शीतल के पापा को माईनर सा हार्टअटैक आता है, डाक्टर ने कहा कोई खतरे वाली बात नहीं, वो अब ठीक हैं।
लेकिन जिसे सुनकर शीतल रह नहीं पाती और पापा से मिलने आती है, शीतल की बेटी बुलबुल दस साल की है और बेटा सौरभ चार साल का है।
बेटे को तो शीतल साथ ले आती है, लेकिन बेटी बुलबुल की पढ़ाई में परेशानी ना हो इसलिए घर पर छोड़कर आती है।
सब इंतजार कर रहे हैं शीतल का, मां शीतल को फोन लगाती है, “हैलो …….शीतल बिटिया कहां हो, कब तक पहुंचोगी , कब से राह तक रहे हैं”?
“”बस मां दस मिनट में पहुंच जाएंगे, अभी – अभी बस से उतरे हैं बस रिक्शा किया और सीधा आप लोगों के पास”
दस – पंद्रह मिनट बाद शीतल अपने मायके पहुंच जाती है , मां – पापा ,भाई – भाभी , बच्चों से सबसे मिलती है उसका बेटा सौरभ भी सबसे मिलता है ।
“अरे बुलबुल दिखाई नहीं दी वो कहां है ,बाहर है क्या ??
“”नहीं मां, बुलबुल घर पर ही है, उसे नहीं लाई”
“”कितनी बार कहा है तुझे, उसे यूं अकेला ना छोड़कर आया कर लेकिन तु है कि सुनती ही नहीं”
“”अरे मां बुलबुल अकेली कहां है दादा – दादी , चाचा , बुलबुल के पापा सभी तो हैं।
और छोटी बुआ भी तो शहर में ही रहती है वो भी अक्सर आ जाया करती है।
और वो गौरव जो मेरी बड़ी ( जीजी ) ननद का बेटा वो तो बहुत ख़्याल रखता है बुलबुल का।
“”हे भगवान् ना जाने कब समझेगी ये लड़की, आज के वक्त में अपने जाए पर तो भरोसा नहीं और तु चली औरों पे भरोसा करने”
“”ओफ्फो मां , अब छोड़ो भी, कुछ नाश्ता – वाश्ता कराओ भूख लगी है”
प्रेम ( शीतल की मां ) नाश्ता बना रही है और खो जाती अपने जीवन के उन दिनों में जो नासूर बन कर उसे हर पल कटोचते हैं ।
उसकी बुआ का लड़का ( गोविंद ) भी तो उन्हीं के घर में रहता था , बहुत भरोसा था सभी को उस पर तभी तो कहीं भी जाना हो गोविंद के साथ उसे भेज देते थे।
खुद कहीं जाना है तो घर पर गोविंद के सहारे छोड़ कर निश्चिंत हो जाते थे , कहते थे गोविंद भाई है ना तेरे साथ , वो तेरा अच्छे से ध्यान रखेगा, लेकिन कोई नहीं जानता था कि कैसा ध्यान रखता था वो।
घर पे अकेले होते जब, कभी उसके शरीर पर हाथ फिराता , कभी उसकी छाती को चुमता , कभी उसके गुप्तांग को हाथों से सहलाता और साथ में कहता “”मां को मत बताना वरना मां तुम्हें ही डांटेगी।
उससे बात करते हुए गंदे- गंदे शब्दों का इस्तेमाल करता , फिर कहता ये शब्द कितने अच्छे हैं ना, पर मां को मत बताना, हर बात नहीं बताया करते , और वो चुप रह जाती ।
शीतल मां को आवाज़ लगाती है, “”मां आप भी आओ ना सब मिलकर नाश्ता करते हैं”
“” अं ….. हां हां आई ……..आई”
सभी नाश्ता करते हैं मिल बैठ कर लेकिन प्रेम का मन कहीं और भटक रहा है ।
जल्दी से सारा काम निपटा कर शीतल और प्रेम दोनों मां – बेटी आ बैठती है कमरे में , सौरभ मामा – मामी से बातें कर रहा है और शीतल मां से ।
“”मां कहां खो जाती हो , क्या हो जाता है आपको बुलबुल की इतनी चिंता क्यों करती हो , वो अब छोटी बच्ची नहीं है”
“” शीतल, बेटा तुम बहुत भोली है, इस तरह लड़की जात को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए, मुझे पता है अब तुम कहोगी सब तो हैं उसके पास, मैं जानती हूं सब हैं , लेकिन तु तो नहीं ना”
“” मां आप बेकार में चिंता करती हो, बुलबुल भी आप ही की तरह स्ट्रांग है , तभी तो आपके बचपन का नाम बुलबुल मैंने उसका नाम रखा”
“” तुझसे कितनी बार कहा मेरे बचपन की कोई बात ना किया करो”
“” क्यों मां , आप हमेशा ऐसे कह के मुझे चुप करा देते हो, आज आप को बताना होगा कि आखिर क्या ऐसा दु:ख है जो आपको अन्दर ही अन्दर साल रहा है”
प्रेम आज सचमुच शीतल के सामने अपना दिल खोल कर रखना चाहती है।
नाम प्रेम है मगर अन्दर पूरी तरह नफ़रत से लबालब है।
नफ़रत है इस जहां के लोगों के लिए।
नफ़रत है औरत को कमज़ोर बनाने वालों के लिए।
नफ़रत है, इस जहां के मर्दों के लिए।
लेकिन औरत है ना विरोध भी तो नहीं कर सकती किसी का, सारी नफ़रत अपने ही अन्दर अपने लिए उंडेली हुई है।
प्रेम शीतल को अपने बीते कल की सारी घटनाएं बताती है ।
“” तुमने अपनी बेटी का नाम बुलबुल इसलिए रखा कि मुझे बचपन में बुलबुल बुलाते थे सब , तु कहती हैं ना कि मां मैं भी अपनी बेटी को इस बुलबुल जैसा स्ट्रांग बनाऊंगी,
तो सुन ये बुलबुल बचपन में इतनी स्ट्रांग नहीं थी जितनी अब हो गई है।
ज़माने ने इसे पत्थर बना दिया है ।
मेरी बुआ का लड़का हमारे ही घर रहता था , और उसके बारे में सब कुछ बताया शीतल को कि वो प्रेम के साथ कैसे और क्या किया करता था।
उसके बाद चाचा की शादी थी , उसने भी हाथ आजमाने के लिए उसे ही चुना। उस पर अपने तरीके अपनाता कि वो अपनी बीवी के साथ गृहस्थ कैसे रहेगा।
तब भी उसे किसी से कुछ ना बताने को मजबूर किया गया।
छोटे मामा नानी के कहने से बाहर थे उन्हें समझाने के लिए हमारे यहां पिताजी के पास भेजा गया।
मामा ने भी जब – जब अकेली देखा, कभी होंठों का रस पिया तो कभी जिस्म पे हाथ फेरा।
जो भी रिश्तेदार आता हर कोई किसी ना किसी बहाने प्यार से और कोई नज़रों से बदन को छू जाता ।
“” हे भगवान् मां आप ने इतना सहा, विरोध क्यूं नहीं किया किसी का”?
“” बेटी , विरोध करना औरत के नसीब में इश्वर लिखना भूल गया था,
विरोध करती , आवाज़ उठाती भी तो किसके खिलाफ , सभी पीड़ा देने वाले अपने सगे ही तो थे , किसकी शिकायत किससे करती।
मां से करती जो खुद ही दुखों की मारी, कैंसर की बिमारी थी मां को, वो खुद से ही परेशान उसे अपनी परेशानी क्या बताती।
” तो आप अपने पापा से कहते”
क्या कहती उस इंसान से जो खुद ही मेरा शोषण करता।
जब छोटी थी तो रात को सोते हुए कभी आकर मुझे चूमते कभी मेरे नितंबों पर हाथ फिराते, कभी अपने गुप्तांग को मेरे पीछे आकर लगाते, और मैं सहमी सी पड़ी रहती”
” लेकिन मां कोई अपनी ही बेटी से ऐसा कैसे कर सकता है?
” हां कोई अपनी ही बेटी से ऐसा कैसे कर सकता है, लेकिन मैं उनकी अपनी बेटी जो नहीं थी”!
“क्याआआआआआआआ, आप , आप, मम्मा, मेरा मतलब है, कि मैं समझ नहीं पा रही आप क्या कह रहे हो”
” हां शीतल, ये सच है, मैं तुम्हारे नानू- नानी की सगी बेटी नहीं, तुम्हारी नानी अर्थात मेरी मां, मां नहीं बन सकती थी, लेकिन उन्हें बच्चे की कमी भी बहुत खलती”!
धीरे-धीरे वो डिप्रेशन में जाने लगी, तो तुम्हारे नानू ने सोचा कि किसी अनाथाश्रम बच्चा गोद ले लेते हैं।
जब आश्रम गए तो ना मुझे क्या हुआ उस समय, मैं उन्हें सामने देखते ही दौड़कर उनके गले लग गई। उन्हें भी बहुत अच्छा लगा और वो मुझे वहां से ले आए”!
आश्रम में भले मेरा नाम प्रेम कुमारी लिखा था, लेकिन मां -पापा प्यार से मुझे बुलबुल कह के बुलाते।
कहते जब हम आश्रम में गए तो तुम बुलबुल की तरह उड़ती हुई आई और हमारी गोद में समा गई।
बस तब से बुलबुल ही कहने लगे।
मुझे ये नाम बहुत प्यारा है क्योंकि मेरी मां ने मुझे ये नाम दिया।
लेकिन नफ़रत है उस बुलबुल के जीवन से, उस बुलबुल के बचपन से, जिसका बचपन शोषण और डर में बीता। केवल बुलबुल से ही नहीं प्रेम से भी नफ़रत है। प्रेम का अर्थ है प्यार। सबको प्यार बांट कर खुद के लिए केवल नफ़रत ही बची, नफ़रत है इस प्रेम से, नफ़रत है अपने – आप से”
“नहीं मां ऐसा मत कहो, जितनी आप प्यारी हो, उतना ही आपका नाम, वो सब बीते जमाने की बातें थीं, सदियों पुरानी यादों को क्यों सीने में दफना कर बैठी हो, निकाल कर फेंक क्यों नहीं दिया उन ज़हरीले पलों को, क्यों उन्हें सीने में दबा कर जीती रही”!
“बिटिया यही पे बात खत्म होती तो कोई बात नहीं थी ।
भूल जाती सब कुछ पीछे जो छोड़ आई थी, लेकिन यहां भी तो मेरी बदनसीबी ने पीछा नहीं छोड़ा”
“अभी शादी को एक सप्ताह भी नहीं हुआ था, अभी तो हाथों की मेहंदी भी ना उतरी थी कि सास बात-बात पर ताने देने लगी। मुझे समझ ना आए कि आखिर कहां गलती हो रही है मुझसे।
अक्सर मम्मी जी मुझे रात को ही जेठ जी (तुम्हारे ताऊ जी) के कमरे में से कभी कोई सामान लाने या कभी कोई सामान रखने के लिए भेजती।
जब कि उन्हें पता है या था कि इस समय जेठ जी ने शराब पी रखी है और वो गर्मी के कारण सारे कपड़े उतार कर केवल एक अंडरवियर में ही सोते थे, और अक्सर जब भी अन्दर जाती तो अपने कभी गुप्तांग या कभी अपने सीने पर हाथ फिराने रहते।
इसलिए मुझे इस बुलबुल नाम से ही भय लगता है, जो मेरे साथ बीता वो तेरे साथ ना हो, इसलिए मैं एक पल के लिए भी कभी तुझे अकेला नहीं छोड़ती थी।
कहीं भी जाती थी , तुझे हमेशा साथ लेकर जाती, कि कहीं ऐसा ना हो , फिर से वही पीड़ा सामने आए ।
इसलिए तुझे हर बार यही कहती हूं बुलबुल को अकेला मत छोड़।
“” नहीं मां मैं बुलबुल के साथ ऐसा नहीं होने दूंगी।
मैंने बुलबुल को सब समझाया हुआ है ।
हमारी बुलबुल गुड टच, बैड टच , अच्छा क्या , बुरा क्या , किस की हरकत किस हद तक बर्दाश्त करनी है, किसे पलट कर कैसे और कब, कहां वार करना है , ये सब जानती है।
और आजकल तो स्कूलो में भी बच्चों को सेक्स के विषय पर जानकारी दी जाती है। और साथ आत्मसुरक्षा के गुर भी सिखाए जाते हैं।
मां ये आज की बुलबुल है , 21वीं सदी की बुलबुल, जो ना जुल्म सहेगी और ना किसी को सहने देगी ।
इंट का जवाब पत्थर से देगी, हर ग़लत बात का विरोध करेगी,वहशी दरिंदों को सबक सिखाएगी।
ये 21वीं सदी की बुलबुल है ।
प्रेम बजाज ©®
जगाधरी ( यमुनानगर)