Moral Stories in Hindi : शाम का वक़्त था नैना चाय बना रही थी.. तभी डोरबेल बजी.. वो किचन से हाथों को पोंछती हुयी बाहर आई और दरवाज़ा खोला | सामने उसके जेठ और जेठानी खड़े थे… वो साइड में हो गयी और उनको अंदर आने के लिए बोला.. झुककर उनके पैर छुए.. उनको बैठने के लिए बोलकर उसने आवाज़ लगाई सुनिए… भाईसाहब और भाभीजी आए है |
अंदर से नैना के पति केशव बाहर आए और झुककर दोनों के पैर छुए | केशव अरुण जी के सगे भाई थे | शहर के बहुत बड़े डॉक्टर थे | उनके दूसरे बेटे तरुण की शादी थी…. वो केशव को निमंत्रण देने आए थे | वैसे तो उनको पता ही था फिर भी वो कार्ड और मिठाई लेकर आए थे |
शीला ने आगे बढ़कर नैना को कार्ड और मिठाई देते हुए कहा -” ये तरुण की शादी का कार्ड और मिठाई.. हम मन्दिर से ही आ रहे है और तुम सबको तो पहले आना है… |
नैना ने उनके हाथ से कार्ड लिया और बोली – ” बहुत बहुत बधाई आपको ” मैं चाय बनाती हूँ |
शीला ने पूछा बच्चे नहीं दिख रहे… तभी केशव के तीनों बच्चे आए और नमस्ते की |
शीला ने बोला – ” तुम सब को तो पता ही है तरुण की शादी है आना है सबको… और काम भी करना होगा |
तीनों बच्चों ने सर हिला कर हाँ किया और वापस चले गए |
नैना चाय नाश्ता बना के ले आयी थी… थोड़ी बहुत बात करके और चाय पी कर वो लोग चले गए |
नैना अपने कामों में लग गयी…
केशव किचन में नैना से थोड़ा दूरी पर दीवार से टिक कर खड़े हो गए…. नैना ने पीछे मुड़ कर देखा…. उसे पता था केशव उस से क्या बात करने आए है |
“अगर आप वही बात करने आए हैं तो मेरा जवाब ना है …मैं आपको और बच्चों को नहीं रोकूंगी लेकिन आप मुझसे नहीं कहेंगे जाने के लिए ” नैना ने कहा
नैना…. केशव ने कहा
नहीं….. मैंने कहा ना …
केशव चुप- चाप किचन में से चले गए उन्हें पता था नैना का जवाब यही होगा |
रात को किचन का काम निबटा कर जब नैना घर का दरवाज़ा बंद कर के वापस आ रही थी तभी उसकी नज़र तरुण के शादी के कार्ड पर गयी | वो वहीं बैठ गयी और कार्ड खोलकर देखने लगी… उसमे उसका और केशव का नाम भी लिखा था… नैना ने तरुण के लिखे हुए नाम पर हाथ फेरा जैसे वो तरुण के ही सर पर हाथ रखा हो.. और बोली शादी की बधाई तरुण ईश्वर तुम्हारी जोड़ी खूब फले फूले | उसकी आँखें नम हो गयी और वो बीते वक़्त में पहुँच गयी |
अरुण जी तीन भाई थे वो गोविंद और केशव | गोविंद दूसरे शहर में रहता था ….और सरकारी नौकरी करता था ….उसके भी दो बेटे थे | केशव उसी शहर में रहता था और एक कंपनी में सेल्स का काम करता था नैना पढ़ाती थी और तीन बच्चे थे दो बेटियाँ एक बेटा |दोनों बेटियाँ बड़ी थी और बेटा छोटा |
पहले सब साथ में ही रहते थे | अरुण शहर के बहुत बड़े और नामी डॉक्टर थे…उनका काम काफी बढ़ गया था इसलिए उन्होंने उसी शहर में दूसरा प्लॉट लेकर वहीं हॉस्पिटल और घर बनवा लिया था | बड़ा बेटा आरव भी अपने पिता के नक्शे- कदम पर चल कर हार्ट सर्जन बन गया था | दूर -दूर से लोग आते थे इसलिए उनको कहीं और जाने की ज़रूरत नहीं पड़ी | तरुण भी डॉक्टर था उसने भी practice शुरू कर दी थी |
आरव की शादी थी सब लोग शादी में आए हुए थे.. गोविंद की पत्नी और केशव की पत्नी ने सारे कामों को संभाल रखा था दोनों बेटियाँ भी खूब काम कर रही थी |आख़िर बड़े भाई की शादी थी | अरुण जी मेहमानों की आव – भगत में लगे हुए
थे | गोविंद और केशव ने भी बाहर का सारा काम संभाल रखा था | बाक़ी बचा हुआ डेकोरेशन का काम बच्चों की देख – रेख में हो रहा था | सब बहुत खुश थे |
शादी की रस्में शुरू हुई .. खूब नाच गाना हुआ ….शादी का दिन भी आया …बहुत अच्छे से शादी संपन्न हुई आरव अपनी दुल्हन को लेकर घर आ गया |
अगले दिन मुह दिखाई की रस्म थी और reseption शाम को था | सब थके हुए थे तो शीला (अरुण जी की पत्नी) ने सबको थोड़ा रेस्ट करने को कहा | जिसको जहाँ जगह मिली वो वहीं पर सो गया | 11 बजे सबको तैयार होकर रस्म के लिए आना था |
नैना ने केशव से कहा – “बहु को देने के जो लाए थे वो लॉकर में ही है जाकर ले आते है |
केशव हाँ बोलकर उसके साथ जाने के लिए तैयार हो गया | दोनों ने अरुण और शीला को बताया कि हम लोग जा रहे है | जल्दी ही आ जायेंगे |
बैंक पहुँच कर दोनों ने देखा तो लॉकर के लिए बहुत लंबी लाइन लगी हुयी थी शादी का season था शायद इसलिए दोनों को इंतज़ार करना पड़ा और 1 घंटा लग गया बैंक में | उसने फोन पर पूछा तो अभी थोड़ा समय था रस्म शुरू होने में |
नैना ने केशव को कहा ..निकले है तो ज़रा घर भी हो लें हम चार दिन हो गए अब यहीं हैं तो देख लेते हैं | केशव के साथ वो घर देखने चली गई |
दोनों जब अरुण के यहाँ पहुँचे तो देखा सब एक जगह इकट्ठा है और माहौल कुछ ठीक नहीं है |
क्या हो गया ” केशव ने पूछा
सब उनकी तरफ देखने लगे
पता चला मेहमानों में शीला जी की बहन की लड़की जिसकी शादी थोड़े दिन पहले हुयी थी उसका मंगलसूत्र खो गया है और वो रोए जा रही थी |
घर के नौकरों पर सबका शक़ था.. सब वहीं थे लेकिन कोई भी ये नहीं बोल रहा था की उसने लिया है मंगलसूत्र बोलता भी क्यों .. घरवालों से पूछने का तो कोई मतलब ही नहीं था… ऐसा कोई क्यों करेगा |
तभी शीला जी की बहन ने नैना से पूछा तुम नहीं थी यहाँ बाक़ी सब तो यहीं थे…. कहीं तुमने तो नहीं..
उन्होंने इतना ही बोला था कि केशव ने कहा कैसी बातें कर रहीं हैं आप… आप सब हमारे मेहमान हैं..
हम दोनों भईया और भाभी को बता कर गए थे | सब सवालिया नज़रों से नैना और केशव को देख रहे थे | अरुण जी बोले हाँ ये बता कर गए थे |
नैना की आँखें भर गयी उसने शीला की तरफ देखा लेकिन वो कुछ नहीं बोली |
तभी तरुण जो कि reseprion की तैयारी देखने सभी बच्चों के साथ गया था वापस आ गया उसने देखा कि सब लोग हॉल में है
क्या हुआ उसने पूछा तो उसे बात पता चली |
वो एक मिनट आता हूँ बोल कर अपने कमरे में गया और अपने हाथ में कुछ लेकर वापस लौटा |
उसने कहा – ये है ना आपका मंगलसूत्र
सब हैरानी से उसे देख रहे थे
तरुण ने कहा – दी आप इसे मेरे वाशरूम में भूल आयी थी आपके बाद जब मैं गया वाशरूम में तो मैंने देखा और मुझे लगा ही ये आपका होगा | मैंने सोचा तैयार होकर आपको दे दूँगा.. लेकिन तभी होटल से call आ गया और मैं जल्दी में निकल
गया |
नैना की आँखों से झर -झर आँसूं बहे जा रहे थे | हिचकी ले कर वो रोने लगी हाथ में पकड़ा हुआ jwellary box उसने आरव के हाथ में दिया घर से बाहर आयी और रिक्शा पकड़ कर अपने घर की तरफ चल दी | बाक़ी सब बच्चों को पता चला तो सबको बहुत बुरा लगा |
केशव ने अपनी दोनों बेटियों से सामने समेटने को कहा |
अरुण जी,तरुण , आरव और गोविंद ने केशव को रोकने की कोशिश की लेकिन केशव ने कहा “-जिनको बोलना चाहिए था उन्होंने एक शब्द भी नहीं बोला ” ये कह कर उसने शीला की तरफ देखा …. शीला अब भी कुछ नहीं बोली | केशव ने हाथ जोड़े और चला गया |
शीला अगले दिन केशव के घर आयी और बोली -” गलती हो गयी दीदी से अब तो वो चली गयी है तुम दिल बड़ा करके उनको माफ़ कर दो | नैना ने कुछ नहीं कहा |केशव के कहने पर कि बच्चों की तो कोई ग़लती नहीं है नैना ने सबको बुलाया खाने पर… आरव और बहु को शगुन दिया… उस दिन के बाद अरुण जी के यहाँ कोई नहीं गया | हाँ वो लोग ज़रूर आ जाते थे कभी- कभी |
नैना … आवाज़ से उसका ध्यान टूटा केशव ने देखा नैना के हाथों में शादी का कार्ड है और उसकी आँखों में नमी है | केशव ने साइड से उसके कंधे पर हाथ रखा |
तो क्या फैसला किया तुमने … तुम जो भी फैसला करोगी हम तुम्हारे साथ है
नैना कुछ देर चुप रही फिर बोली-” मैं जब शादी होकर आयी तो भाभीजी को अपनी बड़ी बहन की तरह समझा… और ऐसा नहीं कि उन्होंने नहीं.. वो भी मेरे साथ हमेशा अच्छी ही रही… हमारे तीनों बच्चे उन्हीं की गोदी में खेले | भाईसाहब ने भी कभी कुछ नहीं कहा और ना ही आरव और तरुण ने |
समय के साथ भाईसाहब अच्छे डॉक्टर बन गए… ये पुश्तैनी घर छोड़ कर दूसरे घर में चले गए….. खुशी की बात थी हमारे लिए भी.. मैंने टीचिंग जॉब कर ली…भाभीजी के यहाँ आना जाना लगा रहा.. कुछ भी होता उनके घर में तो भाभीजी बुला लेती सारा काम मैं और हमारी दोनों बेटियाँ संभालती थी |
कभी – कभी तो स्कूल से छुट्टी भी लेनी पड़ जाती थी | मैं सोचती थी चलो ठीक है ….भाभीजी को कोई तो चाहिए और हम तो उनके अपने है तो इस बात को लेकर मेरे मन में कभी कोई बात आई नहीं |
विभिन्न अवसरों पर हमने जो उनको उपहार दिए.. वो उनको अपने यहाँ काम करने वालों को उन्होंने दिए
ये बात मुझे एक दिन अचानक उनके यहाँ पहुँचने पर पता चली जब उन्होंने मेरी दी हुयी साड़ी ये कहते हुए दी की काम करते वक़्त ज़रा सी कहीं फस कर फट गयी | जबकि वो उन्होंने पैकेट में से दी थी |
ऐसी बहुत सारी बातें है… लेकिन मैंने उनसे कभी कुछ नहीं कहा… हाँ दूरी ज़रूर बना ली | और ऊँच – नीच का मतलब मुझे समझ आ गया वो हमें अपने बराबर का नहीं समझती… सच भी है आजकल रिश्ते पैसे तय करता है |
अगर वो एक बार अपनी बहन से कह देती की ये क्या बोल रही है …और हमारा साथ देती तो हमारा जो भी सम्मान है बना रहता …लेकिन उन्होंने कुछ बोला नहीं मतलब उनको हम पर भरोसा नहीं और सबके सामने बोलती ….उसी वक़्त जब बात खुली थी …..की माफ़ कर दो दीदी को …..इस बात के लिए मैं उनको कभी माफ़ नहीं कर सकती | रिश्ते में वो हमसे बड़ी है लेकिन मेरी नज़रों में वो अब गिर गयी है |
आप मुझसे उनके लिए माफ़ी की उम्मीद करते है… माफ़ कर देना अच्छी बात है लेकिन हर बार माफ़ कर देना सही नहीं है |
मैं नहीं जाऊँगी… और आप सबको नहीं रोकूँगी | ये बात तीनों बच्चों ने भी सुन ली थी…
.. वो तीनों आए और बोले मम्मी आप सही कह रही है | हर बार माफ़ कर देना सही नहीं होता |
आशा करती हूँ आपको ये कहानी पसंद आयी होगी | जल्दी ही एक नयी कहानी के साथ फिर मिलूँगी |
धन्यवाद
स्वरचित
कल्पनिक कहानी
अनु माथुर
#इल्जाम
Respect/Honor is not for compromise.
Absolutely