हृदयेश्वरी: – मुकेश कुमार (अनजान लेखक)

तुम जाओगे न तब मुझे बहुत अखरेगा, बहुत ख़ालीपन महसूस करूँगी। लेकिन तुम जाओ, तुमने बहुत दिन से इस दिन का इंतज़ार किया है।

योगेश के जाने से एक दिन पहले दोनों बात कर रहे थे। दोनों कोसों दूर हैं एक दूसरे से पर हर दिन दो-चार बार बात हो ही जाती है। प्रेम का क्या? उसे तो महसूस कर लो वही बहुत है। दो दिल के तार जुड़ जाएँ न तब कोसों मील की दूरी भी क्षणिक भर की लगती है।

ख़ैर, दोपहर को सुमन और योगेश ने इंटरनेट के माध्यम से एक-दूसरे को देखते हुए बात किया था। सुमन के चेहरे पर बार-बार हया की लाली उतर रही थी और योगेश का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। सुमन वैसे है चुलबुली लेकिन कैमरे के सामने आ कर ऐसे शरमा रही थी मानो योगेश ने आलिंगन में लगा लिया हो। योगेश का बिल्कुल मन नहीं था अकेले जाने का किन्तु सुमन का साथ जाना भी तो मुमकिन न था।

वो सफ़र तक़रीबन दस दिनों का ही था जब योगेश सुमन से दूर रहता, हो सकता है मोबाइल काम न करे तो दो-चार दिन बात न हो पाए। फिर भी दोनों ने वादा किया की जब तक मुमकिन हो तब तक बात करते रहेंगे। सुमन बहुत भावुक हो कर विदा कर रही थी। काश, कैमरे में कोई उपाय होती, सुमन योगेश से कैमरे में ही लिपट जाती। योगेश कैमरे में ही सुमन के ललाट को चुमता, गले से लगा कर बालों को सुलझाता। पीठ सहलाता और बोलता

“पगली तुम तो हृदय में बसी हो”

दूर हो तुम मुझसे ज़रूर लेकिन “तुम मेरी हृदयेश्वरी हो”

सुमन का मुस्कुराता चेहरा देख और खनकती आवाज़ सुन कर योगेश अपने सफ़र पर निकल पड़ा। दूसरे दिन से ही सुमन का फ़ोन और मैसेज आना कम हो गया और बाद में बंद। योगेश को थोड़ा अटपटा ज़रूर लगा लेकिन हो सकता है काम में व्यस्त हो सोच कर खुद को संयम में रखने की कोशिश करता रहा।



योगेश के वापसी का आख़िरी दिन है, आज भी कोई जवाब नहीं आ रहा। आ भी रहा तो सुबह का पूछा शाम को। योगेश को चिंता सताने लगी।

रात हुई योगेश करवटें लेता रहा, बाईं करवट ले तो लगे सुमन आवाज़ दे रही है। दाहिनी करवट ले तो लगे सुमन सीने से चिपक कर फफक रही है। रात के चार बज गए, लोग तो वैसे भी चार बजे सुबह मान लेते हैं। पुरी रात योगेश का वही हाल रहा, उठ कर बैठे, बाथरूम जाए और पानी पीए।

योगेश वापस आते ही सुमन से बात करने की कोशिश करने लगा लेकिन बात हो ही नहीं पाई।

रात के ग्यारह बजे सुमन ने सारी बात बताई। योगेश के जाने के दूसरे दिन से ही मुसीबत से घिर गई।

दर्द और तकलीफ़ में भटकती रही, उसके भटकते और तड़पते दिल ने योगेश को भी व्याकुल कर रखा था।

अब योगेश उसे क्या कहे “पगली” या “हृदयेश्वरी”

सुमन सब चुपचाप सहते रही, योगेश को बताना भी ठीक न समझा, सोचती रही अगर योगेश को बता देगी तो वह नाहक परेशान होता रहेगा।

योगेश के दिल तक तो सुमन की बेचैनी पहुँच ही गई थी।

दोनों का प्रेम देखिए, एक कुछ न बता कर प्रेम निभाना चाहती है तो दूसरा बीन बोले सब महसूस कर प्रेम जताना चाहता है।

एक प्रेम में अपने हृदय को मज़बूत बनाने की भरपूर कोशिश कर रही है तो दूसरा उसको हृदयेश्वरी बना कर उसे मज़बूत बनाने की भरपूर कोशिश कर रहा है।

हालात भी अजीब है, सुमन सामने आ नहीं सकती, योगेश पास जा नहीं सकता। कैमरे में वो उपाय बना नहीं जिससे योगेश सुमन की हथेलियों को अपने हाथ में ले कर कह सके “घबराना नहीं… हूँ मैं… मैं हूँ तुम्हारे साथ”

मुकेश कुमार (अनजान लेखक)

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!