मेधा बहुत खुश थी, आज उंसकी परदादी जो उसके घर आ रही थी। बहुत से मेहमान आ चुके थे, मैरिज हॉल में चारो ओर रिश्तेदारों से चहल पहल थी। हो भी क्यों न, परिवार की होनहार बेटी मेधा, नाम के अनुरूप, बहुत बुद्धिमान थी। आज उंसकी शादी थी,
और कल ही उसके जीवन के राजकुमार उसे घोड़े पर तो नही, पर हवाई जहाज में उसे विदेश अपने घर लेकर जाने वाले थे। मेधा इंजीनियर बेटी ने स्वयं ही अपने मैनेजिंग डायरेक्टर राजकुमार को जीवन रूपी स्वयंवर से चुना था।
दिन भर शोरगुल के बाद होटल में सारे हिन्दू रीति रिवाज से विवाह संपन्न हुआ।
मेधा ने अपनी मम्मी से कहा, “बड़े दिनों बाद ये एक रात मुझे मिली है, मैं चाहती हूं, कल यहां से बिदा होने के पहले आप तीनो पीढ़ी के साथ मम्मी, दादी और परदादी के साथ कुछ वक्त बिताऊँ, नींद पूरी हो न हो, पर ये नजारा पता नही फिर मिले या न मिले।
“जरूर बेटू।”
और भोजन के बाद सब एक कमरे में गुफ्तगू में लग गए। मम्मी और दादी दोनो से मेधा ने उनके विवाह और बिदाई के बारे में बाते करी, हंसी मजाक चलता रहा, पर सब एक सा ही लगा।
जब परदादी से विनय किया, “कुछ आप भी बताए, कैसे आपकी शादी हुई, विदाई हुई, आपको कैसा लगा था।”
“सुनो, रानी बिटिया, मेरी बातें सुनकर तुम हँसोगी, गुड़िया खिलाने की उम्र बारह वर्ष में मेरा विवाह हो गया, घूंघट के ऊपर चादर डाल दिया था कुछ भी दिख नही रहा था। बहुत तेज़ गुस्सा आ रही थी, पर बाबूजी से डर लगता था, चुप रही। उस समय गौने का रिवाज था।
पंद्रह वर्ष में मेरा गौना हुआ, अब तो जरूरी था तुम्हारे दादाजी के साथ उनके घर जाना, सिर्फ एक ही खुशी थी, पूरे गांव वालों ने और अम्मा, बाबूजी ने प्यारी सी साड़ियां और गहने दिए थे। फिर गला फाड़कर रोते रोते मैं डोली में बैठी, चार कहार मुझे कंधे पर उठाए चले जा रहे थे, हिलती हुई डोली में थोड़ा डर भी लग रहा था।
फिर एकाएक एक नदी आयी, नाव बुलाई गई, दूल्हे राजा, कहार और डोली सहित मैं नाव में बैठ गयी, नदी पार करते समय बार बार लगता, एक बार पानी मे हाथ डालकर खेलूं, पर नहीं अम्मा ने समझाया था, कोई बचपना नही करना। नाव से उतरकर ससुराल से आई, रंग बिरंगी सजी धजी बैलगाड़ी आयी, जिसमे मैं और तुम्हारे बाबा बैठकर आये उस समय वो शमा बहुत प्यारा लग रहा था । और मैं ससुराल पहुँच गयी।
तुम्हारे बाबा को एक ट्रांजिस्टर और साइकल मिली थी, बहुत खुश थे, गांव में पहली बार लोगो ने ये चीजें देखी थी, साइकल रोज धो पोंछकर रखी जाती। ट्रांजिस्टर जब बजता, गाँव के कुछ बच्चे पूछने लगते, इसके अंदर कौन आदमी बैठे है जो गाना गाते है, कैसे पहुँचे अंदर।”
“बिटिया रानी, वो समय और आज के जेट युग मे कितना अंतर आ गया, मैं बैलगाड़ी में ससुराल आयी, तुम हवाई जहाज में जाओगी, जुग जुग जियो, सौभाग्यवती भव।”
उसके बाद सब थके मांदे थे, नींद लग गयी। सब मधुर यादों के साथ, दूसरे दिन कुछ और सुहाने पलों को जोड़ने चल दी मेधा रानी।
स्वरचित
भगवती सक्सेना गौड़
बैंगलोर