हमारी बहू महिमा – गीता वाधवानी : Moral Stories in Hindi

राजन ने घर आकर शाम की चाय अपनी पत्नी रीना के साथ पीते पीते उससे कहा-“कह देना, अपने साहबजादे से कि मैंने उसके लिए एक सुंदर ,पढ़ी लिखी योग्य लड़की विवाह करने के लिए ढूंढ ली है। जब उसके पास समय हो हमें बता दे, उनके घर चलेंगे बात करने और साहब जादे भी लड़की को देख लेंगे।” 

रीना-“आप भी क्या हर समय उखड़े उखड़े से बात करते हैं। साहबजादे साहबजादे क्यों कह रहे हैं, सीधे मयंक बेटा नही कह सकते। दस बार आपसे कहा है कि इज्जत करोगे, तो इज्जत पाओगे। बच्चों को अपना दोस्त समझा करो। प्यार से बात करना सीखो। अगर प्यार से बात करोगे तो, वह कोई बेवकूफ नहीं, जो बिना बात आपका अपमान करें।” 

राजन एक बहुत ही गुस्से वाला आदमी था। बात-बात पर मां बहन की गालियां देना उसके लिए आम बात थी। उसे टोकने पर वह कहता था, मेरी तो आदत है। उसकी इस आदत से मयंक उसका बेटा उससे चिढ़ा रहता था। 

भूल से भी अगर कभी बाप बेटा थोड़ी देर साथ-साथ बैठ जाते, तो तू तू मैं मैं शुरू हो जाती और मयंक नाराज होकर घर से बाहर चला जाता और फिर काफी देर बाद लौट कर आता। 

रीना जब भी इस मसले को सुलझाने की कोशिश करती तो राजन उसे भी गालियां देता और कहता कि तू एक बहुत बेकार औरत है।तेरे कारण ही मयंक मेरे साथ ऐसा व्यवहार करता है क्योंकि तू हमेशा उसका पक्ष लेती है। रीना रो कर चुप हो जाती। 

वह हमेशा मयंक को समझाती-“बेटापापा बड़े हैं कुछ कह देते हैं तो बुरा मानने वाली कौन सी बात है। बड़े तो बच्चोंके भलेके लिए ही कुछ सिखाते हैं।” 

मयंक-“तो मम्मी, गुस्सा किए बिना और गालियां दिए बिना भी तो कह सकते हैं ना। कभी मूर्ख, कभी गधा, कभी नालायक कहते रहते हैं। मेरे ऑफिस में आकर देखिए एक बार मेरी कितनी रिस्पेक्ट है। घर आओ तो यह सब सुनकर मेरा मूड खराब होजाता है। इनको भी किसी दिन मैं पापा ना कहकर अगर खूसट, सनकी  बुड्ढा बुलाऊं तो, इन्हें कैसा लगेगा?” 

रीना ने उसे डांट दिया-“चुप बदतमीज, ऐसे नहीं बोलते बेटा।” 

मयंक अपनी मम्मी की बात मानता था और उनसे अपनी बातें शेयर भी करता था। उसने अपनी मम्मी बताया था कि उसके साथ ऑफिस में काम करने वाली लड़की महिमा उसे बहुत पसंद है और वह उसी से शादी करेगा। 

अब आज जब राजन ने किसी लड़की की बात की,तब से रीना बहुत तनाव में थी कि अब बाप बेटे के बीच न जाने कितना बड़ा धमाका होगा। रीना ने मयंक को उसके पापा की बात बताई तो मयंक पापा के पास जाकर बोला-“पापा, मैं अपने साथ ऑफिस में काम करने वाली महिमा से ही शादी करूंगा और किसी से नहीं।” 

राजन-“अबे गधे, आज तक तू अपनी पढ़ाई के बारे में कभी सही फैसला ले नहीं पाया, शादी का सही फैसला क्या खाक  लेगा।” 

मयंक-“तब मैं छोटा था, और सब्जेक्ट्स को लेकर मैं कंफ्यूज हो गया था और यह तो सबके साथ होता है। अब मैं मेच्योर हूं और अच्छी जॉब में हूं। इंसानों की पहचान है मुझे। अगर आप अपनी मर्जी चलाओगे, तो हम मंदिर में जाकर शादी कर लेंगे। महिमा भी मान जाएगी क्योंकि वह भी मुझसे प्यार करती है।”ऐसा कहकर मयंक चला गया। 

रीना ने भी राजन को समझाया और समाज में नाक ना कट जाए इस डर से राजन मयंक की बात मान गया और खुशी-खुशी महिमा के घर वालों से मिलकर बात कर ली और चट मंगनी और पट ब्याह हो गया। महिमा सचमुच बहुत अच्छे नेचर वाली लड़की थी। उसने अपने मायके में हमेशा मेल मिलाप और भाईचारा देखा था।

यहां आकर जब उसने बाप बेटे के बीच मनमुटाव देखा, तो उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा और उसके ससुरजी बात-बात परअपनी पत्नी रीना का अपमान कर देते थे, यह बात भी उसे बहुत अखरती थी। उसकी सास रीना ने उसे कई बार उदास होते देखा था। तब वह महिमा से कहती-“महिमा तू उदास मत हो, दिल छोटा मत कर, मयंक के पापा गुस्सैल है पर दिल के अच्छे हैं।” 

महिमा सुबह और शाम को ऑफिस से आने के बाद अपनी सासू मां की हर तरह के काम में मदद करने की पूरी कोशिश करती थी। धीरे-धीरे वह राजन अपने ससुरजी के दिल में एक बेटी की तरह जगह बनाने में सफल हो गई थी। वह उसे बहुत स्नेह करते थे। उससे बहुत प्यार से बात करते थे। आस पड़ोस में कोई मिलता तो महिमा की प्रशंसा करते थे। अपनी पत्नी से कहते कि”इस गधे ने पूरी जिंदगी में महिमा को लाकर एक काम ही अच्छा किया है।” 

महिमा ने नोटिस किया था कि कई कई दिनों तक दोनों बाप बेटा आपस में ना बात करते थे और ना ही मिलते थे। उसने उन दोनों के बीच का मनमुटाव खत्म करने का पक्का इरादा कर लिया था और उसमे रीनाको भी शामिल कर लिया था। 

एक बार उसने देखा कि ससुर जी छत पर गए हैं। संडे का दिन और सुबह का समय था। उसने मयंक से कहा -“आप अपनी चाय पी कर छत पर पौधोंको पानी देने जाइए, आज मेरी कमर में बहुत दर्द है।।” 

मयंक ऊपर गया तो वहां पापा खड़े थे। मयंक ने उनके पैर छुए तो पापा ने भी आशीर्वाद दे दिया। पापा पौधों को पानीदे चुके थे इसीलिए वह वापस आ गया। 

महिमा को अच्छा लगा कि इस बहाने मिले तो सही। अगले दिन शाम को सब मिलकर घूमने गए। महिमा ने सासू मां से कहा -“पापा के ब्लड प्रेशर की दवाई आप मुझे दे दीजिए, मैं उसे मयंक की कैप और बाकी सामान के साथ रख देती हूं और जब दवाई का समय होगा तब आप कहना कि शायद मैं घर पर भूल आई हूं। मयंक लापरवाह तो नहीं है उसका ध्यान दवाई पर जरूर जाएगा। तब वह दवाई पापा को दे देगा।” 

जैसा सोचा था, वैसा ही हुआ। मयंक ने तुरंत दवाई निकाल कर पापा को दे दी। और बोला-“पापा, शायद भूल से मम्मी ने मेरे सामान के साथ रख दी होगी।” 

चलो इस बहाने दोनों में बात हो गई। राजनजी को लग रहा था कि हां मेरा बेटा जिम्मेदार तो है। फिर थोड़े समय बाद उन लोगों का एक विवाह समारोह में जाना हुआ। राजन जीके एक दोस्त शर्मा जी के बेटे का विवाहथा। दोनों दोस्त होने के नाते एक दूसरे के परिवार को अच्छी तरह जानते थे।

शर्मा जी उन लोगों को देखकर बहुत खुश हए और उनसे बात करते हुए बातों बातों में अपने दोनों बेटों की तारीफोंके पुल बांधने लगे। उनके जाने के बाद राजनजी बोले-“झूठ बोल रहा है, खासकर अपने छोटे बेटेके बारे में, इसका बेटा एक नंबर का शराबी और मवाली है और इनकी तो बिल्कुल इज्जत नहीं करता।” 

तभी महिमा ने कहा-“पापा जी पता है मेरी दादी जीकहती थी कि जब लोग अपने खोटे सिक्के को सच्चा बताते हैं तो हम अपने सचमुच में लायक बच्चों को अच्छा क्यों ना कहें। कभी भी बाहर वालों के सामने अपने बच्चों को कमतर नहीं आंकना चाहिए।” 

राजन जी सो रहे थेकि मेरा बेटा मयंक तो इतना लायक है फिरभी मैं खरी खोटी सुनाते रहता हूं।  महिमा ने मयंक के मन मे पापा के लिए आदर देखा था। उसने उसे उभारने का कामशुरू किया। उसने मयंक से कहा -“मयंक, पता हैतुम्हें ,कोई कोई इंसान ऐसा होता है जो अपनेप्यार को सामने से व्यक्त नहीं कर पाता पर पीठ पीछे तारीफ करके प्यार जताता है।

ऐसेही तुम्हारे पापा हैं। वह टाइम टू टाइम मयंकको कहती रहती थी कि आज पापा तुम्हारी बहुत तारीफ कर रहे थे, कह रहे थे कि तुम बचपन  से ही पढ़ाई में बहुत होशियार थे और टीचर से सवाल भी बहुत पूछते थे। 

कभी कहती कि पापा कह रहेथे कि तुम बचपन से अपने आप ही सब बड़ों के आशीर्वाद लेते थे, तुम्हें कभी कहना नहीं पडता था कि पैर छू लो। 

आज पापा कह रहे थे कि तुमशुरू से ही हर स्त्री का सम्मान करना जानते हो।” 

ऐसी बातें पिता और पुत्र दोनों के सामने कहकर महिमा ने घर का वातावरण बहुत ही बढ़िया बना दिया था। राजन जी बड़े ही प्यार से जो कुछ कहना होता, मयंक से कहते और मयंक भी हांजी पापा कहकर सुन लेता था। 

धीरे-धीरे दोनों के बीच मनमुटाव कम होता जा रहा था। इस बात को सभी महसूस कर रहे थे। राजन और रीना को अपनी बहू महिमा और मयंक को अपनी पत्नी पर बहुत गर्व था, जो  एक घर जोड़ने वाली बहू थी। सासू मां और ससुर जी कहते नहीं थकते थे कि”हमें हमारी बहू महिमा” पर बहुत गर्व है। 

स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली 

#मनमुटाव

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