हम बूढ़े भले है पर लाचार नही – संगीता अग्रवाल  : short moral story in hindi

अपने घर के एक कमरे मे बीमार पड़ी शारदा जी शून्य मे निहार रही थी । कहने को उनकी बीमारी कोई बड़ी नही थी पर जब मन ही बीमार हो तो तन कैसे बेहतर महसूस कर सकता है । 

” अम्मा जी लीजिए ये खिचड़ी खाकर दवाई ले लीजिए !” तभी उनके घर काम करने वाली कमला ने आवाज़ दी। 

” ना री भूख नही मुझे !” उन्होंने उदासी के साथ कहा।

” अरे अम्मा खाओगी नही तो दवाई कैसे लोगी और दवाई नही लोगी तो ठीक कैसे होगी !” कमला प्यार से बोली।

” क्या करना है री ठीक भी होकर वैसे भी तन का रोग दवाई से ठीक हो सकता है पर मन का क्या वो बीमार हो तो कोई इंसान कैसे ठीक रह सकता है !” शारदा जी बोली।

” अम्मा एक बात कहे आपको छोटा मुंह बड़ी बात होगी पर खुद को रोक भी नही पा रहे कहने से !” कमला बोली।

” तेरी किसी बात का कभी बुरा माना है क्या मैने तू तो मेरे बेटे बहू से बढ़कर है बोल क्या बोलना है !” शारदा जी बोली। 

” अम्मा तुम्हे भैया जी और भाभी ने इस कोठरी मे पटक दिया और तुम चुपचाप यहाँ आ गई । वो कितने कितने दिन यहां झाँकते नही , अपने बच्चो को दादी के पास नही आने देते ना आपका पूरे घर मे डोलना उन्हे पसंद है । फिर भी आप उनके हेज मे मरी जाती है ऐसा क्यो ?” शारदा जी की मुंह लगी कमला ने आखिर मन की बात बोल ही दी । 

” तुझे पता है जब तेरे साहब जी यानि तेरे भैया जी के पापा इस दुनिया से गये थे तब तेरे भैया जी दस बरस के थे । तब मैं कम पढ़ी लिखी औरत जिसने कभी अकेले बाहर कदम तक नही रखा था उसपर क्या बीती थी। वो तो शुक्र है कि अपनी सारी जमा पूंजी लगा ये घर उन्होंने अपने जीवन काल मे बनवा लिया था वरना तो कहाँ जाती मैं ।

तब मुझे अपने बच्चे और खुद का भविष्य अन्धकारमय लग रहा था मायके मे माँ बाप नही थे ससुराल वालों ने मुझे कभी दिल से स्वीकार नही किया तो बेटे के बाद मुझे क्या सहारा देते !” इतना बोल शारदा जी हांफने लगी !

” लो अम्मा पानी पियो और चुप हो जाओ पहले ही तबियत खराब है और करनी है क्या ?” कमला उन्हे पानी पिलाती हुई बोली।

” ना री आज मन की बात बोल लेने दे ! मैने तब खुद को मजबूत बनाया और आँगनवाडी मे खाना बनाने की नौकरी पकड़ी क्योकि इससे ज्यादा कुछ कर नही सकती थी मैं । ये इतना बड़ा घर था तो इसको किराये पर दिया जिससे ज्यादा से ज्यादा पैसा आये और मेरे राघव को किसी चीज की कमी महसूस ना हो । जब घर से बाहर निकली तब पता लगा एक जवान विधवा का घर से बाहर निकलना भी आसान नही होता । खैर किसी तरह बच्चे को पाल रही थी फांकाकशी भी करती जिससे उसकी सब जरूरत पूरी करने के साथ साथ उसके भविष्य के लिए भी जोड़ सकूँ। फिर वो बड़ा हुआ और पढ़ने के लिए पुणे चला गया। मुझे उस वक्त कितनी खुशी मिली थी कि अब कुछ सालो मे मेरा बेटा मेरा सहारा बनेगा । उसकी शादी तक के ख्वाब देखने लगी थी मैं !” शारदा जी इतना बोल अपने आंसू पोंछने लगी। 

” हां इसके बाद तो मुझे पता है भैया जब पढ़ कर नौकरी करने लगे तब उन्होंने साफ बोल दिया वो अपनी पसंद की लड़की से शादी करेंगे और आपने भी बेटे की पसंद को अपना लिया !” कमला बोली।

” हां री क्यो ना अपनाती आखिर कलेजे का टुकड़ा है वो मेरे उसकी खुशी मे ही मेरी खुशी है !” शारदा जी मुस्कुराते हुए बोली।

” पर क्या उनकी पसंद ने आपको अपनाया ..ये कैसे रिश्ते है अम्माजी जहाँ बेटा माँ का त्याग भूल जाये , बहू सास को फालतू सामान सा समझ ले और एक माँ मजबूर सी एक कोठरी मे अपनी मौत की दुआ मांगे । अम्मा जी सास भी तो माँ ही होती है मैने तो अपनी माँ से हमेशा यही सुना और अपनी सास को माँ का दर्जा भी दिया आज भी मेरे घर मे सबसे ज्यादा महत्व मेरी सास को दिया जाता है ना कि पुराने सामान सा उन्हे अलग थलग डाल दिया जाता है ! आप काहे सहती हो ये सब !” कमला हल्के गुस्से मे बोली।

” अपनी औलाद है वो उससे क्या शिकवा करूँ वैसे भी शिकवा करने का फायदा भी क्या जब वो खुद मुझे पुराना सामान समझने लगा है !” शारदा जी फिर एक बार आँख के आंसू पोंछती हुई बोली।

” अम्मा जी जब रिश्तो मे स्वार्थ आ जाये तब वो खोखले हो जाते है। तब उनसे शिकवा नही किया जाता बल्कि उन्हे उनकी औकात बताई जाती है और अपनी कीमत जताई जाती है !” कमला ने कहा तभी बाहर से शारदा जी की बहू ममता जी आवाज़ आई तो कमला चली गई। 

कमला के जाने के बाद शारदा जी सोच मे पड़ गई । यूँ तो उनकी उम्र कोई ज्यादा नही लगभग साठ साल थी पर अपनों की बेरुखी ने वक्त से पहले बूढा कर दिया था उन्हे। अपने अकेले पन से जूझ रही थी वो कहने को बेटा बहू दो पोते थे पर उनके पास आ बैठने की फुर्सत किसी को नही इस बीमारी मे भी एक कमला ही थी जो उनकी सेवा कर रही थी। बेटे ने इंजीनियर बनते ही उनकी आंगन वाड़ी की नौकरी भी छुड़वा दी थी वरना वही मन लगा रहता। तब उन्होंने भी खुशी खुशी छोड़ दी थी नौकरी कि अब बेटा बहू के बच्चो को खिलाऊंगी पर बहू ममता को उनका घर भर मे घूमना ही पसंद नही था तो वो एक कमरे मे सिमट कर रह गई थी। अपने अतीत और वर्तमान की सोचते सोचते उनकी आँख लग गई।

” अरी तू मालकिन है इस घर की इसका पत्ता भी तेरी रजामंदी के बिना ना हिले !” नींद मे उन्हे पति राजेश जी की आवाज़ सुनाई दी जो वो अक्सर ममता जी से कहते थे। 

” देखिये इस घर मे सब मेरी मर्जी के बिना हो रहा है मैं तो इनके लिए कोई महत्व ही नही रखती अब !” शारदा जी बुद्बुदाई ।

” शारदा कमला ठीक कहती है जब कोई तुम्हारा महत्व ना समझे तो उसे बताया जाता है यूँ खुद को मन ही मन घुलाया नही जाता ।” राजेश जी बोले। 

” पर अपने बच्चो को कैसे कोई महत्व समझाये उन्हे तो खुद पता होना चाहिए ना !” शारदा जी बेबसी से बोली।

” जब रिश्तो मे खोखलापन आ जाता है तब औलाद माँ बाप की कीमत नही समझती ऐसे मे माँ बाप का फर्ज है अपने भटके बच्चो को सही राह लाये फिर चाहे उन्हे साम , दंड , भेद की नीति ही क्यो ना अपनानी पड़े पर ये बताना जरूरी है कि हम बूढ़े है पर लाचार नही !” राजेश जी बोले तभी बाहर कुछ गिरने की आवाज हुई और शारदा जी की नींद खुल गई उन्होंने आँखे मलते हुए चारो तरफ देखा पर वो जिसे ढूंढ रही थी वो तो वहाँ थे ही नही ।

शारदा जी मे एक बदलाव सा आया अब वो वक़्त पर खाना , दवा सब लेने लगी और कुछ दिन मे ही ठीक हो गई । हालाँकि शरीर मे कमजोरी थी पर इतनी नही कि चल फिर ना सके। 

” माँ आप बाहर क्यो आई है कुछ चाहिए था तो कमला से बोल देती ममता ने देख लिया तो गुस्सा होगी !” शारदा जी अपने कमरे से उठकर बैठक मे आकर बैठी तो उनके बेटे राघव ने कहा।

” क्यो गुस्सा होगी वो और किस हक से होगी मेरा घर है ये मैं चाहे जहाँ आऊं जाऊं वो कौन होती है मुझे मना करने वाली !” शारदा जी सहमने की जगह लापरवाही से बोली और टीवी चला लिया। 

” ये टीवी किसने चलाया इस समय !” तभी ममता अपने कमरे से ही बोली ।

” मैने चलाया है इस घर की मालकिन ने तुम्हे कोई एतराज है ?” शारदा जी जोर से बोली उनकी आवाज़ सुन ममता गुस्से मे बाहर आई। 

” आप यहाँ क्या कर रही है थोड़ी देर मे मेरी कुछ दोस्त आने वाली है आप अपने कमरे मे जाइये !” ममता बोली।

” नही आज मेरा टीवी देखने का मन है तुम अपनी दोस्तों को अपने कमरे मे बैठा लेना !” शारदा जी बिना बहू की तरफ देखे हुए बोली। 

राघव और ममता दोनो हैरान थे डरी सहमी सी रहने वाली माँ आज इतने आत्मविश्वास से कैसे बात कर रही है । 

” तुम कुछ नही बोलोगे अपनी माँ को ?” ममता पति की तरफ गुस्से से देखते हुए बोली।

” माँ आप अपने कमरे मे जाओ सुना नही आपने ममता की दोस्त आने वाली है !” राघव पत्नी के आगे बेबस हो माँ से बोला।

” देख बेटा तू भले बीवी का गुलाम है पर ये मत भूल ये घर मेरे नाम है और मैने आज ही वकील को बुलाया है !” शारदा जी टीवी बंद कर बेटे के पास आ बोली।

” वकील को पर क्यो ?” ममता और राघव दोनो चौंक कर बोले।

” अपनी वसीयत करने के लिए !” शारदा जी वापिस सोफे पर बैठती हुई बोली।

” वसीयत पर क्यो आपका इकलौता बेटा होने के नाते सब पर मेरा ही तो अधिकार है !” राघव एकदम से बोला।

” वाह बेटा अधिकार याद रहा पर कर्तव्य ? उसका क्या !” शारदा जी बोली।

” हां तो हम कर्तव्य भी तो निभा रहे है ना !” इस बार ममता बोली।

” हां मां को एक कोठरी मे पटक देना वो भी घर की नौकरानी के भरोसे । उसकी बीमारी मे भी उसके कमरे मे झाँक कर ना देखना कि वो जिंदा है या मर गई। उसे सबसे अलग थलग रखना मानो वो माँ नही कोढ की बीमारी है । अगर यही फर्ज निभाना है तो ये तो अकेले रहते हुए भी मैं कर सकती हूँ ।

इसलिए मैने निश्चय किया है घर को किराये पर देने का तुम लोग आज ही मेरी कोठरी मे अपना सामान ले जाओ मैं एक कमरा अपने लिए रखकर घर का बाकी हिस्सा किराये पर दे रही हूँ जिससे मेरे खर्च निकल सके और तुम्हे तुम्हारे फर्ज से मुक्ति मिल सके !” शारदा जी के इतना बोलते ही राघव और ममता के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी। दोनो तेजी से माँ के पास आकर बैठ गये उस माँ के पास जिससे बात किये भी उन्हे जाने कितने दिन हो गये थे। 

” माँ ये क्या कह रही हो आप उस कोठरी मे हम कैसे रह सकते है और आपको तो पता है आपका बेटा इंजीनियर है उससे मिलने वाले आते रहते है आपकी बहू की सहेलियाँ आती है हमारी क्या इज्जत रह जाएगी आप ये भी तो सोचिए और फिर आपके पोतो की पढ़ाई लिखाई !” राघव माँ के कांधे पर हाथ रख बोला।

” वाह बेटा जब माँ वहाँ रह रही थी तब कोई दिक्कत नही अब खुद को रहना पड़ेगा तो हवा खराब हो रही तुम दोनो की और कौन से पोते जिन्हे तुम मेरे पास तक नही आने देते उनके बारे मे मैं क्यो सोचू मैने निश्चय कर लिया बस ये घर किराये पर देने का और मेरे बाद इस घर को अनाथाश्रम को दान करने का जिसकी देखभाल कमला करेगी !” शारदा जी ने कहा।

” माँ हमें माफ़ कर दो सच मे हम स्वार्थ मे अंधे हो गये थे और इस घर की मालकिन और अपनी माँ का ही अपमान कर बैठे हमें माफ़ कर दीजिये पर हमें हमारी गलती की इतनी बड़ी सजा ना दे !” ममता हाथ जोड़ते हुए बोली।

सच मे रिश्ते कितने खोखले हो गये है आज जब घर हाथ से जाता दिख रहा तो उन्हे उस माँ के आगे हाथ जोड़ने से भी गुरेज नही जिससे उन्हे बात करना तक गँवारा नही । 

” ठीक है क्योकि तुम मेरे बच्चे हो सिर्फ कहने को वरना तुमने बच्चे होने का कोई फर्ज नही निभाया सिर्फ एक खोखला रिश्ता है तुम्हारे साथ मेरा ..पर फिर भी मैं माँ हूँ मैने तो कभी तुम्हे खुद से अलग नही माना तो उसी रिश्ते के नाते मैं तुम्हे एक मौका देती हूँ ।

मै तुम्हारे वाले कमरे जोकि पहले मेरा था उसमे रहूंगी बाकी बचे दो कमरे तुम लोगो के है और हाँ वो मेरी कोठरी भी ले लेना । उपर की दोनो मंजिल अब मैं किराये पर चढ़ाऊंगी क्योकि मुझे भी पैसा चाहिए। अगर मुझे तुम्हारी तरफ से जरा भी उपेक्षा मिली तो मै फैसला लेने मे एक पल की देर नही करूंगी । चलो अब ऊपर से अपना सामान हटा लो ।” शारदा जी ने कहा।

” पर माँ केवल दो कमरे ?” ममता बोली।

” हाँ तो एक तुम्हारा एक तुम्हारे बच्चो का फिर ये बैठक भी तो है अगर मंजूर नही तो तुम किराये का घर देख सकते हो !” शारदा जी सख्ती से बोली । हालाँकि वो मन ही मन तड़प रही थी अपने बच्चो से ऐसा व्यवहार करती पर अब अपना महत्व दिखाने के सिवा कोई चारा भी तो नही छोड़ा था बच्चो ने। 

” नही नही हम दो कमरों मे रह लेंगे ज्यादा हुआ तो आपकी कोठरी को सही करा लेंगे !” राघव एकदम से बोला।

अगले तीन दिनों मे शारदा जी ने ऊपर की मंजिल किराये पर दे दी। साथ ही अपनी वसीयत भी बना दी जिसमे घर का अस्सी प्रतिशत हिस्सा उन्होंने अपने दोनो पोतो को दिया बाकी बीस प्रतिशत कमला को क्योकि इतने साल निस्वार्थ सेवा तो उसी ने की उनकी बेटा बहू तो अब भी स्वार्थवश उनकी सेवा कर रहे थे। हालाँकि उन्होंने वसीयत की भनक अभी अपने बेटा बहू को नही लगने दी थी। 

दोस्तों जब बच्चे अपने माता पिता का ध्यान ना रखे तो माता पिता का फर्ज है ऐसे खोखले रिश्तो को उनकी औकात याद दिला दे और उन्हे अपना महत्व बताये कि भले हम बूढ़े हो गये है पर लाचार नही। 

क्या आप शारदा जी के फैसले से इत्तेफाक रखते है ? 

धन्यवाद आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल 

#खोखले रिश्ते

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1 thought on “ हम बूढ़े भले है पर लाचार नही – संगीता अग्रवाल  : short moral story in hindi”

  1. Really very nice story and Today’s all parents may gets their right for teach to their children that how to behave own parents after their retirement of jaob or going old age.

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