इन धोखेबाजों के बीच मेरी बेटी एक पल भी नहीं रहेगी –  सविता गोयल

बाहर से आती पैरों की आवाज़ सुनकर कनक ने खिड़की से बाहर झांका। कनक की सहेलियां उसी ओर आ रही थीं।

“कनक, चल ना.. हम सब आज पार्क में जा रही हैं…. ,, कनक की सहेलियों ने कनक से भी साथ चलने को कहा…

” नहीं यार, तुम लोग जाओ मैं नहीं आ सकती.. वो अभी घर पर पापा हैं ना।” फुसफुसाते हुए कनक अपनी सहेलियों से बोली और अंदर आकर अपनी किताब लेकर बैठ गई । बच्चों को पढ़ता देखकर ललित जी को तसल्ली रहती थीं कि बच्चे अपने समय का सदुपयोग कर रहे हैं। वो बहुत अनुशासन प्रिय थे। उन्हें बच्चों का मोबाइल टीवी में लगे रहना या इधर-उधर दोस्तों के साथ घूमना फिरना शायद उतना पसंद नहीं था ऐसा बच्चे मानते थे।

लेकिन उन्होंने आज तक कभी भी बच्चों से ऊंची आवाज में बात नहीं की थी। हाथ उठाना या डांटना तो दूर की बात थी। फिर भी बच्चों में अपने पिता का खौफ रहता था। शायद इसीलिए क्योंकि दूसरे बच्चों के पापा की तरह वो अपने बच्चों के साथ खेलते नहीं थे। साथ बैठकर हंसते बोलते नहीं थे। शायद उनका स्वभाव हीं कुछ संकुचित था जिसके कारण उनकी पत्नी मिनाक्षी भी हमेशा उनसे सकुचाई सी रहती थी…. शुरू से बच्चों के मन में भी अपने पिता की छवि एक सख्त पिता की बनी हुई थी ।

बेटी कनक अब कालेज में आ गई थी और बेटा यमन हाई स्कूल में था.. फिर भी पिता की मौजूदगी में दोनों बहुत ही सभ्य व्यवहार करते थे चाहे उनके पीछे से कितनी ही धमाचौकड़ी मचा लें… कुछ भी शिकायत या तकलीफ होती थी तो बस मां के साथ बांट लेते थे। उनकी नजरों में उनके पिता का काम केवल पैसे कमाना और घर परिवार की जरूरत पूरी करने का था।

ललित जी अब अपनी बेटी के लिए एक अच्छे घर वर की तलाश में थे… एक मध्यमवर्गीय पिता की यही ख्वाहिश होती है कि उनकी बेटी को खुद से ऊंचे घराने में ब्याहें । बेटी अपने ससुराल में सुखी रहे तो बस माता-पिता गंगा नहा लें ।

उसी तरह ललित जी ने भी अपने से ऊंचे घराने में हीं अपनी बेटी कनक का रिश्ता तय कर दिया। कनक आगे पढ़ना चाहती थी लेकिन पिता के सामने कुछ कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी।

जिस दिन कनक और मनन की सगाई हुई ललित जी ने स्नेह भरा हाथ कनक के सर पर रखा । उस दिन पहली बार कनक ने अपने पापा की आंखों में आंसू देखे थे। उनका स्नेहिल स्पर्श पाकर कनक आज गदगद हो गई थी।

मनन का पारिवारिक व्यवसाय था जिसमें वो अपने पिता और भाई का हाथ बंटाता था। शुरुआत में तो लड़के वालों के व्यवहार ने सबका मन मोह लिया था लेकिन जैसे जैसे शादी का दिन नजदीक आ रहा था उनकी कुछ ना कुछ मांगे हर रोज आने लगी थी ।

बातों हीं बातों में एक दिन मनन कनक से बोला , ” कनक, शादी के बाद तुम्हें बाइक पर लेकर घूमना अच्छा नहीं लगेगा इसलिए मैं सोंच रहा था कि हमारे पास कार होनी चाहिए।”




कनक ने खुश होते हुए कहा, ” सच…. तुम मेरे लिए कार लोगे!!”

” हां कनक, सोच तो रहा हूँ.. तुम भी अपने पापा से इस बारे में बात करना…..”

” मेरे पापा से!!”

कनक मनन की बात सुनकर स्तब्ध रह गई  … उसे समझते देर न लगी कि मनन उसके पापा से हीं शादी में कार की फरमाइश कर रहा है। उसका मन वितृष्णा से भर उठा.. वो मन ही मन सोच रही थी कि वो इस शादी से मना कर दे। बहुत हिम्मत करके वो अपने मम्मी पापा के कमरे की ओर बढ़ी लेकिन पापा की बातें सुनकर उसके पैर ठिठक गए।

ललित जी अपनी पत्नी से कह रहे थे… ” मैंने अपनी सारी जमा-पूंजी कनक की शादी के लिए लगा दी। बस अब तो मेरी यही इच्छा है कि ये शादी अच्छे से सम्पन्न हो जाए। बस अब कोई रूकावट या किसी तरह की परेशानी ना आए । पूरे परिवार में सब कह रहे हैं कि हमने बहुत अच्छा रिश्ता ढूंढ़ा है अपनी बेटी के लिए। हमारी बेटी उस घर में राज करेगी।”

पापा की बात सुनकर कनक भावुक हो गई। उसकी हिम्मत नहीं हुई कि वो अपने माता-पिता के अरमानों को तोड़ दे । उसने चुप्पी साध ली और उस बात का जिक्र भी घर पर नहीं किया ।

कनक और मनन की शादी संपन्न हो गई लेकिन मनन की कार लेने का सपना सच नहीं हो पाया इस कारण शादी के बाद से ही मनन कनक के साथ उखड़ा – उखड़ा रहता था। बाहर से कनक का ससुराल जितना प्रतिष्ठित दिखता था अंदर से उतना ही खोखला था , ये शादी सिर्फ एक धोखा बनकर रह गई थी।

मनन कनक से  ढंग से बात करना तो दूर हर समय गाली गलौज से बात करने लगा। सास भी हर वक्त कनक को नीचे घराने की कहकर बात करती । बात बात में उसके माता-पिता को कोसती रहती । कनक की जगह उस घर में एक नौकरानी की तरह हो गई थी ।  फिर भी कनक चुप हीं रहती । मायके में कभी किसी को भनक भी नहीं लगने देती।




एक दिन अचानक हीं ललित जी का कनक के ससुराल की तरफ जाना हो गया तो वो कुछ फल और मिठाइयां लेकर बेटी के ससुराल पहुंच गए। जाकर देखा तो उनके हाथ पैर सुन्न पड़ गए । कनक जूठे बर्तनों के ढेर के आगे बैठी थी और सास आराम से सोफे पर बैठ कर टीवी देख रही थीं । बीच बीच में बोल भी रही थीं ,” जरा कस के हाथ चला ले .. बाप के घर कुछ खाया पिया नहीं क्या ??? ,,

इतनी देर में मनन भी चिल्लाते हुए बोला ,

” बद्जात औरत, तुझे कितनी बार कहा है कि मेरे सामान को हाथ मत लगाया कर।  मेरे दो हजार रुपए जरूर तूने हीं निकाले होंगे। नीच खानदान की।”

ललित जी के हाथों से सामान का थैला छूट गया। आवाज सुनकर सभी सकते में आ गए ।  कनक ने पीछे खड़े पिता को देखा तो रोती हुई भागकर उनके सीने से लग गई।  ललित जी ने अपनी मजबूत बाजुओं में बेटी को भर लिया जैसे कह रहे हों तूं चिंता मत कर मेरी बच्ची अब तू अपने पिता की छाया में है। कनक को भी अपने पापा का ये स्पर्श अपना  सुरक्षा कवच लग रहा था जिसमें वो खुद को सुरक्षित महसूस कर रही थी।

ललित जी गुस्से में भभकते हुए बोले ,” मुझे नहीं पता था कि तुम लोगों का असली चेहरा ये है नहीं तो मैं अपनी बेटी के आस पास भी तुम लोगों को फटकने नहीं देता। खबरदार जो अब मेरी बेटी की तरफ किसी ने आंख उठाकर भी देखा तो . ऐसे धोखेबाज लोगों के बीच मेरी बेटी अब और एक पल भी नहीं रहेगी। … चल बिटिया तू इसी वक्त मेरे साथ चल रही है । अभी तेरे पिता की बाजुओं में इतनी शक्ति है कि तुझे जीवन भर पाल पोस सकता है। इन नीच लोगों के बीच अब मैं तुझे एक पल भी नहीं रहने दूंगा। एक बार तेरे पापा को कह कर तो देखती कि तूं यहां इतनी दुखी है!! क्या तूने अपने पापा को इस लायक भी नहीं समझा??”

कनक बस पापा के सीने से लगकर रोए जा रही थी।

मनन और उसके घर वाले मुंह ताकते रह गए और ललित जी कनक को साथ ले आए।

जिस पापा के घर पर रहने पर कनक आज तक खुल कर हंसती बोलती नहीं थी आज उसी पिता की मौजूदगी में उसे विश्वास हो रहा था कि ” मेरे पापा हैं ना.. वो सब ठीक कर देंगे । “

कनक की इच्छा से ललित जी ने उसकी आगे की पढ़ाई जारी करवा दी और उसे आत्मनिर्भर बनने के लिए स्वतंत्र कर दिया। कनक अब फिर से पहले की तरह जीने लगी थी लेकिन अब उसकी नज़रों में पापा का स्थान बहुत ऊंचा हो गया था। अब वो खुलकर पापा से सारी बातें करती थी। ललित जी भी सदैव अपना स्नेह भरा हाथ उसके सर पर रखते थे।

सच में एक पिता अपने बच्चों के लिए कुछ भी कर सकता है । कभी कभी पिता का सख्त व्यवहार बच्चों को उनसे दूर कर देता है लेकिन पिता भले ही ऊपर से सख्त लगे लेकिन उनके अंदर भी बच्चों के लिए उतनी ही ममता होती है जितनी मां के मन में । वो हमेशा अपने बच्चों का भला हीं चाहते हैं इसलिए उनके व्यवहार से उनके प्यार को ना तौलें। 

 सविता गोयल ।

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!