खुद में बदलाव जरूरी है
अरे यार… बिस्तर में से उठे नहीं कि तुम्हारे ड्रामा शुरू हो जाते हैं, आज यहां दर्द है, आज वहां दर्द है और कुछ नहीं तो काम करने का मन नहीं कर रहा, अब क्या चाहती हो तुम.. ऑफिस छोड़कर तुम्हारे बगल में बैठा रहूं,.. तुम कहो तो बच्चों की भी पढ़ाई छुड़ा दूं, उन्हें भी कह दूं,… बेटा..
मम्मी की तबीयत सही नहीं रहती, पढ़ाई लिखाई छोड़कर मम्मी के अगल-बगल में बैठा रहा करो, क्या पता इससे तुम्हारी मम्मी की तबीयत सही हो जाए! नहीं जी ऐसी कोई बात नहीं है.. अभी दवाई ले लूंगी सब ठीक हो जाएगा!अब मैं जानबूझकर तो ऐसी स्थिति पैदा नहीं करती,
पर क्या करूं… जब मन खुश नहीं होता तो तन भी साथ नहीं देता! सौम्या…. तुमसे कितनी बार कहा है तुम कोई किटी पार्टी ज्वाइन कर लो, किसी अच्छी संस्थान से जुड़ जाओ आजकल तो औरतें किसी न किसी सामाजिक संस्थाओं से जुड़ी हुई है अपने आप को व्यस्त रखने की कोशिश करो,
मैं यह नहीं कहता कि तुम दिन भर मोबाइल या टीवी में बिजी हो जाओ पर यार तुम्हें समझना पड़ेगा, हम लोग अपने काम धंधे छोड़कर घर में नहीं बैठ सकते और वैसे भी यह तुम बात बात पर दवाई लेती हो यह गलत है, हर बीमारी की दवा का इलाज सिर्फ दवा नहीं होती! खुद में बदलाव जरूरी है,
तुम्हारी समस्या सिर्फ मन ना लगने की है ना.. तो तुम मन को अपने ऊपर मत हावी होने दो बल्कि तुम मन के ऊपर सवार हो जाओ और जो तुम्हारा मन करे तुम वही करो! देखो मैंने तुम्हें आज तक किसी भी बात की रोक-ठोकी नहीं की है, तुम वापस से अपनी सहेलियों के साथ घूमो फिरो, और कुछ
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नहीं तो सुबह-शाम पार्क में ही चली जाओ, आजकल अकेलापन तो हर किसी की जिंदगी में है, पर क्या अकेलापन का इलाज दवाई है? नहीं ना… हम चाहे तो स्थितियां बदल सकते हैं, बस जरूरत थोड़े से खुद में बदलाव की है! तो सौम्या मैं चाहता हूं तुम 15 साल पहले वाली सौम्या बन जाओ,
जब तुम कितनी फुर्ती से घर का, बाहर का सारा काम भी करती थी और अपनी सहेलियों के लिए, अपने और कार्य के लिए भी समय निकाल लेती थी! अब तुम सारे दिन बीमार की जैसे रहने लग गई हो, जबकि जब भी तुम्हारा चेकअप करवाते हैं तुम्हारे कुछ भी बीमारी नहीं निकलती! और मुझे माफ कर दो,
मैं तुम्हारी ऐसी बातें सुन सुनकर सुबह चिड़चिड़ा हो जाता हूं, फिर मुझे दुख होता है कि मैं अपनी पत्नी का साथ नहीं दे पाता, किंतु सौम्या मेरी भी तो मजबूरी समझो, मैं ऐसे कब तक छुट्टी लेकर घर पर बैठा रहूंगा और तुम्हारी बीमारी तो कोई शारीरिक नहीं है
बल्कि मानसिक है, इसके लिए तो तुम्हें खुद को ही हल निकालना होगा हां मैं तुम्हारी मदद जरूर कर सकता हूं, तुम्हें खुद में आत्म विश्वास जगाना होगा कि तुम पूर्ण रूप से सक्षम हो! कल से हम दोनों ही सुबह आधा घंटा पहले उठ जाएंगे और फिर पार्क चलेंगे, वहां मैं तुम्हारी जैसी महिलाओं से तुम्हारा परिचय करवाऊंगा,
देखना वह अपनी जिंदगी को किस तरह से एंजॉय करती हैं! अरे यह तो शुक्र मनाओ हमारे तो दो बच्चे हैं ,माना कि अभी वह बाहर पढ़ रहे हैं, कई औरतें तो ऐसी हैं जो बिल्कुल अकेली है, फिर भी वह खुशहाल तरीके से अपनी जिंदगी जी रही हैं,
क्योंकि वह जानती हैं हर बीमारी का इलाज दवा नहीं होती खुद को भी बदलना जरूरी है,! सौम्या अपने पति राघव की ऐसी बातें सुनकर थोड़ी देर सोच में पड़ गई किंतु फिर उसे लगा राघव ने कितनी सही बात कही है, मैं अकेलापन अपने ऊपर हावी नहीं होने दूंगी, करने के लिए कितने सारे काम पड़े हैं, मैं अब अपने आप को
उनमें बिजी कर लूंगी और जैसे ही उसने सोचा उसे लगा उसके शरीर में नए प्राण आ गए हैं, हां मैं आज से बल्कि अभी से अपने आप को खुश रखने की कोशिश करूंगी और हिम्मत करूंगी कि मैं बीमार नहीं रहूं क्योंकि मैं बीमार हूं ही नहीं! इसके लिए प्रयास मुझे ही करने पड़ेंगे और सौम्या यह सब सोच कर ही एक नई ऊर्जा से भर गई!
हेमलता गुप्ता स्वरचित