हमारे ख़ानदान में लेने देने की जगह रिश्तों में प्यार हो और अपनापन हो इस बात पर ज़्यादा ध्यान दिया जाता है । – के कामेश्वरी : Moral Stories in Hindi

नरेश जी ने इंजीनियरिंग अंतिम वर्ष में पढ़ रही अपनी बिटिया रजनी से कहा कि बेटा अब तो तुम्हारी पढ़ाई ख़त्म हो रही है मैं और तुम्हारी माँ तुम्हारे लिए रिश्ते देखना चाहते हैं।  तुम्हारी नज़र में वर कैसा होना चाहिए ।

सुधा ने कहा आप भी उससे क्या पूछ रहे हैं बिल्ली से पूछ कर उसके गले में घंटी बाँधी जाती है क्या?

सुधा चुप रहो जमाना बदल गया है जिन्हें जीवन भर साथ रहना है उनकी इच्छा जानना हमारा कर्तव्य है ।

रजनी की आँखों में एक चमक आई अपने पिता पर उसे गर्व महसूस हुआ । उसने कहा पापा मेरी नज़र में अच्छा पढ़ा लिखा हो क्योंकि मैं भी पढ़ रही हूँ अच्छी नौकरी मेरा सम्मान करे और रिश्तों को महत्त्व देता हो पैसा मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता है। उसे तो हम कमा सकते हैं ।  मेरी सहेली को देखने के बाद मुझे पैसे वालों से नफ़रत हो गई है ।

आप जानते हैं ना उसके पति के पास पैसे हैं पर संस्कार नहीं हैं पढ़ाई नहीं है क्या करेंगे ऐसे पैसों का कहिए । आए दिन उसे मारता रहता था आख़िर ऐसी ज़िंदगी से तंग आकर उसने आत्महत्या करने की कोशिश की थी यह तो क़िस्मत अच्छी थी तो वह बच गई थी मैंने उसे बहुत समझाया तब जाकर आज वह नौकरी की तलाश कर रही है ।

नरेश जी को भी रजनी की सहेली के बारे में जानकारी है वे खुद भी उसके लिए नौकरी ढूँढने में उसकी मदद करना चाहते हैं । अपनी बिटिया के विचारों से वे बहुत खुश हुए थे कि उनकी बेटी भी उन्हीं की तरह सोचती है ।

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उस दिन नरेश और सुधा घर के कामों में व्यस्त थे क्योंकि रजनी को देखने के लिए लड़के वाले जो आ रहे हैं। मीडिएटर से जानकारी मिली थी कि वे पैसों से नहीं संस्कारों से धनी हैं । उन्हें याद आया जब लड़की को देखने के लिए बुलाने के लिए जब उनके घर गए तो उन्होंने कहा था नरेश जी

हमारे ख़ानदान में लेने देने की जगह रिश्तों में प्यार हो और अपनापन हो इस बात पर ज़्यादा ध्यान दिया जाता है हमें ऐसी ही लड़की चाहिए जो हमारे तरह के विचार रखती हो ।

नरेश जी ने बाहर कार के रुकने की आवाज सुनी और अंदर जाकर सुधा से कह दिया कि वे आ गए हैं तुम भी आ जाओ । दोनों ने उन लोगों का स्वागत किया ।

 रमाकांत जी पत्नी गायत्री बड़ा बेटा मधु छोटा बेटा सुमन और बिटिया आशा तथा मीडिएटर गोपाल के साथ कार से उतरकर धीरे-धीरे चलते हुए आए । नरेश जी ने उन्हें बिठाकर हालचाल पूछा पानी पिलाया और गायत्री से कहा कि रजनी को ले आए ।

रजनी सबके लिए चाय की ट्रे लेकर आई और पाप के साथ बैठ गई । सबको रजनी पसंद आ गई थी पढ़ी लिखी थी सुंदर थी दुबली पतली लंबे बाल थे । उसकी चोटी कमर से नीचे तक लटक रही थी ।

नरेश जी ने कहा कि रमाकांत जी आपकी इजाज़त हो तो बच्चों को आपस में बात करने के लिए थोड़ा सा वक़्त देते हैं । उनके हाँ कहते ही रजनी मधु को लेकर छत पर गई वहाँ गेस्ट रूम था बाहर ठंडी हवा में कुर्सी डालकर दोनों बैठे थे थोडी सी चुप्पी के बाद मधु ने कहा कि लेडीज़ फस्ट हैं तो पहले आप अपनी बात कह दीजिए । रजनी ने कहा कि मुझे बहुत कुछ कहना है इसलिए आप पहले कहें ।

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मधु ने कहा कि आपको मालूम है हम सब मिलकर रहते हैं मुझे संयुक्त परिवार पसंद है तो मैं चाहता हूँ कि हम जैसे आज शांति से रह रहे हैं आपके आने के बाद भी हम वैसे ही रहें । मेरे माता-पिता की इज़्ज़त करें और उनकी सेवा करें बड़ा बेटा होने के कारण मैं उन्हें अपनी ज़िम्मेदारी समझता हूँ जिसे निभाने के लिए आपका साथ चाहिए अगर आपकी हाँ है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है । अब आप अपनी बात कह सकती हैं ।

रजनी ने कहा कि माता-पिता की ज़िम्मेदारी लेने में मुझे कोई आपत्ति नहीं है मैं उनके लिए कुछ कर सकती हूँ तो मुझे अच्छा भी लगेगा। मुझे आप सम्मान देंगे अगर मुझसे गलती भी हो गई तो आप सबके सामने डाँटने की बजाय अगले में मुझसे बात करेंगे । मेरे विचार में पति पत्नी की इज़्ज़त नहीं करेंगे तो घर के अन्य सदस्य भी उनको सम्मान नहीं देंगे ।

मधु कुछ कहता रजनी ने कहा कि नीचे चलिए बाकी बातें मुझे सबके सामने ही कहना है ।

उन दोनों को इतनी जल्दी वापस आए देखा तो वहाँ बैठे लोगों को लगा कि शायद दोनों ने एक दूसरे को पसंद नहीं किया है । रमाकांत ने ही सबसे पहले पूछा क्या बात है मधु तुम्हारी बातें इतनी जल्दी ख़त्म हो गईं हैं ।

मधु ने कहा कि हमारी बातें तो हो गईं हैं पापा रजनी को बड़ों से भी बात करनी है इसलिए हम आ गए हैं ।

रजनी की माँ धीरे से भुनभुना रही थीं कि यह क्या है बेटा लड़के से बात करने तक ठीक है माता पिता से क्या बात करनी है ।

गायत्री जी ने कहा कि उसे कुछ मत कहिए बेटा आप को जो कुछ भी पूछना है पूछ सकतीं हैं। थैंक्यू आंटी पर अंकल को पसंद होगा कि नहीं ?

आज तक हम दोनों की एक ही बात है बेटा मैंने कहा तो उन्होंने कह दिया है बस अपने दिल की बात बेझिझक बोल दे ।

रजनी अपनी जगह से उठी और कुछ शुरू करती उसके पहले ही गायत्री ने कहा बैठकर बात कर बेटा खड़े होने की जरूरत नहीं है ।

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रजनी बैठ गई । उसने अपनी बात शुरू की थी कि मैं आपके घर शादी करके आई तो बहू के रूप में आप सबका ख़याल रखना मेरी ज़िम्मेदारी होगी जिसे मैं सौ फ़ीसदी निभाऊँगी ।

गायत्री ने कहा- मतलब?

सुमन की शादी होते ही मैं बड़ी बहू बन जाऊँगी ।

गायत्री वह तो सोलह आने सच है ।

जी अब बात यह है कि छोटी बहू के आने के बाद मेरे साथ साथ उसे भी पूरी ज़िम्मेदारी को निभाना पड़ेगा । यह नहीं कि मैं बड़ी बहू हूँ तो सारी ज़िम्मेदारी का बोझ मेरे सर पर डाल देंगे और मैं चुपचाप उसे अपने कंधों पर उठाती फिरूँगी । इसका मतलब यह है कि दोनों बहुओं को समान रूप से सम्मान देने का पुण्य का काम आपको ही करना पड़ेगा

मधु के माता-पिता ने एक दूसरे को मुस्कुराते हुए देखा।  रजनी ने सुमन की तरफ देखकर कहा कि आप की क्या राय है ? सुमन ने कहा मुझे कुछ नहीं पता है आप लोग जो भी निर्णय लेंगे वह मुझे मंजूर है ।

एक बात और सुमन बड़ा हो गया है तो उसे अपने सारे काम खुद करने पड़ेंगे ।

सुमन क्या कहते हो? सुमन ने हँसते हुए कहा आपकी सही है कहूँगा । सब उसके इस तरह से कहते ही हंसने लगे ।

आशा को मेरी तरह ही ससुराल जाना पड़ेगा तो वह हमारे साथ ही सारे घर के काम करेगी सही है ना आशा । आशा ने कहा बिलकुल सही कह रही हैं आप ।

माँ पीछे से रजनी से कहने लगी यह क्या बात है रजनी तुम्हें देखने के लिए आए हुए लोगों से इस तरह बात करते हैं ? रमाकांत ने कहा उसे कुछ मत कहिए सुधा जी । रजनी को अपने दिल की बात कर लेने दीजिए हमें बुरा नहीं लग रहा है कहते हुए सुधा को भरोसा दिलाया ।

हाँ बेटा रजनी सारे सवाल पूछ लिया है या अभी और कुछ पूछना बाकी है ।

 प्यार की खुशबू – संगीता श्रीवास्तव

रजनी ने कहा कि थोड़े से सवाल और बचे हुए हैं ।

सुधा ने उदास होकर बेटी से कहा और क्या पूछना है बेटी?

गायत्री ने हँसते हुए कहा कि पूछ बेटा इस तरह से तुम्हें सवाल जवाब करते हुए देखकर बहुत अच्छा लग रहा है ।

आपके घर में खाना बनाने वाली महिला है क्या?

गायत्री ने कहा कि नहीं बेटा मैं ही खाना बनाती हूँ । फिर ठीक है क्योंकि मुझे भी अपनों को खाना बनाकर खिलाना बहुत पसंद है । आसपडोस के लोगों की बातें सुनकर हमें आपस में लड़ना नहीं है ।

यह तुमने बहुत ही अच्छी बात है कही है बेटा तुम्हें और भी कुछ कहना है तो कह सकती हो ।

आंटी मुझे यही सब कहना था और कुछ नहीं कहना है । कहते हैं ना कि बातों को दिल ही दिल में दबाकर घर को दीमक के समान खोखला करने के बदले में आमने सामने बात हो जाए तो बेहतर है अगर आप मेरी बातों से सहमत हैं तो मैं आपको अंकल आंटी की जगह मम्मी जी और पापा जी कहकर बुलाती हूँ ।

सही है बेटा हमारे ख़ानदान में लेने देने की जगह रिश्तों में प्यार हो और अपनापन हो इस बात पर ज़्यादा ध्यान दिया जाता है ।

हमें तुम्हारी सारी बातें मंजूर हैं आ जाओ हम तुम्हारे मम्मी पापा ही हैं ।

रजनी ने उन दोनों के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया । उन्होंने रजनी को गले लगाया ।

इस दृश्य को देखकर नरेश जी और सुधा जी की आँखों से खुशी के आँसू बहने लगे ।

के कामेश्वरी

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