शॉप के कैश काउंटर पर ड्यूटी बदलने का वक़्त था। मैं पैसे मिला रहा था
“क्या हुआ अंकित? परेशान क्यूँ है”
“देख ना यार कुछ समझ नहीं आ रहा, आज से पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ। लगभग पन्द्रह सौ रुपये कम हो रहे हैं”
“ऐसे कैसे? ठीक से चेक कर! ये तो हम जैसों के लिए बहुत बड़ी रकम है “
“कब से चेक कर रहा हूँ पर समझ नहीं आ रहा है,मेरे लिए पूरे हप्ते की कमाई है ये यार.. मेरा बहुत नुकसान हो जाएगा”
“अंकित! किसी को ज्यादा तो नहीं लौटा दिया तुमने?”
“याद नहीं आ रहा ! ड्यूटी बदलने का भी टाइम हो गया है। मेरे पास जो पैसे हैं वो भी मिला दूं तो पूरे नहीं हो रहे। घर में कुछ सामान भी ले जाना था”
“यार ये तो बहुत टेंशन वाली बात हो गई”
हम परेशान हो अभी बातें ही कर रहे थें कि तभी एक लगभग पच्चीस साल का लड़का आया और..
“जी मैंने आपको पाँच सौ का नोट दिया था, आपने दो हजार का समझ कर सामान के साथ मुझे पंद्रह सौ पचास रुपये लौटा दिए थे”
मैं हैरान हो उसे देख रहा था, मेरा मन उस से पूछना चाहता था कि आखिर क्या सोच कर वो इतनी देर बाद पैसे लौटाने आया। शायद उसने मेरा मन पढ़ लिया!
“लौटाना नहीं चाहता था..बल्कि मुझे मिला तो मैं खुशी से इसका बियर पीने वाला था..इंजॉय करने वाला था”
“तो फिर?”
“वो जो बियर दे रहा था ना उसके हाथ से बियर छूट कर टूट गयी। उसका मालिक उसको बोला कि बियर के पैसे तू देगा भले हीं तेरे घर आज चूल्हा ना जले!”
मैं सिर्फ उसको देखे जा रहा था
“ऐसे मत देख भाई डेढ़ सौ उसको भी दे दिया है और ये बाकी के पैसे हैं… तुम दोनों चुल्हा जला लो”
शराब पर आज ईमानदारी का नशा भारी पड़ गया था..!
विनय कुमार मिश्रा।