हक़ – विनय कुमार मिश्रा

मैंने ताई के घर की तरफ देखा। ताई नहीं थी।मैंने चैन की सांस ली। जब कभी मुझे बाहर निकलते देखती हैं।उन्हें कुछ ना कुछ बाजार से मंगाना ही होता है।कभी सब्जी, कभी दवा तो कभी दूध।तंग आ गया हूँ उनसे।जी तो चाहता है कभी सुना दूं कि खुद के बेटे को बाहर भेज दिया और मुझे नौकर समझ रखा है क्या। पर अकेली रहती हैं।अंकल भी शायद बीमार रहते हैं।चुप हो जाता हूँ ये सोचकर। अपनी बाइक मैं अब घर से दूर ले जाकर स्टार्ट करता हूँ कि कहीं आवाज सुन कर आ ना जाएं। बाइक लेकर अभी मोहल्ले की मोड़ से मुड़ने ही वाला था कि ताई दिख गई। हाथों में बड़ा सा झोला लिए पैदल। पसीने से तर बतर। जाने क्या हुआ मुझे, मैंने बाइक रोक दी

“नमस्ते ताई! पैदल..क्यूँ.. रिक्सा नहीं था क्या?” सांस तेज चल रही थी उनकी। अपने पल्लू से पसीने को पोछ थोड़ा रुक कर

“नमस्ते बेटा, वो रिक्से वाले..ज्यादा पैसे मांग रहे थे” झोले को किसी तरह जबरजस्ती उठा वे फिर चलने को हुई। उन्हें इस हाल में देख मैं पसीज गया

“लाइये ताई मैं ले चलता हूँ”

उन्होंने कुछ देर देखा मुझे फिर कुछ सोचने लगीं

“चलिए ना ताई क्या सोचने लग गई’ उन्होंने कुछ बोला नहीं। मैंने खुद उनके हाथों का सामान लिया और उन्हें पीछे बिठाकर उनके घर ले आया। अंकल फ़ोन पर बातें कर रहे थे।

“बेटा, मैं भी बहुत बीमार रहता हूँ, तेरी माँ भी थक चुकी है।अभी बाजार गई है।फिर मेरी दवा लाने मेन मार्केट जाएगी। मोहल्ले के बच्चे कितना करेंगे हमारे लिए। वो भी बचने लगे हैं हमसे।”

अंकल की ये बात सुन मैं कहीं ना कहीं खुद से नज़रें चुराने लग गया था। अंकल हाथ में दवा की पर्ची लिए फ़ोन पर बातें किये जा रहे थे

“हमें अपने साथ ही रखता तो..” ना जाने उधर से क्या बोला गया। अंकल फ़ोन रख रोने से लग गएं। ताई उनको चुप कराते हुए

“आप क्यूँ उससे रोज रोज ये विनती करते हैं, मैं हूँ ना..जबतक सांस है मैं खींच लुंगी अपनी गृहस्थी” ताई ने उनके हाथ से दवा की पर्ची ले ली

उनकी ये परिस्थिति देख दिल में दर्द सा उठ आया

“तुम जाओ बेटे, तुम्हें देर हो रही होगी” ताई ने भरी हुई आवाज में मुझे जाने को कहा। उन्हें देख मेरी आँखें भी भर आईं

“मुझे माफ़ कर दीजिये ताई! मैं पड़ोस में रहकर आपकी इन परिस्थितियों से अनजान था। आप मुझे पर्ची दीजिये मैं दवा लेकर आता हूँ

“जब खुद का बेटा सब जानकर ही अनजान बना बैठा है तो तुम क्यूँ माफ़ी मांग रहे हो बेटे”

“क्यूंकी आप मुझे भी तो बेटा कहती हैं ताई”

मैंने अपने इस हक़ से उनके हाथों से पर्ची ले ली। उन्होंने भी मेरे माथे को चूम अपना हक़ जता दिया..!

विनय कुमार मिश्रा

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