हर बोझ निकाल कर फेंक दीजिए।”
“कितना बड़ा हो गया मेरा बेटा, आज मां को सीख दे रहा है। मुझे गर्व है अपने बच्चों पर। “तीनों भरी आंखों से एक दूसरे के गले लग गए।
“थोडी सी जगह हो तो मुझे भी इस फैमिली पिक्चर में एक कोना मिल सकता है??”मिस्टर एंथनी ने कहा जो काफ़ी देर से इस फैमिली रियूनियन को दूर से देख रहे थे।
एंथनी की बात सुनकर सभी खिलखिला उठे।
12 तारीख को सुनियोजित तरीके से आशिता और एंथनी की शादी हुई। जिसमें बेटी और बेटे ने खुद अपने हाथों से मां का हाथ अंकल एंथनी के हाथों में सौंप दिया।
दोस्तों आपको यह कहानी कैसी लगी?। क्या आपको आशिता और एंथनी की शादी स्वीकार है ?कॉमेंट करके जरूर बताएं।
धन्यवाद
सोनिया कुशवाहा