“भैया,रिक्शा जरा जल्दी चलाओ ना !” मिसेज गोस्वामी उतावली हो रही थी अपने बेटे और पोते को देखने के लिए।
” अरे भागवान ,रिक्शा ही तो है हवाई जहाज नहीं …बस पहुंचने ही वाले हैं।” मिस्टर गोस्वामी ने दिलासा देते हुए कहा।
जैसे ही रिक्शा बड़ी सी कोठी के गेट पर रुका ,दोनों ने फटाफट सामान उतारा और घर में घुस गए।
“दादी आ गई ,दादू आ गए …” चिल्लाता हुआ नन्हा यश दोनों के पास दौड़ पड़ा।उसे छाती से लगाकर मिसेज गोस्वामी को यूं लगा मानो स्वर्ग मिल गया हो।
थोड़ी बातचीत व चाय नाश्ता के बाद वे सामान खोलने लगी ताकि बेटा -बहू और पोते को उपहार दे सके।
“अरे ,मेरा पर्स नहीं है ?? यश के लिए सोने की चेन ,अंगूठी और तुम्हारे लिए ब्रेसलेट लाई थी।” मिसेज गोस्वामी रोने लगी।
“मैंने आपको कहा था कि उबर या ओला की टैक्सी में बैठो ,परंतु पैसा बचाने के चक्कर में आप किसी भी रिक्शा में बैठ गए …कैसे ढूंढेंगे उसे ?क्या नंबर याद है आपको ?” बेटे के पूछने पर दोनों ने ना में सिर हिला दिया।
” फिर क्या हो सकता है ,चलो पुलिस में रिपोर्ट कर आते हैं ।” बहू बोली।
” पहले नहा धो लो और खाना खा लो ,फिर चलेंगे। इतना लंबा सफ़र तय करके आए हो ,थकान उतारो पहले।” बेटे ने निर्देश देते हुए कहा।
मरे मन से दोनों में नहाना -धोना किया ।खाने का मन नहीं था परंतु डर के मारे थाली पर बैठ कर उठ गए।लाखों का नुकसान हो गया था।रह-रह कर रिक्शावाला याद आ रहा था।
तभी दरवाज़े पर घंटी बजी।बेटे ने जाकर दरवाज़ा खोला।एक युवक खड़ा था।उसने कहा -” अभी थोड़ी देर पहले मैंने एक अंकल -आंटी को इसी कोठी के सामने छोड़ा था। उन्हें अपने पोते को देखने की बहुत जल्दी थी।हड़बड़ाहट में वे यह पर्स रिक्शे में ही भूल गए थे।”
पर्स देख कर मिसेज गोस्वामी के चेहरे पर चमक आ गई।उन्होंने रिक्शावाले के हाथ से लगभग छिनते हुए पर्स लिया और खोला- रुपए -पैसे -गहने-कार्डस सब सही सलामत थे।
सब बहुत खुश हुए।रिक्शा वाले को इनाम देना चाहा।परंतु उसने हाथ जोड़कर कहा –
” आंटीजी , इनाम से ईमान कहीं बड़ा है।दूसरों का पैसा रख कर अपने ईश्वर को क्या जवाब दूँगा?”
स्वरचित
उषा गुप्ता
इंदौर