Moral Stories in Hindi : “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? मेरी बेटी की इस ड्रेस को छूने की, अपने गंदे हाथों से तुमने इसे भी मैला कर दिया, उसे आज ही सगाई की पार्टी में पहनकर जानी है, इससे दूर हटो।” शालू ने गुस्से से अपनी काम वाली सविता को डांट दिया।
“नहीं मैमसाब, मै तो पौंछा लगा रही थी, और बेबी की ड्रेस जमीन पर लटक रही थी, बस उसे ही ऊपर कर रही थी, ताकि वो गीली नहीं हो।” सविता ने कहा।
“वाह!! क्या बहाना बताया है, ड्रेस ऊपर रखनी थी तो पहले हाथ साफ करती फिर हाथ पौंछकर ड्रेस को छूती, तुम्हारी तो नीयत ही खराब है, तुम लोगों से तो बात ही करना बेकार है, तुम्हें तो हमारे कपड़ों को बस खराब करना होता है, खुद को तो ढंग के कपड़े पहनने को मिलते नहीं है, फटेहाल सी रहती है, अब बकवास बंद कर, अपना काम कर।
थोड़ी देर बाद सविता पानी की बाल्टी लेकर बाहर शालू की कार पौछने को चली गई, चमचमाती कार देखकर उसका मन मचल गया, वो झट से कार की सीट पर जाकर बैठ गई, उसे कार में बैठा देख शालू गुस्से से तिलमिलाई,” तेरी हिम्मत कैसे हुई? मेरी कार में बैठने की, ये मत भुल तू इस घर की नौकरानी है, यहां काम करती है, मालकिन बनने के सपने मत देख और इस बार तेरा कोई बहाना नहीं चलेगा! तुझे इस महीने के तीन दिन की पगार काटकर मिलेगी, तूने मेरी कार को गंदा कर दिया।”
चल फिर से सारी कार साफ कर मुझे बेबी को लेकर फंक्शन में जाना है।” शालू ने अपनी बात खत्म की।
लेकिन तब तक सविता खून के आंसू रो चुकी थी, वो शालू के यहां घर की साफ-सफाई और बर्तन का काम करती थी, लेकिन शालू का व्यवहार जरा भी सही नहीं था, शालू बेहद ही घमंडी, शक्की और पैसे वाली महिला थी, पैसों के बल पर वो किसी का भी अपमान कर देती थी और किसी को भी कुछ भी कह देती थी, इसलिए उसके घर कामवाली ज्यादा टिकती नहीं थी,
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सविता की भी मजबूरी थी उसे कहीं ओर काम नहीं मिल रहा था, जलीकटी सुनने को मिलेगी पर पैसा भी तो मिलेगा, यही सोचकर वो महीने भर से यहां पर काम कर रही थी।
दोपहर के वक्त शालू अपनी बेटी को लेकर कार से अपने रिश्तेदार की सगाई के फंक्शन में चली गई, रात काफी हो चुकी थी, सब लोग लगभग जा चुके थे, फंक्शन शहर से दूर एक फार्म हाउस में था, शालू भी रात को अपनी कार लेकर वापस चली, लेकिन शहर में घुसते ही उसकी कार का टायर पंक्चर हो गया, पति अतुल भी ऑफिस टूर पर गया था, इसलिए वो साथ नहीं आया था।
शालू ने काफी तलाश की पर उसे आस-पास कोई पंक्चर की दुकान नहीं मिली, उसके मोबाइल की बैटरी भी डाऊन हो गई थी, अपनी बेटी के साथ वो सुनसान सड़क पर खड़ी थी, रात हो रही थी और मनचलों की भीड़ बढ़ रही थी, पास मे ही दारू का ठेका था।
आने-जाने का कोई साधन भी नजर नहीं आ रहा था, वो ही बेवकूफ थी जो रात होने दी, थोड़ी जल्दी ही निकल कर आना चाहिए था, पर बार -बार अपने को मन ही मन में दोष दे रही थी।
फिर भी वो हिम्मत करके खड़ी थी, पर कोई मदद नहीं कर रहा था, थोड़ी दूर पर उसे कुछ रोशनी दिखाई दी, वो उसी रास्ते पर बेटी को लेकर चल दी, अभी चौदह बरस की थी पर रूप-रंग और लंबाई काफी थी, उस पर गोरा रंग और लाल ड्रेस परी जैसी लग रही थी, शालू अपनी बेटी को लेकर चिंतित थी, उसने कार को वहीं लॉक किया और उस बस्ती की तरफ चल दी।
बस्ती वालों की आंखें ये देखकर फट रही थी, भला आसमान की अप्सरा उनके कीचड़ में कैसे चली आ रही है?
थोड़ी दूर गई थी कि सामने सविता को देखकर चौंक गई और थोड़ी आश्वस्त भी हुई।
मैमसाब, आप यहां कैसे? और साथ में बेबी भी, जिसकी ड्रेस में कीचड़ से कई दाग लग चुके थे, उसे देखकर सविता हैरान थी।
“सविता, तुम यहां घर से इतनी दूर रहती हो? शालू ने सवाल किया।
“नहीं, मै तो आपके घर के पीछे वाली बस्ती में रहती हूं, यहां तो मेरी चचेरी बहन रहती है, उसी के घर मिलने आई थी, रात यहीं रूककर सवेरे जाने वाली है, मेरा मरद गांव गया है तो मै अकेली वहां क्या करती?
सविता को शालू ने सारी बातें बताई, और रात को कहीं रूकने को कहा।
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सविता उसे अपनी चचेरी बहन की खोली में ले गई, उसमें सोने की जरा भी जगह नहीं थी, बस सब बैठकर रात गुजार सकते थे, थोडी देर बाद खोली की बत्तियां बंद कर दी, मैमसाब, बेबी को आप इस कंबल से ढक लें, यहां रात को भेड़िए घूमते हैं, शालू डर गई, उसने बेबी की ड्रेस को छुपाकर उस पर कंबल ओढ़ा दिया और चुपचाप उन्होंने वहां बैठकर रात गुजार ली।
सवेरे होते ही शालू ,सविता और बेबी वहां से निकलकर कार के पास आ गये, लोगो की आवाजाही शुरू हो गई, किसी ने बताया थोड़ी दूर पर पंक्चर की दुकान है जो रात को बंद हो गई थी, कार का पंक्चर ठीक हुआ, शालू ने सविता को कार में बैठने को कहा, तो सविता सहम गई।
“मैमसाब, मै कैसे आपकी कार में बैठ सकती हूं? मेरी हिम्मत नहीं हो रही है!!
“सविता, आज तुम्हारी वजह से मै और बेबी दोनों बच गये है, मै हमेशा घमंड में रहती थी, पर पैसा हर जगह काम नहीं आता है, आपका व्यवहार भी अच्छा होना चाहिए, और किसी का अपमान और तिरस्कार करने से पहले सौ बार सोचना चाहिए।”
आप पर जब मुसीबत आती है तो आपके अच्छे कपड़े, कार सब रखे रह जाते हैं, लोगों की दुआएं, साथ ही काम आता है, आज तू नहीं मिलती तो जाने हम दोनों का क्या होता?
शालू की आंखों में पछतावा था, सविता हिम्मत करके कार में बैठ गई।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित