हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की” – अनुज सारस्वत

घर में जन्माष्टमी की तैयारी चल रही थी ,फल खीरे ,कूटू का आटा, सिंगाड़ी का आटा, मूंगफली दाना घर में आ चुके थे, सुशीला और उसकी 16 वर्षीय बेटी अनु विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाने में व्यस्त थी, जैसे गोले की पंजीरी ,चोलाई की पंजीरी, मावे की पंजीरी, सूखे मेवे की पंजीरी और धनिया का कसार, तभी अनु के मन में प्रश्न उठे वह माँ से बोली

“मम्मी कृष्ण भगवान सबसे कंट्रोवर्शियल भगवान रहे शुरू से ही, इतने शरारती रहे बड़े होने के बाद भी उन्होंने सबसे ज्यादा शरारती की और लोगों को माखन चोरी करना सिखाया, कपड़े भी हरण की गोपियों के, बाद में देखो 16000 रानियां भी रखी, मतलब एक तरफ भगवान राम इतने सीधे उनसे  एकदम उल्टे, और प्यार करा राधा से शादी करी रुक्मणी से ऐसा क्यों किया राधा के साथ मुझे नहीं समझ आता ,और देखो उनकी बर्थडे मनाते हैं रामजी पर इतनी तैयारी क्यों नहीं “।

फिर सुशीला मुसकाई और बोली “बेटा अधूरा ज्ञान बहुत हानिकारक होता है,

भगवान कृष्ण ने शुरू से विपत्तियों को झेला है  जन्म जेल में हुआ वासुदेव जी  भयंकर बारिश में भीगते हुए टोकरी में लेकर नंद गांव पहुंचे ,फिर बाल्यकाल से ही असुरों  का आक्रमण हुआ उनके ऊपर,  चाहे वह पूतना हो,वकासुर हो या नरकासुर हो, और भी भयंकर राक्षस हुए।


माखन चोरी के पीछे यह था कि उन दिनों कंस ने संपूर्ण ब्रज के दूध, दही मक्खन पर कंस ने  टैक्स लगा रखा था ,हर घर को अपने सारे दूध दही को कंस  को भेजना होता था जो नहीं देता था, वह मृत्यु को प्राप्त होता  जिससे कि वह अपने बच्चों को भी नहीं खिला पिला पाते थे,  फिर भगवान कृष्ण ने माखन चोरी की लीला रची ,वह सारा खुद नहीं खाते थे सारे ब्रज के बच्चों को खिलाते थे,  जिससे उन बच्चों में संपूर्ण पोषण की प्राप्ति हो ,और वह कंस को नहीं पहुंच पाता , फिर वह कंस द्वारा भेजे गए असुरों का संहार करके ब्रज वासियों की रक्षा करते ,अंत में कंस को भी उन्होंने ही मारा ।

अब गोपियों का सुन पहले स्त्रियाँ  बिना वस्त्रों के जलकुंड सरोवर में स्नान किया करती थी” यह सुनकर ही अनु के मुंह से होहो निकल गया,”देख तभी उन्होंने सभी स्त्रियों को सबक सिखाते हुए उनके वस्त्र हरण की लीला रची और प्रण लिया कभी भी बिना वस्त्रों के सरोवर पर नहीं स्नान करेंगी ।

अब 16000 पटरानियों की कथा सुन,एक असुर ने 16000 कन्याओं को बलि देने के लिए बंधक बना लिया था, ताकि वह अमर हो सके, फिर उस असुर को श्रीकृष्ण ने मारकर कन्याओं को मुक्त कराया ,लेकिन उन कन्याओं को उनके परिवार और समाज द्वारा नहीं वरण किया गया ,फिर उन कन्याओं ने श्री कृष्ण से गुहार लगाई कि हमारी रक्षा करो कि हमें कौन वरण करेगा तब श्री कृष्ण ने अपने ₹16000 रूप प्रकट करे, और उन कन्याओं को अपनाया।

और राधा और कोई नहीं थी बल्कि कृष्ण का ही प्रेम रूप थी ,जिसके माध्यम से प्रेम के सात्विक और आध्यात्मिक रूप की व्याख्या की उन्होंने ,दुनिया को प्रेम का महत्व बताया ,जिसमें शरीर को नहीं अध्यात्म का श्रेष्ट बताया ।


श्री कृष्ण जगद्गुरु हैं उन्होंने ही गीता के माध्यम से संपूर्ण सृष्टि को जीने का मार्ग दिखाया, कर्मयोग की  व्याख्या की, मनुष्यों को जन्म मरण के बंधन से छुड़ाकर मुक्ति का सर्वोत्तम मार्ग दिखाया ,और कहा सबमें मैं हूँ,  कोई दूसरा नहीं है, अगर राग द्वेष,  दुख क्रोध,लोभ से रहित होना है तुम निष्काम हो जाओ ,किसी भी चीज में अधीन नहीं हो,और ना किसी को अपने अधीन करो ,जो होगा अच्छा होगा ,क्योंकि सृष्टि मैंने बनाई है मनुष्य  तो केवल कठपुतली है।

इसलिए इनके जन्म की इतनी तैयारी होती है ,वैसे तो अपना अपना मन है भगवान को तो कुछ नहीं चाहिए हमसे, लेकिन हमारा भी कुछ दायित्व बनता है इतना कुछ दिया है उन्होंने इसी बहाने याद कर लेते हैं उन्हें” ,यह सब सुनकर अनु के मन का अंधकार अर्जुन की भांति मिट गया और वह बोली

” मम्मी पालना कहां है मैं सजाऊँगी   अपना ठाकुर का पालना बहुत अच्छे से सब देखते रह जाएंगे” फिर सुशीला और अनु ने जोर से जयकारा लगाया

” हाथी  घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की”

-अनुज सारस्वत की कलम से

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