संगीता की शादी को अभी कुछ महीने ही हुए थे। उसने नोटिस किया कि उसके ससुराल में उसके बड़े ननदोई जी का कुछ ज्यादा ही दबदबा है।उनकी छवि ही सबके सामने ऐसी बन चुकी थी कि ससुराल में कोई भी काम उनसे पूछे बिना और उनकी मर्जी के बिना नही होता था।सास ससुर भी उनको बहुत मान देते थे आखिर वो घर के बड़े दामाद जो थे।छोटी दोनो बहने हालांकि दिल में इस बात का हमेशां गुस्सा रखती
कि उनके पतियों की इतनी पूछ गिछ नही होती जितने बड़े दामाद की होती थी। बड़े दामाद जी जो कह देते बाकी दोनो को बिना पूछे ही हर बात में उनकी सहमति मान ली जाती।ननद ननदोई और उनके बच्चे जब मन करता आ जाते और सारा परिवार उनकी आवभगत में लग जाता।
लेकिन संगीता को उनकी एक बात बहुत ज्यादा खटक रही थी।वो आते जाते या जब भी मौका मिलता संगीता को कहीं भी छू लेते।वो जब खाना परोसने जाती कभी पीठ पे हाथ फेर देते।या फिर मौका मिलता तो गाल को छू लेते।उसने ये भी नोटिस किया कि उसकी जेठानी भी ये सब चुपचाप सहन कर रही थी शायद डर से या अपनी इज्जत की वजह से।
कहते हैं औरत तो किसी की नज़र देख कर ही पहचान लेती है कि वो बंदा उसे किस नज़र से देख रहा है।ऐसे में संगीता की भी छठी इंद्री से उसे कुछ अंदेशा हो रहा था।उस से ननदोई जी की ये हरकते सहन नही हो रही थी।कहती भी तो किस से..पतिदेव तो अपने बहनोई के अंध भक्त थे।
लेकिन वो हरदम यही सोचती रहती कि कुछ तो सोचना पड़ेगा ननदोई जी की हरकतों पर लगाम लगानी ही पड़ेगी नही तो उनकी हिम्मत बढ़ती ही जाएगी।
एक दिन उसे मौका मिल ही गया ।उस दिन सारा परिवार एक साथ था।ननदोई जी ने मौका मिलते ही संगीता के गाल पर हाथ फेरा और फिर गाल पर ही चिकोटी काट ली। संगीता जोर से चिल्ला उठी,”ये क्या कर रहे हैं आप जीजा जी..मुझे आपकी ये हरकतें बिल्कुल भी पसंद नही हैं।आप जरा मुझ से दूर रह कर बात किया कीजिये..!!”
ये सब इतना अचानक हुआ कि सब हक्के बक्के रह गए।ननदोई जी की हालत तो देखने लायक थी शायद उन्हें उम्मीद नही थी कि कभी कोई उनके सामने भी आवाज़ उठा पायेगा..और वो अपनी हरकत से मुकर भी नही सकते थे क्योंकि ये सब कुछ सब की मौजूदगी में हुआ था।
बाद में जेठानी ने भी संगीता की हिम्मत के लिए उस की पीठ थपथपाई और कहा,”अगर आज तुम हिम्मत नही करती तो मेरी तरह तुम भी जाने कब तक ये सब झेलती रहती।”
मौलिक एवं स्वरचित
रीटा मक्कड़