नौकरी और घर परिवार की दोहरी जिम्मेदारियों के चलते चाहकर भी बीना कई दिनों से अपनी ननद से बात करने का समय नहीं निकाल पा रही थी। सास रही नहीं इसलिए जब भी समय मिलता वह फोन पर उनका व परिवार का हालचाल पूछ लिया करती थी। जिससे कि उसकी ननद को मां की कमी महसूस ना हो।
आज फुर्सत मिलते ही उसने अपनी ननद को फोन मिलाया।
” हैलो दीदी! नमस्ते!”
” नमस्ते!”
” कैसे हो आप परिवार में सब ठीक-ठाक!” बीना ने पूछा
” बस सब ठीक ही है !” उसकी ननंद ने धीमी सी आवाज में जवाब दिया।
“क्या बात है दीदी ! आपकी आवाज से तो सब सही नहीं लग रहा है ! “
” सब सही होगा, तभी तो आवाज सही निकलेगी! तीन-चार दिन मुझे बुखार रहा। फिर बहू को और पोता तो कभी सही रहता ही नहीं!” ननंद ने दुखी होते हुए बताया।
” अब आप और बहु ठीक हो!”
” हां, हमारे बुखार में तो अब आराम है लेकिन पोते का क्या करें ! इसके साथ कोई ना कोई बीमारी लगी रहती है! अब सर्दी जुकाम हो रहा है। जिसकी वजह से काफी चिड़चिड़ा हो गया है!”
” हां दीदी, बीमारी में बच्चे चिड़चिड़े हो ही जाते हैं । वैसे भी मौसम बदल रहा है तो ऐसे में जुकाम बुखार होना आम बात है। आप टेंशन मत लो। डेढ़ साल का तो हो गया है और एक आध साल की संभाल है । फिर इसका इम्यूनिटी सिस्टम थोड़ा मजबूत हो जाएगा। डॉक्टर भी कहते हैं दो-तीन साल तक बच्चों के साथ छोटी मोटी बीमारियां लगी ही रहती है! हिम्मत रखो! “
” तुझे यह सब बातें आम लग रही है!! हां भई तेरे बच्चे बड़े हो गए हैं ! तुझे हमारा दर्द क्या महसूस होगा। बातें बनाना आसान है क्योंकि दर्द उसे ही महसूस होता है जिस पर बीतती है!” उसकी ननंद बेरूखी से बोली।
” दीदी, ऐसे क्यों कह रहे हो। आप भी तो मेरे अपने हो।
फिर मुझे दुख क्यों ना होगा!”
” रहने दें तू!! कहने भर को अपने!! वरना मुझे पता है तू
तो मन ही मन खुश!!!”
यहां भी उसकी ननद उसमें कमी निकाल ताना मारने से नहीं चूकी।
वैसे तो उसकी ननद की आदत थी । बीना के हर काम में कमी निकाल उसे नीचा दिखाने की। लेकिन बीना ननद और वो भी बड़ी होने के नाते उनकी हर बात को नजरअंदाज कर देती लेकिन आज उन्होंने इतनी बड़ी बात कह दी थी कि बीना चुप ना रह सकी। वो सयंत स्वर में बोली
” दीदी, मुझे दर्द का एहसास नहीं होगा!!! भूल गई आप! आपका भतीजा तीन-चार साल तक कितना बीमार रहता था और हम सब घर से ज्यादा उसके साथ हॉस्पिटल में!
वैसे भूल तो आप रही हैं ! याद है आपको!! जब वह 15 दिन का था और डॉक्टर भी उसके बारे में सही से कुछ कह नहीं पा रहे थे! हम सब उस समय उसे दर्द से तड़पता देख खून के आंसू रो रहे थे।
और उस समय आप अपनी मां से अपने शगुन के रूपए पैसे को लेकर लड़ रही थी। आपको अपने भतीजे और हमारे दर्द से कोई सरोकार ना था। आपको उसकी जिंदगी से ज्यादा प्यारे रूपए थे। शायद आपको लग रहा होगा कि अगर डॉक्टर की बात सच हो गई तो आप अपने उपहारों से हाथ ना धो बैठो।
और आज आप मुझे दर्द का पाठ पढ़ा रही हो! दीदी मैं उस दर्द से गुजरी हूं और मुझे उसका एहसास है इसलिए मैं भगवान से प्रार्थना करती हूं कि कोई भी मां बच्चा और परिवार उस दर्द से ना गुजरे!”
जिसे सुनकर उसकी ननद सकपका गई ।
” हां वो!!! तू सही…!!!!!” उसकी ननंद को कोई जवाब नहीं सूझ रहा था।
आज बीना ने उसे सच्चाई का आईना जो दिखा दिया था।
” अच्छा दीदी फोन रखती हूं ।” कह बीना ने अपने ननंद को उसके अपराध बोध के साथ अकेला छोड़ फोन रख दिया।
दोस्तों कैसी लगी आपको मेरी यह रचना पढ़कर इस विषय में अपने अमूल्य विचार कमेंट कर जरूर बताएं।
सरोज प्रजापति