इस बार अगर बेटा नही हुआ तब देखना तू ” राजीव ने अपनी पत्नी सुरेखा की बांह को कस कर पकड़े हुऐ दांत पीस कर बोला।
सुरेखा और राजीव की शादी को 10 साल बीत चुके थे, शादी के बाद से ही राजीव और उसके परिवार ने सुरेखा पर हमेशा इस बात का दबाव डालते थे कि उन्हें बेटा ही चाहिए।
शादी के एक साल हो चुके थे और इसी बीच सुरेखा पहली बार माँ बनने वाली थी।
सुरेखा के माँ बनने की बात जब घर में सब को पता चली तो सब बेहद खुश हुए लेकिन सुरेखा के मन में एक डर बैठा था कि अगर कही बेटा न होकर बेटी हुई तब क्या होगा? क्या उसका पति राजीव और उसके ससुराल वाले उसे अपनाएंगे?
देखते ही देखते वह दिन भी आ गया जब सुरेखा की डिलीवरी थी, सुरेखा को वार्ड में ले जाया गया वहाँ से उसके चीखने की आवाजें आ रही थी वो कुछ देर में बंद हो गया और वह समय आया जिसका सभी को इंतजार था।
सुरेखा के वार्ड से एक नर्स निकाली जिसकी गोद में एक सफेद कपड़े में लिपटा हुआ बच्चा था।
नर्स ने उस बच्चे को राजीव की माँ की गोद में देते हुए कहा कि “मुबारक हो लक्ष्मी आई है आपके घर”
नर्स की बात सुनते ही राजीव और उसके परिवार के चेहरे पर जहां कुछ देर पहले खुशी थी अब उस जगह को उदासी और गुस्से ने ले ली थी।
लेकिन हॉस्पिटल में उन्होंने कुछ नहीं कहा और घर आ गए बच्ची और सुरेखा को लेकर।
हमने तो सोचा था बेटा होगा, तो घर का नाम रोशन करेगा लेकिन हुई क्या ये लड़की, इसका क्या करेंगे?
अपनी सास के मुँह से ये सारे शब्द सुन कर सुरेखा का दिल ही टूट गया, उसके आँखों से बेतहाशा आंसू बह निकले। जबकि उसकी सास भी एक लड़की की माँ थी। फिर कैसे वो ऐसा सोच भी सकती थी?
धीरे धीरे यही सिलसिला 10 सालों से जारी है, सुरेखा जब भी प्रेग्नेंट होती तब सभी को एक ही आशा रहती की इस बार बेटा हो, लेकिन उनकी उम्मीद तब टूट जाती जब फिर से बेटी हो जाती।
सुरेखा और राजीव को अब तक तीन बेटियाँ हो चुकी थी।
इस बार फिर से सुरेखा प्रेगनेंट थी, लेकिन इस बार कोई भी उसकी प्रेग्नेंसी से ज्यादा खुश नही लग रहा था।
इस बार अगर बेटा नही हुआ तब देखना तू ” सुरेखा की बांह को जोर से दबाते हुए राजीव ने चीख कर कहा।
” अरे देखना क्या है? न जाने कौनसी मनहूस घड़ी में तुझे ब्याह कर लाए थे”, सुन इस बार अगर लड़का न हुआ तब तो तेरा इस घर से जाना निश्चित है, और फिर मैं मेरे राजीव का दूसरा ब्याह करवाऊंगी”
अपनी सास के मुँह से अपने पति का दूसरा ब्याह कराने की बात सुन कर सुरेखा की तो जैसे दुनिया ही खत्म हो गई थी,
अब तो वह भी किसी भी कीमत पर अपनी कोख से एक लड़के का ही जन्म चाहती थी, लेकिन उसके हाथ में भी तो कुछ नही था सिवाय भगवान से विनती करने के अलावा।
एक रोज़ सुरेखा की सास सुशीला जी बाजार गई थी किसी काम से, जब वो बेहद खुश होकर घर लौटी थी।
उनके होंठो की चमकती मुस्कान देख कर ऐसा लग रहा था कि उन्हें कोई खजाना हाथ लगा हो।
अजी सुनते हो! अरे राजीव कहाँ है तू भी तो सुन ” सुशीला जी ने बड़ी खुशी अपने पति और बेटे को पुकारा।
अरे भाग्यवान क्या होगया? क्यों चिल्ला रही हो इस तरह?” हाँ माँ क्या हुआ? सुशीला के पति जयेश जी और राजीव ने अपने कमरे से निकालते हुए एक साथ सवाल पूछा।
अरे बात ही कुछ ऐसी है, आप दोनों सुनेंगे तो खुशी से फूले नही समाएगे।” सुशीला जी इस बार भी चहक कर बोली।
अब बता भी दो माँ ” राजीव ने फिर से अपनी माँ की खुशी को महसूस कर कहा।
आज मुझे बाजर में कविता बहन मिली थी और बातों बातों में उन्होंने मुझे बताया कि उनकी बहु भी पेट से है, और एक बेटे को जन्म देने वाली है। ये सब सुनकर तो मैं थोड़ा आश्चर्यचकित हो गई कि उन्हें कैसे पता कि बेटा ही होगा। तब उन्होंने कहा कि वो अपनी बहु को नजदीकी अस्पताल में लेकर गई थी जहां बच्चे की लिंग जांच होती है। वहीं मुझे ये पता चला। और अगर फिर से लड़की निकालती है तो हम उसे खत्म भी कर सकते हैं।
एक साँस में ही सुशीला जी ने ये सारी बातें कह सुनाई थी।
क्या सच में माँ ऐसा हो सकता है ” राजीव ने होकर कहा।
हाँ बिल्कुल”
सुरेखा ये सब सुन कर खुश भी हुई और दुखी भी की अगर लड़का हुआ तो उसका बसा बसाया घर उजाड़ने से बच जाएगा और उसके परिवार को उसका वारिस मिल जाएगा लेकिन उदास इस बात से हुई कि अगर फिर से लड़की निकाली तो इस बार उसे जन्म ही नही लेने दिया जाएगा।
माँ”
ये आवाज सुन सुरेखा अपनी सोच से बाहर आई। और बाकी घर वाले नहीं चौक गए थे इस आवाज को सुन कर क्योंकि ये आवाज राजीव की बहन और सुशीला जी की बेटी प्रीति की थी जो रोते बिलखते घर के दरवाजे पर खड़ी थी।
अपनी बेटी की ऐसी दशा देख कर सुशीला जी का दिल कांप उठा था।
प्रीति बिटिया , क्या होगया तुझे? इस तरह से क्यों रो रही है बेटा? ससुराल में सब कुछ ठीक तो हैं ना? दामाद जी ने कुछ कहा क्या?” इसी तरह से एक के बाद एक सवाल घबराहट के मारे पूछे जा रही थी सुशीला जी अपनी बेटी से।
माँ….सब खत्म होगया माँ सब खत्म होगया, अब न मेरा पति और ना ही बाकी ससुराल वाले मुझे अपनाना चाहते हैं माँ। क्योंकि मैंने एक बेटे को जन्म न देकर एक बेटी को जन्म दिया है इसी लिए उन लोगों ने मुझे और मेरी बेटियों को घर से निकाल दिया माँ।” प्रीति ने फुट फुट कर रोते हुए अपनी सारी परेशानी, दर्द सब अपनी माँ को कह सुनाया।
अरे ऐसे कैसे वो लोग मेरी बेटी को घर से निकाल सकते हैं? अरे अगर बेटा नही हुआ तो क्या हुआ बेटी तो हुई है और बेटा बेटी के अलावा क्या किसी को हाथी घोड़े पैदा होते हैं क्या? बेटी भी तो सन्तान ही होती है और इसमे तेरा क्या दोष है जो तुझे बेटी हुई तो ये सब तो भगवान की माया है इसीलिए जो भगवान ने दिया है उसे उनका प्रसाद समझ कर उसका सम्मान करो।” अपनी बेटी की बात सुन कर सुशील जी भड़क उठी थी।
हाँ माँ तुम बिल्कुल सही कह रही हो! लेकिन माँ तुम भी तो ऐसा ही सोचती हो आखिर तुम भी तो भाभी को प्रताड़ित करती हो बेटा न जन्म देने के लिए, फिर ऐसा फर्क़ क्यों माँ?” प्रीति ने अपने आंसू पोंछ कर अपनी माँ से सवाल किया।
सुशीला जी सोच में पड़ गई! हाँ मैं भी तो अपनी बहु के साथ ऐसा ही बर्ताव करती हूं, क्या मैं सही करती हूं? नहीं मैं बिल्कुल भी सही नहीं करती। आज मेरी बेटी के साथ हुआ तब मुझे समझ आई ये बात जबकि मैं अपनी मासूम सी बहू के साथ कितना गलत करती आ रही थी। हे भगवान मुझे माफ कर दो आपने मेरी आंखे खोल दी।” सोचते सोचते सुशीला की कि आँखों से आंसू छलक उठे थे।
मुझे माफ कर दे बहू! मैंने तेरे साथ बहुत गलत किया। हाँ सुरेखा मुझे भी माफ कर दो मैंने तो सबसे ज्यादा तुम्हें दुख दिया, मुझे तुम्हारा साथ देना चाहिए था लेकिन उल्टा मैं तुम्हारे ही खिलाफ खड़ा था, माफ कर दो सुरेखा मुझे माफ कर दो ” दोनों माँ बेटे फुट फुट कर रो पड़े थे सुरेखा के आगे हाथ जोड़े हुए।
नहीं माँ आप मुझे से माफी मत मांगिये क्योंकि इसमे आपकी कोई गलती नहीं है आपने वही किया जो बरसों से होता चला आ रहा है, क्योंकि जो भी हम देखते है वहीं सीखते है माँ।
और आप भी माफी मत मांगिये मुझे कोई नाराजगी नहीं है आप सब से इसीलिए ऐसे हाथ मत जोड़िये मुझे अच्छा नही लग रहा।” सुरेखा ने अपने पति और सास के जुड़े हुए हाथ को नीचे कर कहा।
अभी तो हमे प्रीति दीदी के बारे में सोचना चाहिए” सुरेखा ने प्रीति के गाल पर प्यार से हाथ रखते हुए कहा।
आप सब को प्रीति के बारे में सोचने की जरूरत नही है सुशीला बहन जी क्योंकि अभी प्रीति ने जो कुछ भी कहा था वह बस आपको समझाने का एक तरीका था क्योंकि वह आपकी सोच को बदलना चाहती थी इसीलिए हमने भी इस नेक काम में उसका साथ दे दिया। बहन जी लड़का और लड़की में कोई भेद नही होता ये तो बस दकियानूसी बातें हैं जो बचपन से हम सुनते आ रहे हैं और इसीलिए हमने भी इसे अपने जीवन में ढाल लिया है लेकिन अब इन सारी बातों से ऊपर उठ कर हमे केवल अपने बच्चों की खुशियो के बारे में सोचना चाहिए सुशीला बहन जी।
सुशीला जी ने भी इस बात पर सहमती जतायी। प्रीति और सुरेखा को कस कर अपने सीने से लगा लिया।
हमे ऐसी सोच को त्याग कर आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि लड़का और लड़की में कोई फर्क़ नहीं है।
समाप्त…..!
लेखिका – तृप्ति सिंह….