हम तिरस्कृत क्यूँ” – भावना ठाकर ‘भावु’ 

ईशांत जैसे, जैसे बड़ा हो रहा था उसके व्यवहार में बदलाव आ रहा था। बचपन में जो लड़का बेहद शरारती था वो आजकल चुप-चाप रहने लगा। ईशांत की मम्मी ने एक दो बार ईशांत के पापा से कहा भी कि ईशांत के स्वभाव में अचानक ये परिवर्तन कैसे आ गया? तो ईशांत के पापा ने ये कहकर टाल दिया की बेटा जवान हो रहा तो जिम्मेदार बन रहा है, बचपना छूट रहा है ये तो अच्छी बात है न। 

पर ईशांत की चुप्पी का राज़ कुछ ओर ही था। ईशांत जैसे-जैसे बड़ा होता गया उसके भीतर एक अजीब सी फीलिंग्स आने लगी। उसके सारे दोस्त लड़कियों के प्रति आकर्षित होते लड़कियों को पटाने के नुस्खे एक दूसरे को बताते और लड़कियों के पीछे पागल होते आवारा गर्दी करते रहते। पर ईशांत को लड़कियों के प्रति ऐसे कोई भाव नहीं जगते, कभी-कभी उसे अपनी मर्दानगी पर शक होता। उसे समझमें नहीं आ रहा था आख़िर प्रोब्लम कहाँ थी न किसीको कह सकता था, न सह सकता था। 

आकर्षण होता था पर लड़कियों के प्रति नहीं लड़कों को देख कुछ अजीब खलबली मचती थी। ईशांत को ये लक्षण डरा रहे थे भीतर ही भीतर खुद एबनार्मल है ऐसा महसूस हो रहा था, पर ठीक से किसी फैसले पर नहीं पहुँच पा रहा था। काॅलेज का आख़री साल था, ईशांत के सारे दोस्तों ने गर्ल फ्रेंड बना ली थी सब ईशांत को पूछते भी क्या यार इतना हेंडशम और स्मार्ट होते हुए भी एक लड़की नहीं पटा पाया। पर ईशांत बहाना बनाकर बात को टाल देता।  

ईशांत के पड़ोसी वर्मा जी की बेटी शर्वरी ईशांत को बहुत पसंद करती थी। ईशांत से एक साल छोटी थी, पढ़ाई के बहाने और एकाउंट सीखने के बहाने ईशांत के घर आती और ईशांत को लाइन भी देती। पर खूबसूरत शर्वरी का रुप भी ईशांत के दिल से विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण नहीं जगा पाया तब ईशांत थोड़ा परेशान हो गया। उसे पक्का यकीन हो गया की उसके अंदर कुछ तो गड़बड़ है। जैसे-तैसे ग्रेजुएट हो गया। अब आगे की पढाई के लिए पूणे आ गया, एक अच्छी सी हाॅस्टल में रूम मिल गया। 




एक रूम में दो लड़कों के रहने की व्यवस्था थी, ईशांत के पापा ईशांत को पूणे छोड़ आए। ईशांत का रूम पार्टनर ऋषि सावंत नाम का एक लड़का था। आहिस्ता-आहिस्ता दोनों दोस्त बन गए। ईशांत ने नोटिस किया ऋषि कई बार मैगेज़िनों में माॅडेल लड़कों को बहुत भाव भरी नज़रों से देखता और ऊँगलियों से प्यार करता, तब ईशांत का भी मन करता की लड़कों को छूए और प्यार करें। एक बार ईशांत नहा कर बाथरूम से निकला तो ऋषि बोला वाउउउ क्या सेक्सी बोडी है यार, प्यार हो गया तेरे से।

 और ईशांत की पीठ पर ऊँगली घूमाते आई लव यू लिखने लगा। आज पहली बार किसी लड़के के छूने पर ईशांत के दिल में ऐसी आग उठी मानों आज वो जवान हो गया था। ईशांत ने ऋषि को बाँहों में भरते हुए कहा क्या तुम भी? ऋषि ने प्रतिभाव में ईशांत के लबों पर अपने लब रख दिए और बोला yes dear am i और दोनों एक दूसरे के प्यार में खो गए। कुछ देर बाद ईशांत ने कहा यार कहीं हम कुछ गलत तो नहीं कर रहे?

 उस पर ऋषि बोला एक बात बता क्या किसी लड़की को देखकर तुझे आज वाली फीलिंग्स आई, नहीं न? मुझे भी नहीं आई। और जिस काम में मन को खुशी मिले और दिल में एहसास जगे वो करने में गलत क्या है? हमारी तरह बहुत से ऐसे लोग है जो खुद को गे कहलाने में बिलकुल संकोच नहीं करते।

 हमें भी अपनी ज़िंदगी अपनी मर्ज़ी से अपनी पसंद के साथ जीने का पूरा अधिकार है। क्यूँ अपनी भावनाओं को मारकर मर-मरकर जीएं। ऋषि ने you tube पर कई समलैंगिक लोगों के विचार और विडियो दिखाकर ईशांत को समझाया की पूरी दुनिया में ऐसे कई लोग है, जो विपरीत सेक्स के प्रति नहीं बल्कि समलैंगिक के प्रति आकर्षण महसूस करते है। ईशांत को आज मानों खुद की पहचान मिल गई थी, भीतर कुछ हल्का और पारदर्शी महसूस हो रहा था। कुदरत ने उसके भीतर एक अलग ही व्यक्तित्व का निर्माण किया था। 

समय के चलते ईशांत और ऋषि एक दूसरे के प्यार में पड़ गए। कई बार बियर पार्टी करके दोनों बहक जाते और अप्राकृतिक सेक्स का मज़ा लेकर अपनी भावनाओं का शमन करते। दोनों ने पढ़ाई ख़त्म कर ली, अब वापस अपने अपने घर जानें का समय आ गया। पर दो बदन एक जान बन गए ईशांत और ऋषि ने एक दूसरे से वादा किया जिएंगे तो एक साथ, मरेंगे तो एक साथ।




 ईशांत और ऋषि दोनों को अच्छी जाॅब मिल गई, तो ज़ाहिर सी बात है घर वाले शादी के बारे में फोर्स करने लगे। ईशांत के घर वालों ने तो शर्वरी पर पसंदगी की मोहर लगा दी थी और ईशांत को बोला, बेटे हमें तो शर्वरी बहुत पसंद है कहीं ओर लड़की ढूँढने जाने की जरूरत ही नहीं। पड़ोस में ही जब सर्वगुण संपन्न लड़की हो और शर्वरी भी तुम्हें बचपन से पसंद करती है, बस तुम हाँ कर दो तो पंडित जी से बोलकर शुभ मुहूर्त निकलवा लें।

ईशांत असमंजस में पड़ गया अब घरवालों को कैसे समझाऊँ की मुझे दुनिया की किसी भी लड़की में कोई दिलचस्पी नहीं। मैं कुछ ओर ही हूँ, 

और मेरी पसंद भी कोई ओर है। ईशांत ने ऋषि को फोन किया और अपने घर की सिच्यूएशन बताई। ऋषि ने कहा यार क्या बताऊँ यहाँ भी वही हाल है माँ पापा ने पच्चीस लड़कियों की बायोडेटा तैयार रखी है और हर रोज़ किसी न किसीसे मिलवाते है, फ़िलहाल तो मैं कोई न कोई नुक्श निकालकर टाल देता हूँ पर समझ नहीं आ रहा क्या करूँ? ऐसा कब तक चलेगा। ईशांत ने कहा ओए तू ही तो कहता था मन मारकर क्यूँ जिए? चल भाग चले किसी मंदिर में भगवान को साक्षी मानकर शादी कर लेते है फिर हमें कोई अलग नहीं कर पाएगा, क्या बोलता है? ऋषि ने कहा done यार। ईशांत ने कहा आमने-सामने घरवालों को रुबरु अपनी प्राॅब्लम बताने में संकोच होगा, ऐसा करते है हम दोनों एक चिट्ठी घरवालों के नाम लिखते है जिसमें हमारी प्रोब्लम, पसंद और भावनाओं के बारे में बता देते है।

 और कुछ दिनों के लिए कहीं चले जाते है, घरवाले मानें तो ठीक है वरना हम अपनी ज़िंदगी यूँहीं गुज़ार लेंगे। दोनों इस ठोस निर्णय के साथ घरवालों के नाम चिट्ठी छोड़ कर निकल गए। और जहाँ से रिश्ता शुरू हुआ था वहीं पूणे आ गए।




अब यहीं पर दोनों ने जाॅब ढूँढ ली और साथ-साथ रहने लगे। दोनों के घर वालों पर बिजली गिरी पहले तो बेटों पर तिरस्कार हुआ! अपने बेटे की इस मानसिक अवस्था को स्वीकार करने के लिए कोई तैयार नहीं था। कैसे समलैंगिक रिश्ते पर मोहर लगाएं, बहू की जगह किसी लड़के को कैसे अपनाएँ। दोनों के घर में विरोध और विद्रोह का वातावरण था, दोनों के घरवालों ने फोन पर खूब समझाया ये समाज व्यवस्था के विरुद्ध है, इस रिश्ते को पूरा समाज नकार देगा।

 पर ईशांत और ऋषि एक दूसरे के बिना ज़िंदगी की कल्पना करने को भी तैयार नहीं थे। दोनों के घरवाले पूना आए दोनों को मनोचिकित्सक के पास ले गए। ढ़ेरों सवाल-जवाब का नतीजा कुछ नहीं निकला, किसी कीमत पर ईशांत और ऋषि लड़की के साथ शादी करने के लिए तैयार ही नहीं हुए। मनोचिकित्सक डाॅक्टर ने घरवालों से कह दिया जो परिस्थिति है उसे स्वीकार कर लीजिए, ऐसे मामलों में जबरदस्ती काम नहीं आती। बाइसेक्शुअल या ट्रांससेक्शुअल होना कोई बीमारी नहीं है इसलिए इसके इलाज का कोई सवाल ही नहीं उठता ये एक जन्मजात स्वभाव है। 

अगर आपने इनकी शादी जबरदस्ती लड़की के साथ कर दी तो दो ज़िंदगीयाँ बर्बाद हो जाएगी। समलैंगिक मानसिकता के शिकार लोग विपरित सेक्स के प्रति आकर्षण का अनुभव नहीं करते, इसलिए अपने पार्टनर को कोई सुख नहीं दे पाएंगे। इनको अपने हाल पर छोड़ दीजिए यही बेहतर होगा। आख़िरकार दोनों के घरवालों को झुकना पड़ा। ईशांत और ऋषि ने एक बच्चे को गोद ले लिया और दोनों एक दूसरे के साथ अपनी पसंद और भावनाओं को सम्मान देकर मज़े से ज़िंदगी जी रहे है। 

न घरवाले उनकी ज़िंदगी में दखल दे रहे है न समाज। ये दोनों समलैंगिक मानसिकता से ग्रसित लोगों की पैरवी करते समाज को समझा रहे है कि अपने बच्चों की भावनाओं को समझिए! उनका तिरस्कार उन्हें अवसाद की गर्ता में धकेल देता है। ऐसे बच्चों का साथ दो और अपनी मर्ज़ी से जीने की आज़ादी और हक दो। कुछ लोग इनको समझते है तो कुछ लोग तिरस्कार करते चार बातें सुनाते है। कुछ लोगों के जीवन की कड़वी सच्चाई है जिसे जो लोग भुगत रहे होते है वही जानते है तिरस्कार इस मुद्दे का हल नहीं इंसानियत दिखाकर अपनाना चाहिए।

भावना ठाकर ‘भावु’ बेंगलोर

#तिरस्कार 

 

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