हर बीमारी का इलाज सिर्फ दवा नहीं होती- पुष्पा जोशी । Moral stories in hindi

माँ आपने फिर दवा नहीं ली, ऐसे कैसे चलेगा? मैं और मोना तो ९ बजे से नौकरी पर निकल जाते हैं। अनुपम और शैली भी अपनी पढ़ाई के लिए अक्सर बाहर रहते हैं। आप को कुछ हो जाएगा तो क्या करेंगे। अपना ध्यान आपको खुद रखना पढ़ेगा, कितने डॉक्टर का इलाज चल रहा है।एक डायबिटीज वाले,

एक हाथ पैर के दर्द वाले।सबकी दवाइयाँ अलग- अलग  व्यवस्थित  रखी है। अब ये अलग परेशानी कि मुझे घबराहट हो रही है….. समझ नहीं आता है क्या करूँ…..पैसा पानी की तरह बहा रहा हूँ और आप हैं कि…..दवा भी समय‌पर नहीं ले सकती।’ राजीव की आवाज में तेजी आ गई थी और सुलभा जी की

ऑंखों में नमी तैर गई थी। वह भनभनाता हुआ तेज कदमों से ऑफिस के लिए निकल गया। सुलभा जी कुछ कहना चाह रही थी कि बेटा…… मगर उनकी आवाज गले में ही अटक गई । मोना के ऑफिस में आज कोई मिटिंग थी इसलिए वह सुबह आठ बजे ही निकल गई थी,उसके लिए यह बात का कोई

मायना नहीं रखती थी, कि सुलभा जी की तबियत कैसी‌ है।ऑफिस जाते समय‌ उनसे मिलकर जाना,या ऑफिस से आकर उनके पास कुछ देर रूकना उसकी आदत में ही नहीं था। कई  बार तो पूरा सप्ताह निकल जाता बहू को देखे बिना। घर के सारे काम नौकर चाकर करते थे। भोजन बनाने वाली रानू  सुलभा जी के लिए सुबह शाम भोजन रख देती।

उनका अकेले खाने का मन नहीं करता, मगर मजबूरी थी। किसी के पास समय‌ ही नहीं था, उनके पास‌ बैठकर बातें करने के लिए,या इसे इस तरह‌ कहना ज्यादा अच्छा होगा कि सब अपनी दुनियाँ में मस्त थे, और उनसे बातें करने की उनकी कोई इच्छा नहीं होती थी। उनका अकेलापन ही उनकी बिमारी का कारण बन गया था।

अकेले बैठे-बैठे पुरानी बातें याद करती रहती। सोचती थी कितनी परेशानियों में राजिव को पालपौस कर बड़ा किया। बचपन से ही यह कितना बिमार रहत था। कभी पीलिया, कभी निमोनिया । जब थोड़ा बड़ा हुआ तो अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पा रहा था उसके पैर कमजोर थे और शरीर का भार नहीं झेल पा रहै थे। तब कितनी मेहनत की थी

इस कहानी को भी पढ़ें: 

 निशानी –  अरूण कुमार अविनाश

उसने ताकि राजिव अपने पैरो पर खड़ा हो सके। कितने तेल की मालिश, व्यायाम ,समय पर डॉक्टर ने जो डाइट देने को कहा उसका बराबर ध्यान रखा।इसके साथ ही कितनी मान मंगत, व्रत उपवास अनुष्ठान किए ताकि बेटे का जीवन सुखी  हो जाए।

         आसान नहीं था उसके लिए भी यह सब कुछ करना। एक संयुक्त परिवार था। सास, ससुर, ननन्द और जेठानी दैरानी। काम को लेकर हमेशा विवाद चलता था। ऐसे में बेटे के लिए इतना समय निकालना बहुत कठिन था। वह अपने हिस्से का काम दैर रात तक जागकर पूरा करती और सुबह भी जल्दी उठ जाती।

फिर भी कई बार ताने सुनने पड़ते मगर उसकी परवाह न करते हुए वह बेटे के स्वास्थ्य पर पूरा ध्यान देती। उसकी मेहनत रंग लाई और राजिव अन्य बच्चों की तरह सामान्य हो गया। उसे पढ़ा-लिखा कर काबिल बनाने में सुलभा जी ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी, आज उसी बेटे के पास माँ से बात करने का वक्त नहीं है।

बस यही सब सोचते रहने से वे अवसाद से ग्रस्त हो गई । जीवन जीने की इच्छा शक्ति ही, समाप्त हो गई थी उनकी। रानू जो भोजन रखकर जाती उसे वे गाय को खिला देती। दवाइयाँ लेना भी बन्द कर दिया था। उनके कमरे से शिकायत की आवाज नहीं आती थी। राजिव सोचता सब ठीक चल रहा है,

किसी के पास फुर्सत ही कहाँ थी कि देखे कि उसने खाना खाया है या नहीं।  वह बहुत कमजोर हो गई थी। एक  दिन सुबह चक्कर खाकर गिर गई, गिरने की आवाज सुन राजिव ने जाकर देखा माँ जमीन पर पड़ी थी उनकी नजरे राजिव की नजरों से टकराई। राजिव ने दौड़कर उसे उठाया और कहा

‘माँ क्या आज फिर दवा नहीं ली।’ माँ ने कहा – ‘बेटा तूने मेरे लिए बहुत सारी दवाइयाँ लाकर दी, मगर मुझे तेरा कुछ समय चाहिए था, जो मेरे लिए हो, वह तू नहीं दे पाया। ये दवाइयाँ किसी जरूरतमंद को दे देना। मैं जा रही हूँ बेटा “हर बीमारी का इलाज सिर्फ दवा नहीं होती।”‘ पंछी उड़ गया था माँ के शब्दों ने राजिव को झकझोर कर रख दिया था। मगर अब तो सिर्फ पछतावा शेष था। 

प्रेषक

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!