हाय रे ये पार्टी  – पूजा मनोज अग्रवाल

पतिदेव बालकनी मे बैठे चाय की चुस्कियों का आनन्द लेते हुए अखबार पढ रहे थे,,,,अजी सुनती हो ,,,, इधर आओ,,।

अपनी सुबह की चाय का कप लेकर हम भी पतिदेव के साथ चाय पीने बैठ गये   ।

अखबार मे नजरें गडाए हुए ही  पतिदेव बोले ,,”” ,,,परसो मिश्रा जी का कॉल आया था,,,  सोमवार को उनकी छोटी बेटी बिन्नी की सगाई है , सपरिवार निमन्त्रण दिया है,,,तुम पार्टी मे जाने की तैयारी कर लेना।

 अरे वाह ! यह तो बहुत बढिया बात है ,,,,बहुत दिनो से मिन्टू , पिंकी और हम लोग भी तो कहीं ना गये है ,,,,,,फ़िर मांजी भी कई दिन से मूँग दाल के हलवे की डिमांड कर रही हैं,,,,वो भी वहीं अपनी आत्मा तृप्त कर लेंगी,,,।

पार्टी सुनकर मिन्टू पिंकी तो बल्लियों उछलने लगे थे,,,,मनपसंद चाट पकौड़ी ,पिज्जा और पास्ता जैसे स्वादिष्ट व्यंजन का स्वाद चखने की बात सोच- सोच कर उनके मुहँ मे पानी आ गया था  ।

   अब शुरु हुई पार्टी की तैयारी,,,इसका नाम तो छोटा  ,,, पर तैयारी भारी भरकम होती है । साड़ी ,जूलरी बच्चॉं के कपड़ों का चयन हमारे दिमाग की घंटियां बजा रहा था  ,,, पिछले 1 साल पहले ही करोना की वजह से शादी पार्टी के न्योते तो बंद ही हो चुके थे, कुछ इक्का दुक्का करीबी रिश्तेदारी के निमन्त्रण आये थे ,,, वो भी ना के बराबर । ऊपर से हर चीज ऑनलाइन उपलब्ध है,,तो हमे तो कहीं बाहर जाने की आदत भी ना रही थी । 

 खैर निमंत्रण मिला है , तो पार्टी तो हम अटैंड करके ही रहेंगे ,,, आईने मे अपना चेहरा देखते ही हमारा माथा ठनक गया,,,,कसम से ऐसा बिगडा हुआ नक्शा ,,,,इसे लेकर हम पार्टी मे जाये,,? हम तो बला के खूबसूरत थे ,,, जाने अचानक से कब इस खूबसूरत चेहरे पर झुर्रियों ने अपना वर्चस्व जमा लिया था,,,,कुम्हलाया हुआ चेहरा ब्यूटी पार्लर की मरम्मत मांग रहा था,,,  बालों की बढती सफेदी भी रंगाई और स्पा की मांग कर रही थी ,,,,,।




और बाहर पार्लर जाने के नाम से तो हमारे पसीने छूट जाते हैं,,,तो चेहरे की खूबसूरती बढाने व बालों की रंगाई के लिए हमने अर्बन कंपनी से फेशियल और हेयर कलर बुक कर लिया । नियत समय पर अर्बन कंपनी की  ब्यूटीशियन ने आकर हमारे बालों की रंगाई , पुताई और चेहरे की मरम्मत का काम तसल्ली बक्श कर दिया,,,, । कुछ ही घंटो की मेहनत ने हमे सीधा 40 वर्षीय से 30 वर्षीय युवा महिला की श्रेणी मे कुदा दिया था,,,। बस थोड़ी जेब ढीली करनी पड़ी थी ,,, जवाँ दिखने के लिये । 

बस एक ही बात से थोड़ा चिंता मुक्त थे हम , की मिश्रराइन जी ने पार्टी की कोई कलर थीम ,,, ड्रेस थीम नहीं रखी थी,,,,,, । 

अब चर्बी जमा बेकाबू फैले शरीर पर कोई ड्रेस फिट आ जाये तो भी गनीमत है । लॉक डाउन के दौरान खाये गये स्वादिष्ट व्यंजनों ने हमारा मोटापा बढाने मे कोई कसर ना छोड़ी थी  ,,,। 

अलमारी खोली,,, क्या पहने क्या ना पहने ?? इसी उधेडबुन मे सभी साड़ियां उलट पलट कर देख डाली ,,कुछ समझ ना आ रहा था  ।

   पीली सिल्क की साड़ी जो पिछली एनिवर्सरी पर पतिदेव से लड़ झगड कर ली थी ,,,वही पहन लेंं क्या   ????

  ना ना ! यह साड़ी तो  गुप्ता जी के यहां पहनी थी,,,। फ़िर नजर पड़ी हमारी फेवरेट ब्लू बनारसी सिल्क साड़ी पर,,,जो माँ ने बड़े प्यार से इस दीवाली पर दी थी ,,,,, और हम नादानी वश अपनी सासु माँ से पूछ बैठे ,, ये साड़ी कैसी लगेगी माँजी  ??? 

बस,,,,,इसी सवाल से हमनें अपने पाँव पर खुद ही कुल्हाडी दे मारी थी  ,,,,।

  सासु माँ ने तुरंत अपने ओहदे का इस्तेमाल करते हुए अपनी टांग अडा दी थी,,,,बहू  तुम्हे शादी मे इतनी महंगी साड़ियाँ चढाई थी हमने ,,, उनमें से कोई पहन लो,,,।” तुम्हारी माँ की दी हुई यह हल्की साड़ी पहन  कर  क्या तुम्हे हमारी नाक कटानी है  ????  

माँ को नीचा दिखाने का मौका मिलते ही सासु माँ के कलेजे में ठंडक सी पड़ गई,,।




  अगले ही पल हमारी शादी की जर्दोजी की चटक लाल  साड़ी निकाल कर सासु माँ ने हमारे सामने रख दी,,,,,,।

साड़ी ससुराल पक्ष की थी,,,, तो आप जान ही गये  होंगे  ,,,उसकी शान के खिलाफ दो लफ्ज भी बोलना हमें कितना महंगा पड़ सकता था,,,इसलिये इस असम्भव कार्य को हमने कुछ अपने शब्दो मे यूं पूरा  करने का प्रयत्न किया  ।

साड़ी की शान बरकरार रखते हुए हमने बड़े सभ्य शब्द ढूंढ निकाले,,,,, ” माँजी,,,, ये साड़ी तो बहुत महंगी है,, और सगाई के हिसाब से बहुत हैवी भी,,,, क्यूं ना हम इस साड़ी को बिन्नी के विवाह समारोह मे पहन लें ,, “??

खैर,,,,हम ठहरी घर की बहू ,,, तो जीत, तो हमारी सासु माँ की ही होनी तय थी,,,,और हुआ भी वही ,,,,ड्राई क्लीनर को बुलाकर साड़ी स्टीम प्रेस के लिए दे दी गई ,,और तंग ब्लाउज़ ऑलट्रेशन के लिये नुक्कड़ के टेलर को दे दिया गया  ।

 ड्राई क्लीनर सासु माँ से –  “अरे अम्मा ,,, काहे इस साड़ी को स्टीम प्रेस करा रही हो,,, यह तो दो दशक पुरानी है,, दे दो किसी गरीब को ,,,।

उसके यह शब्द हमारे मन को भरपूर आनंदित कर गये थे,,,

  अरे हट मुआँ ,,,कुछ भी कहता है ,,,,तू बड़ा जानकर है साड़ियों का ,,, ?? सासु माँ खीज उठी ।




सब तैयारियाँ हो गई, सगाई का नियत दिन भी आ गया ,,बच्चॉं के पापा और सासु माँ सहित हम सज सँवर कर पार्टी मे जा पहुंचे । मिसेज शर्मा और  मिसेज मेहता की छरहरी काया नये फैशन की साड़ियों मे गजब ढा रही थीं  ,,,,  मिसेज गुप्ता का ब्लैक बैकलेस ब्लाउज़ , पार्टी मे सभी मर्दो के आकर्षण  का केंद्र बन गया था । बरबस ही सब मर्द लटटू की  भाँति मिसेज गुप्ता के इर्द गिर्द भटक रहे थे । और हम कनखियों से अपने पतिदेव पर पैनी दृष्टी बनाये हुए थे । 

 

पूरी पार्टी मे बस हम ही एकमात्र ऐसे प्राणी थे  ,, जो दो दशक पुरानी साड़ी मे लिपट कर,,,, यहाँ से वहाँ डोल रहे थे ,,,, । शर्माइन ने हमे ऊपर से नीचे तक निहारते हुए ,,,, गुप्ताइन को कोहनी मारी और  आंखों ही आंखों  मे हमारी पुरानी साड़ी और जूलरी को जलील कर दिया था । यह देखकर हम थोड़ा खिसिया गये थे ,, पर हमारी भोली भाली सासु माँ के कानों पर जूं तक ना रेंगी थी,,,,और ना ही इन सबसे उन्हें कोई फर्क पडने वाला था  ,,,वैसे भी वो तो मूँग दाल के हलवे के स्टॉल पर जड़वट सी खडी रह गई थी ,,,। 

 देर रात्रि तक सगाई समारोह संपन्न हो गया,, विदा के समय मिश्राइन जी के दामाद को तिलक कर 1100 का लिफाफा दे कर हम वापस घर आ गये ।

तिलक का लिफाफा   ,,, स्टीम प्रेस,,,, टेलर का बिल ,,, ब्यूटी पैकेज का बिल ,,, मिन्टू पिंकी के नये शूज़ का खर्चा ,,,कुल मिलाकर साढ़े पांच हजार का चूना लग गया था । 

पर सासु माँ की पसंदीदा साड़ी और जूलरी  पहन कर हमने उनका मन रख लिया था ,,,मिन्टू ,पिंकी के चहकते चेहरे भी सकून दे रहे थे ,, और बच्चॉ के इस माह की पिज्जा का खर्च और नई साड़ी के चार हज़ार बचा कर हम अपने पतिदेव की प्राण प्रिया भी तो बन गये थे,,, । 

समाप्त 

स्वरचित (मौलिक)

पूजा मनोज अग्रवाल

 

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