हमार समधिन बहुतै प्यारी – सुषमा यादव

जी हां, सही सुना आपने,हम आये हैं बेटी , दामाद के घर पेरिस। अब हम इतनी दूर से आए हैं तो भई, हमारी समधन हमसे मिलने जरूर ही आयेंगी। उनके साथ समधी जी भी आये, समधिन जी,हम सबके गले लग कर गालों पर पुच्च, पुच्च की,अब आये समधी जी आगे, बच्चों से मिले और हमारी तरफ़ क़दम बढ़ाए बांहें फैलाए,हाय राम,अब का ई भी हमरे गले लग कर हमरे गाल में,,,ना बाबा ना,हम तौ दूनौ हाथे से आपन चेहरा ढांक कर पीछे भागे,हमार समधी जी त खिसिया गये, ही ही करने लगे,

बेटी ने कहा,पापा जी, ये हमारे कल्चर में नहीं है,आप हाथ जोड़कर नमस्ते कहिए, ऐसे, बेटी ने समझाया, उन्होंने हमें नमस्ते कहा, हमने भी बड़े ही अदब से झुकते हुए नमस्ते किया।

वो तो उसी दिन चले गए, अपनी दुल्हनिया छोड़ कर।

अब हम तो थोड़ा परेशान हुए, इनसे कैसे बतियायेंगे हम,काहे कि ऊ तौ फ्रेंच मा गिटर पिटर करिहें औ हमका तौ बहुत बढ़िया फर्राटेदार अंग्रेजी भी नहीं आती,हम का करब,

,अब ऊ कुछ कहें तो बिटिया हमका हिन्दी मा बतावै, और हम उनका जबाब देई तो उनका फ्रेंच में बतावे।

उसको तो तीनों भाषाएं आती थी,सो वो हमारी अनुवादक बन गई,अब जब सब इकट्ठे होते तो पटर पटर बतियाते और हम सबका मुंह निहारते, नातिन भी अपनी रामकहानी झाड़े रहती,सब हंसते तो हम भी बिना समझे ही ही करते और जब सब चुप हो जाते तो हम भी बगले झांकने लगते।

 एक दिन घर में हम दोनों अकेले थे, मैंने अंग्रेजी में पूछा, आप चाय पियेंगीं, गनीमत थी कि उन्हें थोड़ी बहुत इंग्लिश आती थी,हम दोनों ही नौसिखिए थे, ओके, ओके,मरसी,हर बात पर यहां पेरिस में सब मरसी याने थैंक्यू कहते। अब मरसी कहते हैं या मर्सी या कुछ और,हम आज़ तक ना जान पाए,इस तरह हम दोनों टूटी फूटी अंग्रेजी बोल कर किसी तरह काम चला लेते। जहां समझ में नहीं आता, इशारे से या वो सामान दिखा कर अपना काम चला रहे हैं।

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वो यहां के इंडियन जैसी समधिन तो बिल्कुल नहीं है, वो बर्तन भी सारे धो डालती हैं, सबके कपड़े वाशिंग मशीन में डाल कर धो देंगी, घर की साफ-सफाई भी कर देंगी, अपने पोते और पोती की सब तरह से देखभाल करेंगी,

अपनी पोती को तैयार करके स्कूल पहुंचाना, फिर आकर चार माह के पोते को उसके झूला घर पहुंचाना, दोपहर,शाम को खाना बनाना, फिर शाम को बहू के साथ बारी बारी दोनों बच्चों को लाना,

हे प्रभु, कितनी एनर्जी है इनमें।

हमका तौ बहुतै आराम है,हम बस कुर्सी पर आइके बैठ जाईथा, ऊ हमार प्लेट भी उठाने को करती हैं,पर हम पकड़ लेते हैं,अब भला अपने समधिन से हम जूठी प्लेट 

उठवायेंगे। बेटी समझाती है, मम्मी,ये सब यहां नहीं चलता है,पर भई हम तो नहीं सुनते।

ऊं हमार नाम लेके बुलैहैं,पर हम तो उनका नाम कैसे लें भला, हमारे गांव में तो ये लालगंज की दुलहिन, एक सतना वाली पतोहू,यही कह कर बुलाते हैं, जो बहू जहां से आई। मरते दम तक कोई किसी बहू का नाम नहीं जानता।

,ऊ इतनी गोरी चिट्टी, लंबी,हम तो भाई पांच फुट से भी कम,अब हम फोटू डाल पाते तो आप सब जरूरै लंबू,छोटू की जोड़ी देखती।

एक दिन हमारी बेटी ने मेरा लाया हुआ फेशपैक लगाया,अब वो बोल पड़ीं , ये क्या लगाई हो, बेटी ने बताया, मम्मी,सात प्रकार के अनाज और जाने क्या-क्या मिला कर इंडिया से लातीं हैं, चेहरा चमकने लगता है,हम भी लगायेंगे,अब उनको कौन बताए कि उनका चेहरा तो सौ वाट के बल्ब जैसा जगमगा रहा है,गोरी चमड़ी वाली, और वो हमारा पावरफुल पैक लगा कर बैठ गईं , चेहरा धो कर आईं,देखो हमारी स्किन कितनी चमक रही है, और बहू को बोलीं, तुम्हारी भी, बहुत चमत्कारी है ये फेशपैक, थोड़ा सा हमें भी दे देना, मरसी,मरसी, हमने भी हंसते हुए कहा, मर्सी, वेलकम,

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अब आपको हमारी प्यारी अवधी भाषा समझ में जहां नहीं आई तो पूछ लीजिएगा, बिल्कुल संकोच मत करिएगा, ठीक है ना, धन्यवाद आपका,अपन अमूल्य समय देने के लिए और हमारी समधिन को मरसी मरसी बोलने के लिए 

हमारे दिन तो भई बहुत अच्छे बीत रहे हैं,आराम ही आराम है, एक समय का भारतीय खाना हम बनाते हैं,हम तो भाई सब सामान इंडिया से ढो कर लायें हैं,पूरे तीन सूटकेस भर भर कर।।, तो दूसरी टाइम का वो, दरअसल ये लोग तो कच्चा पक्का,उबला हुआ,सूप,जूस साग पात से भरा हुआ खाना पसंद करते हैं, ये हेल्दी होता है,पर हम तो ठहरे पक्के हिंदुस्तानी, हमें तो खूब तला भुना मिर्च, मसाला वाला खाना ही चाहिए,सो हम वही बनाते हैं, ये सब भी खूब चटकारे लेकर खाते हैं,। अब चाहे पसंद हो या ना हो,सी,सी करते और वाह वाह, बहुत बढ़िया,मरसी मरसी कहते थकते नहीं, हम तो सुनते सुनते ही थक जाते हैं,

तो इस तरह हमारी समधनिया बहुतै नीक है, अपनी बहू से उनकी बहूतै याराना है,ऊ का गोद में लैके फोटो खिंचवाती हैं 

दिन भर दोनों गप्प बाजी में लगी रहती हैं,हम त बस टुकुर-टुकुर मुंह निहारीथा, इतना तो अपने महतारी से नहीं बतियात।

अब हम तो यहीं रहब,ऊ तौ हमार मेहमान हैं,

बस ऐसे ही काम चलता रहेगा,

,, ना जाने उनने क्या कहा,ना जाने हमने क्या सुना।

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पर बात बन ही जाती है,,

कुछ इशारों, इशारों में, कुछ टूटी फूटी हिंग्लिश, विंग्लिश, में 

अब का है कि ऊ डाल,डाल तो हमहूं पात पात।

उनसे कम थोड़े ना है,हम तो भई, शुद्ध भारतीय हैं, कभी हार नहीं मानते हैं,हर बात में पटकनी दे ही देते हैं,चाहे वो हमारा दुश्मन हो या विलायती समधनिया।।

कहो सही कही ना।

अब आपको हमारी प्यारी अवधी भाषा समझ में जहां नहीं आई तो पूछ लीजिएगा, बिल्कुल संकोच मत करिएगा, ठीक है ना, धन्यवाद आपका,अपन अमूल्य समय देने के लिए और हमारी समधिन को मरसी मरसी बोलने के लिए 

सुषमा यादव प्रतापगढ़ उ प्र

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

# जन्मोत्सव, चतुर्थ रचना

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