दरवाजे पर खड़ी अनन्या के हाथ में अनजबी के द्वारा पकड़ाए चाकलेट ने सन्नो के दीमाग को झकझोर के रख दिया , झकझोरे भी क्यों न ,महज चौदह वर्ष की उम्र में मां बनना अपने आप में आश्चर्य की बात होती थी उस जमाने में जब लड़कियों का मासिक धर्म ही उसी उम्र में शुरू होता था।
पहले विवाह बाल जो होता था,और गौना सोलह या पंद्रह यानि जब उसका गर्भाशय पूरी तरह से मां बनने के लिए तैयार हो जाए।
फिर ऐसा क्या हुआ कि वो बाल विवाह के बाद ससुराल का मुंह तक नहीं देखी थी और ………।
ओह!
फिर तो उसी पर नहीं बल्कि पूरे घर पर वज्रपात हो गया था।
क्या कुछ नही उसे और उसके घर वालों को सहना पड़ा था।
मुंह बोली भौजी पूछती ही रह गई,बताओ सन्नो किसका है पर ये एक शब्द मुंह से न फूटी।
चुप तो चुप जैसे पत्थर बन गई, बनती भी क्यों ना इसी बीच ससुराल से एक बुरी खबर भी जो आ गई। कि क्षय रोगी से ग्रसित होकर उसका पति भरी जवानी में भगवान को प्यारा हो गया।
लो पति का मुंह भी नहीं देखा और विधवा हो गई।
ऐसे में साल के बाद गौना जो होना था उसकी भी आस मन से जाती रही,अब तो इसे यहीं रहना है ये सोच लोग उसे हेय दृष्टि से देखने लगे ।
देखें भी क्यों ना दवा खाकर गर्भ गिराने को जब कहा गया तो ये एको तारे तैयार नहीं हुई।
बल्कि बाबू की थी जमीन में घर बनवाकर अलग रहने का फैसला किया।कहते हैं कि पहले जो लड़कियां ऐसी हो जाती थी तो मां बाप उनके लिए जर जमीन कुछ कर देते थे।
बस वही यहां भी हुआ।
और रात के अंधेरे में नहीं बल्कि सबेरे कुल्ला मुखारी करके सबके सामने एक जोड़ी कपड़े में निकल गई।
और सुदूर खेत में घर बनवाकर रहने लगी।
उस पर भी लोगों की चर्चा जोरों पर रही पर धीरे धीरे सब ठंडी पड़ गई।
धीरे धीरे समय बीतने लगा,इसने एक चांद से बेटे को जन्म दिया।
फिर क्या वो समय के साथ साथ बड़ा होने लगा बड़ा तो हुआ ही पर अच्छे संस्कारों से इसने उसे भर भी दिया।
वो जितना ही पढ़ने लिखने में अच्छा था उतना ही संस्कारी।
और एक वक्त ऐसा आया कि वो गबरु जवान हो गया।साथ ही उसकी अच्छी सी नौकरी लग गई।
फिर तो रिश्ते भी अच्छे अच्छे आने लगे ,अब जब आने लगे तो इसने भी उसे बंधन में बांधने का सोच ही लिया और एक प्यारी सी दुल्हन उसके लिए ले आई।
फिर क्या था घर में चारों तरह खुशियां ही खुशियां बिखेर गई,बिखरती भी क्यों ना साल के भीतर ही उसने एक मनमोहक गुड़िया को जनम जो दे दिया।
पर ये क्या दो साल की पोती के हाथ में चाकलेट देखकर वो भड़क गई।
भड़कती भी क्यों ना अब दुष्कर्म की कोई उम्र जो नहीं है कभी भी कोई बहसी दरिंदा किसी को भी शिकार बना लेता है।
माना वो बेटा उसके अपने ही पति का था। बहला फुसलाकर उसे लेबिन चूस के बहाने एक सखी से बंसवारी में बुलाया था, पर था तो मायके से ही भला कैसे बताती कि वो चोरी से मिलने गई थी।तब इतनी अक्ल भी नहीं थी । और वो मिल के आ गई फिर क्या उसी समय का गर्भ उसे ठहर गया।
चोरी से मिलने चली गई थी इसलिए दोनों ने जवान न खोलने की कसम भी ले ली ।
जिसका खामियाजा उसे चुप रह कर चुकाना पड़ा।
अरे और क्या बोलती तो उस पति की बदनामी होती, जो अब इस दुनिया में रहा ही नहीं ,फिर कौन उसकी बात का यकीन करता आखिर उसके पास प्रमाण भी तो नहीं था।
इसलिए चुप रहकर इस दर्द को सहना ही उचित समझा, और मां बाप के द्वारा दी जमीन पर घर गृहस्थी बसाकर पूरी जिंदगी गुजर कर दी।अब तो चौथापन आ गया।
पर उसने पोती के हाथ से चाकलेट लेकर फेंक दिया और कभी किसी से चाहे अपना हो या अजनबी किसी के साथ से कुछ न लेने की हिदायत देते हुए सीने से लगा लिया।
स्वरचित
कंचन श्रीवास्तव आरज़ू