बहनें दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करती थी,, छोटी बड़ी के बगैर सोती नहीं थीऔर बड़ी ! छोटी को कहीं से आने में जरा सी देर पर परेशान हो जाती थी,, बेटियों ने मां को बचपन से ही अनेकों संघर्षों से जूझ कर भी उनके लिये उत्तम व्यवस्था बनाने की हर संभव कोशिश करते देखा था,, और जानती थी कि उन्हें उस मुकाम पर पहुंचना है जहां से खुला आसमान दोनों अपनी मुट्ठी में बंद कर सकें।
गेहुंए रंग की बड़ी कुछ तो बड़े होने के दायित्व से और कुछ मां के ज्यादा करीब होने के कारण स्वभाव से संजीदा और सोच समझ कर निर्णय लेने वाली थी,
वहीं दूध सी सफेद रंगत लिये छोटी!क्योंकि काफी अंतराल पर हुई और बड़े जतन से जन्मना मृत्यु मुख से बाहर आयी थी अतः स्वभाविक रूप से ज्यादा दुलार पाती। पहली पोती का प्यार दादा ने बड़ी पर खूब लुटाया और पोती के मन में डॉक्टर बनने के सपने सजा, असमय अचानक सब छोड़ चले गए!
उधर दादी ने अपनी बिटिया का अंश छोटी के रूप रंग में देखा, ममता भी वहीं उभरी।
इधर चाची की हर सम्भव कोशिश रहती बहनों का एका कैसे टूटे!!
धीरे-धीरे छोटी को अपने पास बिठा मन में भर दिया,दीदी पर मां का भरोसा ज्यादा, तुम पर बहन का हुक्म ज्यादा! देखा आज जरा सी देर कर दी तुमनें तो कैसा गुस्सा कर रही,, माँ से पहले दीदी ही शुरू हो जाती है तुम्हारी…..जैसे तुम्हारी मां वही हो!! कनखियों से चेहरे के उतार-चढ़ाव पकड़ती रही।
कच्ची उमर और कच्चा मन दोनों जल्दी उफ़नते हैं….
आज लड़ ही तो पड़ी थी छोटी! रात दस बज गए थे गरबा से लौटते!
दस फ़ोन कर चुकी तुम! कभी मां के फ़ोन से तो कभी अपने!! मैं बच्ची नहीं,, और सभी के नाम पता तुम सब को बता कर गयी थी,,आवारा नहीं मैं,, सही गलत सब समझती हूं,, ज्यादा अम्मा ना बनो मेरी! दोस्त हँस रहे थे सारे!!
पापा को भी भेज दिया,,
मैंने कहा था…. मैं फ़ोन करूँगी तब भेजना,,,जाने क्या-क्या!!शायद इसे ख़ुद भी भान न था!!!
हाँ तुम फ़ोन नही रिसीव कर रही थी,, हम लोग समझ रहे थे कि तुम सुन नहीं पा रही होगी,, इसलिये बार-बार कर रहे थे। समय अच्छा नहीं,, ना सिर्फ़ बुरे लोगों से बचना जरूरी है बल्कि कोरोना जैसी बीमारी में भी खुद को बचाना….
ओ प्लीज़ दीदी! इतनी समझ मुझे भी है,, माहौल खराब हो रहा था,, बहस जारी थी।
पिता के सामने यदा कदा छोटी मोटी बहस दोनों में,, आज तकरार का रूप ले रही थी, आज तक ऐसा देखा ना था,,आदतानुसार उनकी नाराज़गी माँ पर ही उतरी।
बच्चों पर छूट देने से ले कर नए पुराने सारे घावों को कुरेदते आरोपों की झड़ी लगा पिता थक कर सोने चले गए।
बड़ी बेटी किताबें खोल पढ़ने का उपक्रम करने लगी,, ऐसे कठिन वक्त की असल साथी उसकी ये किताबें ही थी जो उसे और मजबूत होने का सम्बल देती थी।
माँ की आंखों से भी नींद कोसो दूर थी, बिटिया कहीं गलत राह तो नहीं….
बड़ी को अचानक पीछे से नन्हें कोमल हाथों का स्पर्श कंधे से आगे गले पर झूलता महसूस हुआ,,, समझ गयी छोटी है,, गाल से गाल सटा छोटी ने धीरे से कानों में कहा…
सॉरी दीदी!! चाची जी ने..…..
प्यार से चिपकाते हुए बड़ी ने गालों पर थपकी दी।
थोड़ी देर बाद अपने हाथों से निवाला खिलाती बड़ी, छोटी को ऊंच-नीच समझा रही थी।
बिन शब्दों के ही छोटी की डबडबायी आँखे कह रही थी !
दीदी जो तुमको और मम्मा को अच्छा लगे….
खिड़की से झाँकती माँ ने सुकून की साँस ली!
हीरा-पन्ना!!
नहीं,परवरिश में कहीं कोई कमी नहीं!!!
सारिका चौरसिया
मिर्ज़ापुर उत्तरप्रदेश।