हम अभागन नहीं हैं – प्रतिभा भारद्वाज ‘प्रभा’ : Moral Stories in Hindi

आज बहुत खुशी का दिन था….पूरे घर को फूलों से और रंगीन बल्बों से सजाया गया था…..आखिर नीलिमा की जिंदगी में इतने सालों बाद खुशी का अवसर आया था…

उसकी बेटी श्रुति आज अधिकारी बन पहली बार घर आ रही थी… इतनी तैयारियां देख नीलिमा की आखों से खुशी के आसूं झलक आए और वो बीते दिनों में खो गई….

आज से 25 वर्ष पूर्व जब उसका विवाह प्रखर के साथ हुआ था तब वह कितनी खुश थी….कितने सपने संजोए वह प्रखर के साथ अपने ससुराल आई थी….उसका ससुराल एक भरापूरा परिवार था जिसमें उसकी दादी सास, सास– स्वसुर, 1 ज्येष्ठ और जीठानी और 1 देवर….उसके परिवार में किसी चीज की कमी नहीं थी…

सब खुश थे कुछ महीने ऐसे ही खुशी खुशी व्यतीत हो गए….लेकिन भविष्य किसने देखा है कि कैसा होगा?…..सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था, कुछ ही महीनों में नीलिमा की वजह से उस घर में किलकारी गूंजने वाली थी कि उसकी खुशियों को किसी की नजर लग गई…एक भयानक सड़क दुर्घटना में प्रखर की मौत हो गई…

नीलिमा की तो मानो दुनिया ही उजड़ गई….कुछ लोग नीलिमा को सहानुभूति दे रहे थे कि ऐसे रोने से क्या होगा ….तुम अपना नहीं तो कम से कम होने वाले बच्चे का तो सोचो…इस तरह रोने से उस पर क्या प्रभाव पड़ेगा….तो कुछ लोग उसके लिए बेचारी, अभागन  जैसे शब्दों का प्रयोग कर रहे थे जो उसके दिल को चीर कर रख देते थे।

2 महीने बाद नीलिमा ने एक प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया, बस उसी दिन से उसके प्रति सबका रवैया बदल गया ..सारे ससुराल वाले जो उसे प्यार करते थे नफरत करने लगे….बेटा होता तो शायद वह प्रखर की निशानी और उसका वंश मानकर उसे दिल से अपना लेते लेकिन बेटी…

अब तो कोई नीलिमा को तो कोई उस नवजात बच्ची को कोस रहा था…कोई कहता कि नीलिमा ही अभागन है तो कोई उस बच्ची के लिए कहता कि जन्म से पहले ही अपने पिता को खा गई….बेचारी उस नीलिमा पर क्या बीत रही होगी किसी ने नहीं सोचा…

कुछ समय तक तो ससुराल वालों ने दोनों को साथ रखा जिस पर भी बीच बीच में यह कह दिया जाता कि वह अपनी बच्ची के साथ मायके रहने जाना चाहे तो जा सकती है….बेचारी नीलिमा जाती भी तो कैसे वहां भी उसके भैया भाभी ही थे जिन पर वह बोझ नहीं बनना चाहती थी….

इसलिए चुपचाप अपने ससुराल वालों का व्यवहार सहन करती रही….इतनी पढ़ी लिखी भी नहीं थी कि कहीं जॉब कर अपना और अपनी बच्ची का पालन पोषण कर लेती….ससुराल वालों का व्यवहार दिन पर दिन बदलता जा रहा था और इतना बदल गया कि उसे एक नौकरानी की तरह रखा जाने लगा ….

उसके देवर की शादी में उसे और उसकी बच्ची को अपशकुनी कह कर किसी भी शुभ कार्य में नहीं आने दिया जबकि घर के बाकी सभी कामों की जिम्मेदारी भी उसी की थी….जब देवरानी ने भी आकर उसके साथ नौकरों जैसा सुलूक किया तो उसके मन में बहुत ठेस पहुंची ….

अब उसकी बच्ची जिसका नाम उसने श्रुति रखा था, 3 साल की भी हो चुकी थी और घर वालों के व्यवहार से उसके बालमन पर बुरा असर  पड़ रहा था तब नीलिमा ने अपने और अपनी बच्ची के लिए ठोस कदम उठा लिया…कुछ समय पहले उसे पता चला कि

उसके पडौस में रहने वाली मीनू के मां बाबूजी उसी शहर में अकेले रहते हैं और उन्हें किसी सहायिका की बहुत ही जरूरत है … नीलिमा ने जब मीनू से बात की तो वह बहुत खुश हो गई और उसने नीलिमा से कहा,” अरे नीलिमा मैं बता नहीं सकती कि

तुमने मेरी कितनी बड़ी चिंता दूर कर दी, मैं रोज रोज वहां जा नहीं सकती इसलिए चिंता लगी रहती है मां बाबूजी की, तुम उनकी ठीक से देखभाल कर लोगी मुझे विश्वास है, वहां तुम्हारी रहने की भी व्यवस्था हो जायेगी….” 

नीलिमा उसी दिन अपनी बेटी को लेकर मीनू के साथ उसकी मां के यहां आ गई थी और वहीं एक कमरे में रहकर उनकी जी जान से सेवा करने लगी, मीनू के मां बाबूजी का भी मन श्रुति से लगा रहता था। मीनू की मां के कहने पर पास के ही एक दो घरों में भी उसे बर्तन, झाड़ू पौंछा का काम मिल गया जिससे उसका और उसकी बेटी का गुजारा आसानी से हो जाता था, उसने अपनी बेटी का एडमिशन भी पास के स्कूल में करवा दिया। 

कुछ सालों में लोगों के समझाने पर उसने थोड़ा संघर्ष कर अपनी ससुराल से अपने हिस्से के कुछ रुपए ले लिए जिससे उसने यह छोटा सा घर बनवा लिया था जो उसके और उसकी बेटी के लिए पर्याप्त था,

बाकी के खर्च के लिए नीलिमा अपनी परवाह किए बिना पूरे दिन  दूसरों के घरों में मेहनत करती जिससे श्रुति की पढ़ाई में कोई कमी न रहे….नीलिमा पढ़ाई के महत्व को अच्छे से समझ चुकी थी और श्रुति भी पढ़ाई में होशियार थी जिसने जी तोड़ मेहनत की।

आज नीलिमा और श्रुति के ही संघर्ष का फल था जो लोगों से चीख चीख कर कह रहा था कि हम अभागन नहीं हैं। 

नीलिमा बीते दिनों की याद में ही खोई थी कि तभी गाड़ी के हॉर्न और लोगों के शोरगुल जो श्रुति के नाम के जयकारे लगा रहे थे, से उसका ध्यान टूटा और वह दौड़कर आरती की थाली लेकर बाहर आई आखिर वह और उसकी बेटी अपशकुनी नहीं थीं, आज उन्हें कोई शुभ कार्य करने से रोकने वाला नहीं था, सब उनके नाम के जयकारे लगा रहे थे।

नीलिमा ने ही श्रुति की आरती उतारी और लोगों ने उसे फूलों की माला पहनाई तो श्रुति और उसकी मां की आखों से खुशी के आंसू छलक पड़े और दोनों मां बेटी एक दूसरे के गले लग गई। आखिर आज उनकी जिंदगी की सबसे बड़ी जीत थी जो यह साबित कर रही थी कि वे अभागन नहीं हैं।

प्रतिभा भारद्वाज ‘प्रभा’

मथुरा (उत्तर प्रदेश)

#अभागन

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