“इन्द्रधनुष के रँग ” – सीमा वर्मा

नमिता आज थोड़ी खुश है। शाम में सैर के लिए निकलते वक्त उसने सुधीरजी के लिए टिफिन में दो कटलेट्स बना कर   बैग में रख लिए हैं। सोचा आज उन्हें अपने हाँथ के बने कट्लेट्स टेस्ट कराऊंगी। उन्हें दूर से ही आते देख कुछ सोच अनायस ही मुस्कुरा दी।

सुधीर ने कटलेट्स के टुकड़े तोड़ मुंह में डालते हुए कहा,

” यही प्रेम है नमिता “

“यह प्रेम है “?

“क्यों नहीं  है … तुम क्यों नहीं मानती फिर ये सब क्या है ?

“कुछ भी नहीं”

४२ बर्षीय नमिता और ५० वर्षीय सुधीर  पिछले कुछ दिनों से लगातार पार्क मेंं मिलते हुए करीब आ गए हैं।

छोटे भाई बहनो की जिम्मेदारियों  में बुरी तरह उलझी नमिता को अपने बारे में सोचने का मौका ही नहीं मिला था। अब जा कर मुक्त हुयी तो उम्र निकल गई। नमिता उस दिन पहली बार सुधीर के घर गई थी।

घर में कोई न था। बिखरी किताबें इधर-उधर फैले कपड़े देख नमिता ने सब सहेज कर रख दिए। सभी कुछ करीने से लगा कर उसने अपने हांथो से सुधीर को चाए भी बना कर पिलाई।

सुधीर जी की पत्नी विवाह के डेढ़ साल  के पश्चात ही प्रथम प्रसव के समय ईश्वर के पास चली गयीं। 


फिर उन्होंने दुबारा ब्याह करने की कभी सोची ही नहीं।

माँ के बहुत समझाने पर भी जब वे पत्नी वसुधा का स्थान किसी को देने पर राजी नहीं हुए। तब माँ भी नाराज हो कर गाँव में रहने चली गई।

खैर… आज वही सुधीर कॉलोनी के पार्क में नमिता से अनुनय विनय करते हुए,

“यही प्रेम है नमिता”

फिर थोड़ा रुक कर …” खुद को धोखा देना बन्द करो “।

नमिता की हँसी छूट गई,

” ये तुम मुझसे हमेशा झगड़ा क्यों करते हो खुद को धोखा दूँगी क्यों”

फिर मनोहर जी ने कहा

“मेरी बात को समझो मैं झगड़ा नहीं कर रहा हूँ बता रहा हूँ तुम्हें ,अपने दिल की बात मानो तुम मुझे पसँद करती हो और मैं भी तुम्हें सहारा देना चाहता हूँ “।

अब नमिता थोड़ा सा हँस दी,

“सब कुछ बोलना जरूरी है क्या सुधीर” 

” नमिता मुझे तुम्हारा साथ चाहिए और परिवार चाहिए तुम इतना क्यों डर रही हो और किससे डर रही हो?

इस अकेले सफर में ही तो अब तुम्हें और मुझे दोनों को एक सच्चे हमदर्द की जरूरत है”।

सुधीर के बार -बार इस तरह आग्रह करने  पर नमिता जिसने अभी तक अपने घर परिवार के बारे में मौन धारण कर रखा है।

वह बोल पड़ी ,

“कि कैसे जब से अस्वस्थता के कारण पिता की नौकरी छूटी थी। उसके घर की हालत एकदम बिगड़ गई थी। दिन में ही तारे नजर आते थे। माँ का पहले से ही उग्र स्वभाव अब और भी उग्र हो गया था। पिता की दयनीय स्थिति देखी नहीं जाती।  आए दिन घर में महाभारत छिड़ा रहता था। फिर रही सही कसर उनकी मृत्यु ने पूरी कर दी।

इन हालात में जब घर चलना भी मुश्किल होने लगा तो मुझे अपनी बीच में ही पढ़ाई छोड़ कर नौकरी करनी पड़ी।

सारी मोह-ममता का दायित्व मेरे कंधे पर ही आ गया था।

फिर मैंने ही हिम्मत की। धीरे-धीरे तीन चार साल में सब बदल गया।

छोटी बहन की शादी मैंने अपने बलबूते से बढ़ कर वह जहाँ चाहती थी बड़े घर में उसी जगह करवा दी।

लेकिन माँ की निगाह में अभी भी पैसा ही सब कुछ है।

वह छोटे भाई के भविष्य की चिंता में ही लगी रहती थीं। उसने पैसोँ के बल पर इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और फिर जब मैं उसकी नौकरी लग जाने पर  निश्चिंत होने की सोच रही थी। उसने अपनी मनमर्जी से हाई सोसायटी की लड़की से शादी कर ली और घर से अलग हो गया।

उसकी पत्नी को जब हमारा घर छोटा लगने लगा। तब म़ैने ही बहुत भारी मन से उसे जाने को कह दिया।

दुनिया से वितृष्णा हो गई थी। क्या-क्या नहीं सहना पड़ता है। लेकिन क्या कँरू अभी एक छोटे भाई का भविष्य आड़े आ जाता है। वह लॉ के फाइनल इयर में है। अगले डेढ  साल तो मुझे अपने बारे में सोचने की फुर्सत कहाँ है सुधीर ?।


अब तो माँ का स्वास्थय भी गिरने लगा है। उनका पुराना दमा और गठिया दोनों ही कमजोर शरीर देख कर कर सिर उठाने लगे हैं।

शायद भाई की जुदाई उनसे सहन नहीं हो पा रही है। कुंठित हो कर दिन रात ताने देती रहती है। अमुक लड़की ने बिल्डिंग ठोक लिए , अमुक ने गाड़ी खरीद ली। नमिता अपनी रौ में आ कर बोलते हुए रोती भी जा रही थी।

इस वक्त सुधीर के समक्ष पिता की असामयिक मृत्यु के उपरांत अपने नाजुक कंधो पर कर्तव्य निर्वहन की जिम्मेदारी से मिले कसक की कड़वी घूंट पीते रहने के दुख से उसके गले में आ गई भर्राहट को समेटने की कोशिश में उसके चेहरे पर विचित्र-सी वेदना घिर आई है।

सामने खूबसूरत शाम उसकी प्रतीक्षा कर रही है फिर भी जिसका स्वागत वह चाह कर भी नहीं कर पा रही थी। 

यह सब देख और सुन कर सुधीर कुछ क्षण यों ही  सोचते बैठे रहे। जानते हैं किसी मजबूत हमसफर की तलाश नमिता की उदास आंखों को अब भी है। पर दुनिया और जमाने के झिझक तथा डर से वह उन्हें स्वीकार नहीं कर पा रही है।

उसकी इस अजीब सी मनस्थिति से उसे उबारते हुए बीच में ही सुधीर ने उसे टोक दिया,

“उनकी छोड़ो अपनी सोचो, ढ़लती उम्र ने तुम्हें भी कहाँ छोड़ा है नमिता”?।

“मैंने तो पहले ही कहा है। हाँथ थाम लो दोनों मिल कर आगे की जिंदगी साथ जी लेते “

नमिता हैरत से उसे देखने लगी। उसे अपने कान पर विश्वास ही नहीं हो रहा है। कि सब कुछ जान-सुन कर भी सुधीर जिंदगी की ढ़लती शाम में उसके साथ मुस्कराने को तैयार है।

उसने सुधीर के चेहरे पर नजर टिका ली मानों परख रही है। फिर आत्मविश्वास से बोली ठीक है …

” चलो कल मेरे भाई-भाभी और माँ से मिल लो “

उसके जीवन में दसो दिशाएं इंद्रधनुष के सात रंग से अनुरँजित हो उठने को तैयार हैं।

सीमा वर्मा / स्वरचित

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!