श्रमजीवी एक्स्प्रेस ट्रेन दिल्ली से पटना जा रहे मलय के कोच में बनारस स्टेशन पर आधी रात में चढ़ने वाली महिला के बर्थ पर बैठते ही उसकी हैलो की आवाज सुन झटका लगा… सलोनी…। उसने बोलने वाली के चेहरे को देखना चाहा.. लेकिन चेहरा दूसरी ओर घूमे होने के कारण देख नहीं पा रहा था।
सलोनी .. मलय की नजरें उधर ही जम गई थी। किसी को चाय बनाना सीखा रही थी वो महिला और डाँट भी रही थी..आधी रात में कौन चाय पीता है.. जब कहती हूँ कि थोड़ा बहुत घर का काम सीख लो तो दोनों भाई बहन परेशान कर देते हो मुझे। नीचे फर्श पर पेपर डाल लेना और स्लैब पर भी… नहीं तो गंदगी साफ़ करते करते परेशान हो जाओगे तुम दोनों कहकर महिला ने कॉल डिस्कनेक्ट कर ट्रेन की मद्धिम रौशनी में ही पत्रिका के पृष्ठ खोल लिए।
उस बर्थ पर सलोनी ही है..मलय समझ रहा था.. ऐसे तरह तरह के आईडियाज उसके ही दिमाग की उपज होते थे… अड़तीस साल का मलय अट्ठारह साल के युवा की तरह उचक उचक कर पत्रिका के पीछे छुपे चेहरे को देखने की भरपूर कोशिश कर रहा था। लेकिन पत्रिका ने महिला के चेहरे को कुछ इस तरह से ढक रखा था कि कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। मलय अपनी इस हरकत का अहसास करते ही अन्यमनस्क होकर खिड़की के बाहर छूटती जा रही रौशनियों को देख अपनी पीछे रह गई जिंदगी में खो जाता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर के प्रांगण में सिर पर पीला दुपट्टा डाले हाथ जोड़ प्रार्थना करती उन्नीस साल की युवती..जिसे देख चौबीस साल का पटना का मलय देखता रह गया था। गौर वर्ण, उन्नत माथा..माथे पर लगी पीली बिंदी.. उस पर गिरती बालों की छोटी लटें…बस मलय सब भूल उसे देखना चाह रहा था। शायद युवती की प्रार्थना भी पूरी हो गई थी.. उसकी मृगनयनी सी आँखें खोलते ही मलय को लगा मानो सेंकड़ों दीये एक साथ झिलमिला उठे। हड़बड़ाहट में मलय मंदिर की घंटी बजाने लगे.. साथ ही उसके दिल की घंटी भी बज गई थी। लेकिन वो युवती इन सब से अनजान लौट चुकी थी और मलय मंदिर की घंटी बजाता उसे जाता देखता रहा। कौन थी.. कहाँ से आई बिना ये जाने उस समय के बाद से मलय के दिन रात के होश उड़ गये थे। चिकित्सक बनने की ओर अग्रसर मलय को अब अपने दिल के इलाज की जरूरत महसूस होने लगी थी। काॅलेज हो.. बाजार, मंदिर, सड़क हर जगह उस एक चेहरे की खोज में लगा रहता था। उसके बाद तो विश्वनाथ मंदिर जाने का सिलसिला ही शुरू हो गया था मलय का। लेकिन जिसकी एक झलक के लिए जाता था.. उसका कोई अता पता ना था।
झूम उठा था मलय जब उसने उसे अपनी दोस्त रम्या की शादी में देखा.. जरदोजी सिल्क की लाल रंग की साड़ी में उसका निर्दोष हुस्न निखर आया था। मलय के ही साथ पढ़ने वाले सुहास की बहन थी सलोनी और रम्या सुहास और सलोनी की फॅमिली फ्रेंड।
एक बार फिर से देखने की कोशिश की मलय ने… पर अब तक सिर पर चुन्नी इस तरह से डाली जा चुकी थी कि चेहरा ना देखा जा सके। अब बहुत हो गया… सीधे ही पूछ लेता हूँ.. सोचकर मलय महिला के सामने वाली बर्थ पर ही थोड़ी सी जगह बना बैठ जाता है।
सलोनी.. जैसे ही मलय कहता है…
सलोनी की उठती नजरों में सैंकड़ों दीये एक साथ फिर से झिलमिलाते लगे थे मलय को।
क्यूँ खुद को छुपा रही थी सलोनी.. मलय के चेहरे पर चिर परिचित खिलंदड़ी मुस्कान देख सलोनी की निगाहें खुद ही झुक गई।
नहीं ऐसा नहीं है… मैंने आपको देखा नहीं था… सलोनी ने कहा।
मलय के चेहरे की मुस्कान बता रही थी कि उसने सलोनी की बात का विश्वास नहीं किया।
आप इस ट्रेन में कैसे….सलोनी मलय की मुस्कुराहट को देख हड़बड़ाहट में पूछ बैठती है।
तुम्हारे लिए… मलय हाथ बाँध कर बैठता हुआ अपनी चिर परिचित मुस्कान के साथ सलोनी को देखता हुआ बोलता है।
मुझे पता था कि तुम सेमिनार के लिए बनारस आई हो और इसी ट्रेन से वापस पटना जा रही हो.. पर इसी बोगी में मिल जाओगी.. ये पता नहीं था.. ये तो ऊपर वाले की मर्जी हुई… सलोनी के चेहरे पर आश्चर्यचकित भाव देख मलय कहता है।
पर कैसे… सलोनी ने पूछा।
माँ और मेरी बातें होती रहती हैं…हमेशा नहीं.. लेकिन जब जब माँ को जब भी लगा मेरी सलाह की जरूरत है.. तब तब बातें होती थीं..मलय बताता है।
मतलब बनारस का मकान बेच कर पटना शिफ्ट होने का विचार भी आपका ही था.. सलोनी पूछती है।
हाँ.. सुहास की मृत्यु के बाद माँ की घबराहट देख मैंने ही उन्हें ये सलाह दिया था.. क्यूँकि पटना में तुम लोग के सारे रिश्तेदार हैं तो माँ को सहारा लगता।
क्यूँ आप दोनों ने मुझे क्या इतना कमजोर समझ लिया था.. सलोनी ने तुनक कर पूछा।
नहीं.. पर माँ पुराने ख़यालात की थी.. उस समय उनका मनोबल बढ़ाने का यही एक तरीका था.. मुझसे तो तुमने घर ही नहीं तुम लोग के सामने भी नहीं आने का वचन ले लिया था। सारी जिम्मेदारी खुद ही अकेले उठाने का फैसला कर लिया था। अब तो माँ ने भी समझ लिया है कि तुमसे बड़ा सहारा कोई और नहीं हो सकता है.. सुहास और उसकी पत्नी के जाने के बाद जिस तरह तुमने शादी से इंकार कर हर चीज़ त्याग कर उनके दोनों बच्चों को पाला है… वो तारीफ के योग्य है.. मलय ने सलोनी की तारीफ करते हुए कहा।
वो जो आप माँ के द्वारा मुझे राह दिखा रहे थे… सब उसी के कारण सम्भव हो सका… अगर आपने अपने चिकित्सक मित्र की सहायता से भाई के हाइपर ऐक्टिव बेटे का उपचार और काउंसिलिंग नहीं करवाया होता तो उसे सम्भालना बहुत मुश्किल था.. आप हम कदम बन मेरे साथ थे.. इसीलिए इतना कर सकी मैं… नेह से देखते हुए मलय से कहती है।
तुम्हें क्या लगा था यूँ ही तुम्हें हमसफ़र कहता था मैं… साथ रहूँ या ना रहूँ…
हमसफ़र बन राह के हर काँटें चुन ले जाऊँगा,
धूप में छाँव बन हमसफ़र का धर्म निभाऊँगा,
तेरी आंखों के गुलाबी डोरे में खोकर मैं जनाब,
ले हाथों में हाथ जिम्मेदारी संग संग उठाऊँगा।।
शायराना अंदाज में अपनी बात कहता है मलय और अब माँ चाहती हैं कि हम दोनों शादी कर लें… ये कहते हुए मलय के चेहरे पर एक शर्मीली सी मुस्कान छा गई।
क्या इस उम्र में शादी.. बच्चों पर क्या असर पड़ेगा.. माँ भी जाने क्या क्या सोचती रहती है… सलोनी चिहुँक उठी।
बच्चों से मिल चुका हूँ मैं.. उन्हें कोई ऐतराज नहीं है और अब तो दोनों ने मेडिकल में प्रवेश लेकर अपने अपने लक्ष्य की ओर कदम भी बढ़ा दिए हैं… मलय कहता है।
मतलब आपको सब पता है.. सलोनी कहती है।
हूँ.. सब पता है…बच्चों से मिल भी चुका हूँ और जो पता नहीं है वो तुमसे जानना चाहता हूँ.. मलय सलोनी के बग़ल में बैठता हुआ बोलता है।
सलोनी अपनी मृगनयनी सी आँखों में ही क्या का सवाल समाये
मलय को देखती है।
क्या अब तुम मुझे अपनी जिंदगी की राहों में फूल बिछाने का अवसर दोगी मेरी हमसफ़र…क्या आगे की जिम्मेदारी मेरे संग मिलकर पूरी करना चाहोगी मेरी हमसफर…सलोनी के हाथों को हाथों में लेता हुआ मलय पूछता है।
बिना कुछ बोले सलोनी ने मलय के कंधे पर सिर टिका सारी जिम्मेदारी बिना बोले ही बांट लिया और साथ ही उसके चेहरे पर छाई हया की लाली सलोनी के दिल में छुपी हमसफ़र के साथ की लालसा भी चीख चीख कर बयां कर रही थी।
#जिम्मेदारी
आरती झा आद्या
दिल्ली
बहुत सुंदर रचना
Very good story