हीरो बनने की चाहत -डाॅ उर्मिला सिन्हा Moral stories in hindi

#प्रदत्त विषय -दिन में तारे दिखना 

शीर्षक- हीरो बनने की चाहत

18/4/2024

    अच्छे खाते-पीते घर के तीनों लड़कों को आज कल पढ़ाई में कम इधर-उधर की बातों में मन ज्यादा लगता था। 

यश, गौरव और भूषण। 

    दर असल तीनों को मुंबई फिल्मी दुनिया में जाकर हीरो बनने की हार्दिक इच्छा थी। अपने शकल-सूरत पर कुछ ज्यादा ही भरोसा था जैसा कि इस उम्र में होता है। 

     परीक्षा परिणाम सन्तोषजनक नहीं आने पर घर वाले सचेत हुये, “क्या कारण है इतना कम मार्क्स? “यश के पापा बौखला उठे। 

“सवाल बड़ी कठिन थे “यश ने सफाई दी। 

“इसका मतलब तुमने ठीक से पढाई नहीं की… सामने  सभी प्रतियोगिताएं आने वाली है “पिता का चिंतित होना स्वाभाविक था। 

  गौरव की माता जी एक- एक पैसा जोड़कर उसे पढा रही थी। उसके पिता को व्यापार में भारी घाटा हुआ था। वे उबरने और फिर से जमने के लिए जद्दोजहद कर रहे थे वैसे में बेटे का खराब रिजल्ट…। 

    मां ने डांटा, “ठीक से नहीं पढोगे तब पापा का सहारा कैसे बनोगे… तुम्हें घर की स्थिति मालूम है। “

    “शीघ्र ही बहुत पैसे कमाकर तुम्हारे आंचल में डाल दूंगा… चिंता मत करो “गौरव बेफिक्री से बोला 

 “कहाँ से लाओगे पैसे? चोरी करोगे… डाका डालोगे… भूलकर भी कुछ उल्टा-सीधा काम मत करना “मां रो पडी़।

उधर  भूषण को भी माता-पिता से डांट पड़ी। 

तीनों इकट्ठे हुये, “हमें देर नहीं करनी चाहिए, जल्दी ही घर से गहने कपड़े लेकर भाग चलते हैं… काम मिल जाने पर सूद समेत घरवालों को लौटा देंगे। “

“हां, हमारे घर वाले बहुत खुश होंगे। “दूसरा चहक उठा। 

” जब हम बड़े हीरो हो जायेंगे …अखबार में फोटो निकलेगा… धनदौलत का अंबार होगा। “तीसरा बोला। 

कच्ची उम्र की भावुकता, आँखो में कुछ बन जाने का सपना। नासमझी.. उचित अनुचित में फर्क नहीं पता। 

    परिणाम चुपचाप घर में पैसे की खोज होने लगी। यश और भूषण ने अपनी माँ के खजाने पर हाथ साफ किया लेकिन गौरव को फूटी कौड़ी न मिली। 

नीयत समय पर तीनों को रात्रि में रेलवे स्टेशन पहुंचकर माया नगरी पहुंचना था। 

 रात्रि के बारह बज चुके थे। मुंबई जाने वाली ट्रेन प्लेटफार्म पर लगते ही अफरा-तफरी मच गई। यश और भूषण पैसे  की पोटली लिये  रेलवे स्टेशन नीयत समय पर पहुंच गये थे… गौरव का अता-पता नहीं था। दोनों जल्दबाजी में टिकट कटाकर बैठ गये। गौरव आता ही होगा। 

गाड़ी सीटी दी और चल पड़ी… शायद गौरव पिछले डिब्बे में चढ़ा होगा। 

   सच्ची बात यह थी कि गौरव घर का कोना-कोना छान आया उसे एक कानी कौड़ी तक न मिली। व्यापार में घाटे के बाद किसी प्रकार घरेलू सामान बेच कर काम चल रहा था… वैसे में खाली हाथ वह मन मसोसकर रह गया। अब पढने के अलावे कोई उपाय नहीं था। हीरो बनने का सपना हवा-हवाई हो गया। इन सब बातों से अनजान माता-पिता ने बेटे को पढाई में मन लगाते देख ईश्वर को धन्यवाद किया। 

   यश और भूषण गंतव्य पर पहुंच  कर पाया कि गौरव का कहीं अता-पता नहीं है, “बुजदिल, धोखेबाज “उनके मुँह से निकला। 

    इधर ये दोनों उससे मिले जिसने हीरो बनने में मदद करने का सब्जबाग दिखाया था। 

“अच्छा तुमलोग आ गये …सामने  धर्मशाला में नहा-धो लो फिर तुम्हें  सिनेमा वाले से मिलवाता हूं। “

    यश और भूषण अपना सारा सामान  उसे सौंप कर जब फ्रेश होकर निकले तब उस व्यक्ति का कहीं अता-पता नहीं था। पेट में चूहे कूद रहे थे। सब जमापूंजी, मोबाइल उसी के हवाले कर दोनों  बाथरुम गये थे। पागलों की तरह भाई-भाई करते दोनों इधर-उधर पूछने लगे। 

   किसी से भी कुछ पता नहीं चला। लोग मजाक उडाने लगे, “ऐसे बिना जान-पहचान के कैसे किसी को सामान दे दिया। “

“ऐसा नाटक यहाँ रोज होता है। “

   मायानगरी में कोई किसी का नहीं। उन्हें अहसास हो गया कि वे बुरी तरह ठगे गये हैं… अब हम क्या करें कहां जाये… घर से पैसे गहने चुराकर लाये परिवार का भरोसा तोड़ा और यहां …अनजान पर विश्वास कर सबकुछ गंवा बैठे। अच्छे खाते-पीते घर के अब मांगने से कोई भीख भी न देगा। यश और भूषण को दिन में ही तारे दीखने लगे। 

सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा

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