हीटर –  उषा भारद्वाज

 हाड़ कंपाती हुई ठंड ,चाहे कितने भी गर्म कपड़े पहन लो लेकिन ठंड दूर नही हो रही थी।  मोहन को आज  फिर से लौटने में देर हो गई। जैसे ही वह घर के अंदर पहुंचा मां की आवाज सुनाई पड़ी- आ गया बेटा।

” हां मां”- मोहन के शब्दों में लाचारी और मजबूरी पूरी तरह भरी हुई थी।  आज फिर वह यह हीटर नहीं ला पाया था।

 4 दिन से मां कह रही थी- बेटा हीटर ले आओ ।

ठंड के मारे मुझसे उठा नहीं जाता है। हाथ पैर मानो ऐंठने लगते हैं।”

  मोहन की मां के शरीर के जोड़- जोड़ में दर्द था ।, इतनी ठंड हो गई है, शायद इसी ठंड की वजह से दर्द हो रहा है । उठ भी नहीं पाती हैं। बहुत कोशिश करती तब उठती हैं। इसीलिए जब से मोहन ने हीटर लाने की बात की तब से रोज इंतजार करती हैं। मानो हीटर नही बल्कि दवा है जिसके आते ही वो ठीक हो जाएंगी। 

    मोहन को रोज कारखाने से वापस आने में देर हो जाती है। सारी दुकानें बंद हो जाती है। रोज मां की आशा टूट जाती है लेकिन आज तो वो गया था, एक दुकान खुली भी मिली थी ,लेकिन वहां पर हीटर 4000 रुपये का था। इतना महंगा हीटर, उसके लिए पूरे पैसे पास में नहीं थे। आज फिर मां से क्या कहेगा? 

   “बेटा हीटर मिला ?”मां की आशा रोशन होते ही बुझ गयी।जैसे ही उन्होंने मोहन का मायूस चेहरा देखा।

 ” कोई बात नहीं, जब तुम्हारी छुट्टी हो तब ले आना ।मां ने बिना मोहन के कुछ बोले ही उसकी देर से आने की मजबूरी समझ कर खुद ही कह दिया।




किंतु मोहन जानता था कि आज हो या कल जब पैसे होंगे तभी ला पाएगा। इतनी कम तनख्वाह मिलती है।  मकान का किराया  देना होता है,राशन में खर्च हो जाता  है ,मां के पेट दर्द की दवाई में भी खर्च होता है।।

   12 साल का था जब बाबूजी चले बसे।  किसी तरह बारहवीं  पास किया था । आजकल अच्छी-अच्छी पढ़ाई करने वालों को नौकरी नहीं मिलती है , फिर उसको साधारण सी पढाई में कहां नौकरी मिलती । किसी तरह  एक कारखाने में उसको नौकरी मिल गई थी । जहां महीने का 5000 मिल जाता। कुछ पैसे उसने बचा के रखे थे । लेकिन वह भी मां की दवाई के लिए थे कि पता नहीं कब ज्यादा जरूरत पड़ जाए तो कहां से लाएगा?  किससे मांगेगा ?  उसने अपनी मां को फिर से एक आश्वासन दिया – “2 दिन की परेशानी है मां,  इतवार (रविवार) को मेरी छुट्टी है तब जरूर ले आऊंगा।” 

   अब उसने सोच लिया था कि जो पैसे बचे रखे हैं वह मां के लिए ही तो है हीटर ले आऊंगा ।

मां ने कहा- हां ठीक है बेटा।

  2 दिन बाद इतवार था मोहन सुबह उठा मां के पास गया। मां अभी तक सोई हो क्या?

 मां ने कोई जवाब नहीं दिया । मोहन ने तीव्रता से मां की रजाई को हटाया। मां सो रही थी। मोहन ने कहा – “मां मां ” दो आवाज देने के बाद वह बोली -हां बेटा क्या हुआ ?

उसने मां का माथा छुआ तो वह बहुत गरम था ।




 उसने कहा – आपको तो बहुत तेज बुखार है ।

 मां ने बेटे की तकलीफ समझते हुए उसे समझाने के लिए कहा-  नहीं बेटा तू ठंड में जल्दी उठ गया और बाहर है इसलिए तुझे लग रहा है कि मुझे बुखार है। परेशान मत हो ।

    लेकिन मोहन पास के मेडिकल स्टोर से बुखार की दवा ले आया और पानी के साथ उनको दे दिया ।

   एक घंटे बाद उसने देखा मां का बुखार कम नहीं हो रहा था ।अब उसको चिंता होने लगी उसकी परेशानी को समझकर मा ने कहा – बेटा आज मैं बहुत खुश हूं । यह बात सुनकर मोहन को बड़ा आश्चर्य हुआ उसने कहा – क्यों मां? उसकी मां बोली – आज मुझे बिल्कुल ठंड नहीं लग रही है इसीलिए कह रही हूं मुझे बुखार नहीं है । बुखार में तो ठंड लगती है।”

 मोहन ने कहा –  आप को बहुत तेज बुखार है ।

वह बोली-  नहीं बेटा आज मुझे बिल्कुल जाडा नहीं लग रहा है । अब तुमको हीटर लाने की भी जरूरत नहीं है। “

” ऐसे मत कहो मां। मैं शाम को लेकर आऊंगा ।- मोहन ने   मां का सर सहलाते हुए कहा ।

मां ने कहा – नहीं बेटा वह पैसे संभाल कर रखो आगे काम आएंगे । 

 मोहन ने कहा-  कैसी बातें करती हो मां, अभी शांत रहो आप को बुखार है जब बुखार उतर जाएगा । तब मैं हीटर लाने के लिए जाऊंगा । 

थोड़ी देर बाद मोहन ने फिर से देखा मां का बुखार हल्का पड़ रहा था वह खुश हो गया। वो चुपचाप बाजार की तरफ चला गया ।

   थोड़ी देर बाद वह वापस हुआ तो बहुत खुश था आज उसने मां की इच्छा पूरी कर दिया। उसने धीरे से दरवाजा खोला और अंदर मां की चारपाई के पास बैठ गया हीटर  वहीं पास में रख दिया तार स्विचबोर्ड  में लगाकर  स्विच ऑन करत दिया । हीटर में लाल रोशनी आ गई। तब उसने मां को जगाया ।

   मां ने आंखे खोलते ही जब हीटर देखा तो उनके होंठो पर मुस्कान आ गयी और आंखो के कोरों से आंसू बह निकले रजाई से हाथ निकाल कर सेंकने लगीं।

  मां की ऐसी खुशी देखकर मोहन की आंखे सजल हों गयीं। उसने ईश्वर को धन्यवाद करने के लिए ऊपर की तरफ देखा।

 

 उषा भारद्वाज

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