Moral stories in hindi : सुनिए… आज दिन में पापा का फोन आया था, कल उन्होंने हमें घर पर मिलने के लिए बुलाया है, चलें क्या..? पापा ने बुलाया है तो चलते हैं, जरूर कुछ जरूरी काम होगा, कल तुम तैयार रहना, मैं ऑफिस से हाफ डे लेकर तुम्हें वहां ले चलूंगा, निमिषा के ऐसा कहने पर राघव ने जाने के लिए हां कर दिया!
अगले दिन निमिषा राघव के साथ अपने मायके पहुंच गई। मम्मी पापा भैया भाभी और दोनों भतीजा भतीजी निमिषा को देखकर बहुत खुश हुए। निमिषा जब भी वहां जाती थी, उसे देखकर उसका परिवार हमेशा ही खुश होता था। बद्री प्रसाद जी के दो बेटा बेटी निमिषा और कुणाल थे, दोनों बच्चों की शादी भी हो गई, निमिषा का ससुराल इसी शहर में है, इसलिए वह कभी-कभार मिलने आती रहती है, निमिषा के ससुराल में उसके पति के अलावा सास ससुर और एक कुंवारी ननद है। निमिषा अपने मायके की तरह ससुराल में भी सबकी लाडली है।
थोड़ी देर इधर-उधर की बातचीत के पश्चात बद्री प्रसाद जी ने अपनी वह बात कहना प्रारंभ किया जिसके लिए उन्होंने खास तौर से निमिषा को घर बुलाया था।
बद्री प्रसाद जी कहने लगे….. देखो निमिषा बेटा.. मैंने आज तक तुम् मे और कुणाल में कभी कोई भेदभाव नहीं किया। मेरे लिए तुम दोनों बच्चे मेरी दो आंखों के तारे हो, किंतु भविष्य में आगे कोई गलतफहमी हो या तुम दोनों बहन भाइयों के रिश्ते में कोई मनमुटाव हो, उससे पहले मैं चाहता हूं कि मैं अपनी यह सारी संपत्ति तुम दोनों बहन भाइयों में बराबर से बांट देना चाहता हूं।
तुम्हें तो पता ही है अब तुम्हारी मां और मेरी तबीयत भी ज्यादा सही नहीं रहती है और समय का भी कोई भरोसा नहीं है। इसलिए मैं अपने सामने ही अपनी संपत्ति का बंटवारा करना चाहता हूं। मैंने इसके लिए वकील से कागजात भी तैयार करवा लिए है, तुम अपना हिस्सा लेकर मेरा बोझ काम कर दो। और तुम्हारे भैया को भी इसमें कोई एतराज नहीं है!
अपने पापा की ऐसी बातें सुनकर निमिषा ने एक बार पूरे परिवार को और फिर अपने पति को देखा, फिर उसने तुरंत अपना फैसला सुना दिया…..! पापा.. क्या आपने मुझे अभी इतना ही पहचाना है ..?क्या कभी भी मेरी किसी भी बात से आपको ऐसा लगा कि मैं आपकी संपत्ति में किसी भी प्रकार का कोई हिस्सा चाहती हूं..? हां बिल्कुल, मैं अपना हिस्सा चाहती हूं,
…. किंतु पापा.. मुझे आपकी संपत्ति में नहीं, मायके के प्यार में हिस्सा चाहिए।. मैं मेरी “पहचान” एक लालची या स्वार्थी बहन बेटी या बुआ के रूप में नहीं चाहती, मैं हमेशा से यही चाहती थी कि मेरी पहचान तो ऐसी हो ..जहां मेरी भाभी मेरी हर त्योहार पर राह देखें, मेरा भाई.. हर राखी , दूज पर मेरा बेसब्री से इंतजार करता रहे, और हर छुट्टियों में मेरे भतीजा भतीजी मुझ से कहे… बुआ.. कब आओगी।,
मेरे बच्चे अपने मामा मामी से अपनी हर जिद्द पूरी करवाने को तैयार रहे और मामा मामी उनकी जिद् पूरी करने के लिए उनकी फरमाइशों का इंतजार करें। मैं कभी नहीं चाहती की संपत्ति के लालच में मेरी अपनों से दूरी बन जाए।, मैं चाहती हूं… मेरे ससुराल में कभी भी मुझे अपने मायके वालों का इंतजार ना करना पड़े, वह मेरी एक आवाज लगाने से पहले तैयार रहें,
वह मेरे हर सुख दुख में मेरे साथ खड़े हो, भात या अन्य किसी भी प्रोग्राम में मेरा भाई मेरी खुशियां लेकर खड़ा हो, जब इतना सारा यह धन मुझे मिल रहा है तो मैं इस भौतिक संपत्ति के लालच में इतनी सारी खुशियों को क्यों बर्बाद करूं ।नहीं पापा… मुझसे यह नहीं होगा। तब बद्री प्रसाद जी ने राघव की ओर देखकर कहा….
बेटा..मेरी बात तो यह समझ नहीं रही, हो सकता है तुम्हारी बातें मान ले! एक बार तुम इसे समझा कर देखो! नहीं पापा… आज मुझे अपनी निमिषा पर पहले से भी ज्यादा गर्व हो रहा है ,अगर यह मुझसे पूछती तब भी मैं इसका इन बातों में साथ देता! मुझे तो बल्कि डर लग रहा था,
कहीं निमिषा संपत्ति में अपने हिस्से के लिए हां ना कर दे! सच में पापा, हमें आपकी संपत्ति में से कुछ नहीं चाहिए! बस हमेशा रिश्ते और उन रिश्तों का प्यार मर्यादा बनी रहे । तब निमिषा ने भी कह दिया.. सुन लिया ना पापा, मुझे संपत्ति में हिस्सा नहीं अपना मायका चाहिए, मैं इसी हक और अपनेपन से अपने मायके में आति रहूं, और निमिषा की यह बात सुनकर सभी की आंखें खुशी से झिलमिलाने लगी।
हेमलता गुप्ता स्वरचित
पहचान.
अद्भुत कहानी।