आज से लगभग 20 वर्ष पहले सुगंधा का विवाह सुनील से हुआ था। सुगंधा एक छोटे से शहर से मुंबई जैसे बड़े शहर में विवाह उपरांत आ गई थी। वह बहुत सीधी और संस्कारी थी। उसने अपने बड़ों से यही सीखा था कि पलट कर जवाब नहीं देना चाहिए और यदि सामने वाला बहुत गुस्से में हो तो हमें उस समय शांत रहना चाहिए और बाद में उसे अपनी बात समझानी चाहिए।
उसका पति सुनील एक बहुत ही गुस्से वाला व्यक्ति था और उसकी सास एक ताने मारने वाली औरत थी। लेकिन सुगंधा ने कभी भी अपनी सास को पलट कर जवाब नहीं दिया था और अपने पति के गुस्से को भी चुपचाप सहन कर लेती थी।
उसकी सास इस बात का भरपूर फायदा उठाकर उसे किसी न किसी बात में ताने मारती थी। वह समझती थी कि सुगंधा उनसे डरती है क्योंकि गरीब घर की लड़की अच्छे घर में आ गई है। खुद के घर को अच्छा घर होने का उन्हें बहुत गुमान था। उन्हें लगता था कि अगर हम सुगंधा को अपनी बहू नहीं बनाते तो यह किसी गरीब घर में धक्के खा रही होती।
एक बार सुगंधा की मां ने गाजर, गोभी और शलगम का खट्टा-मीठा मिक्स अचार बनाकर दिया। सुगंधा की मां यह वाला अचार बहुत अच्छा बनाती थीं और सुगंधा को भी यह पसंद था। लेकिन उसकी सास ने अपना घमंड दिखाते हुए सुगंधा से कहा-“यह क्या दिया है तेरी मां ने, यह कोई नहीं खाएगा हमारे घर में।”और ऐसा कहकर वह पूरा मर्तबान उठा कर
उसे पास वाली झोपड़ियों में बांट आईं। यहां तक की उन्होंने एक टुकड़ा सुगंधा को भी खाने नहीं दिया। सुगंधा घर में क्लेश ना हो ,अशांति ना फैले इसीलिए कुछ नहीं बोली, लेकिन उसे बहुत बुरा लगा। उसने अपनी मां को मना कर दिया कि आगे से अचार बनाकर मत देना। इन लोगों को तुम्हारी मेहनत की कोई कद्र नहीं है।
सुनील, सुगंधा से अपनी पूरी सेवा करवाता था। जब तक वह काम पर नहीं जाता था, तब तक वह अपने छोटे-छोटे काम बता कर उसे चकरघिन्नी की तरह घुमाता रहता था। कभी कहता, पानी ले आ, चाय बना दे। नाश्ता, कभी कपड़े, कभी लस्सी बना दे। आज तो मैं शरबत पीऊंगा। इन कामों से कभी भी सुगंधा को कोई शिकायत नहीं थी
लेकिन जब सुनील बिना किसी गलती उसे बुरी तरह अपमानित करता था, तब सुगंधा से बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होता था। और खास तौर पर बाहर वालों के सामने या फिर बच्चों के सामने। अब तो बच्चे भी समझने लगे थे क्योंकि बड़े हो गए थे। सुनील बात-बात पर सुगंधा के माता-पिता और उसके भाई बहन को भी गालियां देता था।
अब इतने वर्ष बीत जाने पर सुगंधा ने अपने अपमान पर और अपने मायकेवालों के अपमान पर विरोध करना शुरू कर दिया था। उसे पता था कि उसने बहुत देर कर दी है लेकिन उसे विरोध करने के लिए इन लोगोंने ही मजबूर किया था।
उसने अपनी सास को भी गलत बात बोलने पर जवाब देना शुरू कर दिया था। इतने सालों तक चुप रहने वाली सुगंधा के मुंह से जवाब सुनकर उसकी सास बर्दाश्त नहीं कर पाती थी और कहतीथी कि “तू अब घर में शांति नहीं चाहती, तू एक अशांति फैलाने वाली औरत है।”
एक बार सुनील ने सुगंधा से कहा-“मैं दुकान जा रहा हूं, जब मैं शाम को वापस आऊंगा तब तक ड्राइंग रूम को पूरा अच्छी तरह चमका देना।”
सुगंधा को उस पर बहुत गुस्सा आया। उसे लगा कि यह तो हुकुम चलाना हुआ। मेरा भी घर है, जब मेरा मन होगा, मैं अपने आप साफ कर लूंगी। लिहाजा उसने उस दिन अपनी मर्जी चलाई और रोज की तरह हल्की-फुल्की सफाई करी। शाम को आकर सुनील उसके ऊपर चिल्लाने लगा और गालियां देने लगा। तब सुगंधा ने कहा-“मेरा शरीर भी थकता है, कभी-कभी मेरा भी आराम करने का मन होता है। मेरी भी उम्र बढ़ रही है। तुम हिटलर मत बनो, जब मेरा मन होगा, तब करूंगी।”
सुनील चिल्लाने लगा। उससे भी सुगंधा का किसी काम को मना करना बर्दाश्त नहीं हुआ।
सुनील-“जो मैं बोलूंगा, वह तुम्हें करना पड़ेगा क्योंकि यह मेरा घर है, नहीं तो तुम यहां से जा सकती हो।”
सुगंधा-“ठीक है, संभालो अपना घर, इतने सालों तक सब कुछ करने के बाद भी यह घर मेरा नहीं है तुम्हारा ही है इसीलिए तुम ही संभालो, मैं सुबह होते ही चली जाऊंगी।”
अब इतना सुनकर सुनील और उसकी मां के होश उड़ गए क्योंकि उनके उनके बस की बात नहीं थी घर संभालना। दोनों चुपचाप अपने-अपने कमरों में जाकर सो गए।
सुनील ने सॉरी तो नहीं बोला, लेकिन वह सुबह शांत और उसकी मां ने भी कोई ताना नहीं मारा था। थोड़े दिनों तक सब कुछ ठीक था, लेकिन कुत्ते की दुम रहती तो टेढी ही है। पर अब सुगंधा ने उन्हें हैंडल करना सीख लिया था। वह भी घर में अशांति नहीं चाहती थी।
स्वरचित ,अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली
#अशांति