हम साथ साथ
“ कब तक यूँ ही चुपचाप ग़ुस्सा पीते रहोगे…. माना रिश्ता बना कर रहना चाहिए पर ये कैसा व्यवहार है कि बिना गलती तुम सब बर्दाश्त करते रहते हो ।”निकिता अपने पति मयंक को समझाते हुए बोली
“ निकिता पाँच साल से मेरे साथ हो ना….फिर भी तुम्हें समझ नहीं आया मैं क्यों सब कुछ बर्दाश्त कर ग़ुस्सा पी जाता हूँ…ऐसा नहीं है कि मुझे ग़ुस्सा नहीं आता पर जब भी अपनी माँ की ओर देखता हूँ तो लगता है इसका एक ही तो सपना है जो ये जीते जी देखना चाहती है तो जब तक चल रहा है चलने दो।”कहकर मयंक निकिता को चुप करा दिया
हमेशा की तरह रात को जब सोने से पहले माँ के कमरे में गया तो आज माँ की आँखें नम थी।
“ बिटवा चले जाओ यहाँ से…मनोज और उसकी पत्नी की बातें तुम दोनों क्यों सुनते हो…कमाते तो तुम दोनों हो ही रह लो कहीं दूसरी जगह घर लेकर।” माँ सुबकते हुए बोली
“ माँ जानता हूँ भैया भाभी को मेरा यहाँ रहना पसंद नहीं है वो चाहते हैं या तो मेरी कमाई उनके हाथ में दे दूँ या फिर घर छोड़ कर चला जाऊँ…तुम चलोगी मेरे साथ तो कल ही घर छोड़ दूँगा।” मयंक ने कहा
ये सुनकर माँ चुप रह गई
“ माँ तुम यही तो चाहती हो ना हम दोनों भाई साथ में रहे… मैं बस तुम्हारी ख़ातिर उनकी जली कटी सुनकर रह जाता हूँ… ग़ुस्सा मुझे भी आता पर वो मेरे बड़े है लिहाज़ कर ग़ुस्सा पी जाता हूँ…..बाबूजी के जाने के बाद तुमने बस यही तो माँगा हमसे कि हम दोनों कभी तुम्हें छोड़कर नहीं जाए तो बस मैं उसी आज्ञा का पालन कर रहा हूँ… कहने दो भैया भाभी जो भी कहते मैं एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देता हूँ ।” मयंक माँ का हाथ पकड़ कर उसे सुला कर कमरे से निकला तो बाहर मनोज खड़ा दिखाई दिया उसकी नज़रें झुकी हुई थी और वो भाई की ओर देखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था
“ क्या हुआ भैया आप यहाँ?” मयंक ने पूछा
“ वो माँ को देखने आया था… छोटे मुझे माफ कर दे मेरे भाई… पता नहीं मैं कैसे भूल गया कि बाबूजी के जाने के बाद हम दोनों ने माँ को वचन दिया था हम साथ रहेंगे फिर भी मैं तेरे साथ बदसलूकी करता गया और तू बिना कुछ कहे चुपचाप सब सुनता रहा…अब से ऐसा नहीं होगा।” कहते हुए मनोज मयंक को गले से लगा लिया
स्वरचित
रश्मि प्रकाश
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