हैप्पी न्यू इयर” – उषा भारद्वाज

 

        आज नव वर्ष का पहला दिन ,सभी लोग कॉल मैसेज कर रहे। शुभकामनाओं का तांता लगा हुआ है। जाने क्यों मन में एक  बात आ रही है कि सब कुछ वैसा ही है, जैसे बीता हुआ कल था । बदली है तो सिर्फ वर्ष की संख्या।

 हर बात वही है। दिन की शुरुआत की सुबह वही है, सूर्य भगवान की पहली किरण वही है। दोपहर की हल्की धूप वही है, और शाम को बढ़ती हुई ठंड हुई है।

    फिर भी सब कितने खुश हैं । यह जोश ये खुशी उत्साह रोज  क्यों नहीं रहता। रोज  सब एक दूसरे से मिलने के लिए परेशान क्यों नही होते हैं । यदि समय की कमी है तो रोज नहीं तो कभी कभी तो हालचाल ले सकते हैं। छोटों के मत लो बराबर वालों के मत लो, लेकिन जो बुजुर्ग हैं उनके तो हाल चाल ले सकते हैं । बुजुर्गों को इस उम्र में धन दौलत ,

रुपए- पैसे से मतलब नहीं होता।उनको तो एक साथ चाहिए होता है ,जो कोई भी हो, जो उनको थोड़ा समय दे, उनके पास बैठे , उनकी बात सुने, समझे।

      कॉलोनी के कॉर्नर में रहने वाली बुजुर्ग महिला जिनकी उम्र लगभग 75-76 के करीब में होगी उनके भतीजे उनको काकी कहते हैं।  तो पूरी कॉलोनी में  सारे छोटे बडे उनको काकी कहने लगे।

       जब तक वह ठीक से चल पाती थी, किसी को भी कोई परेशानी हो ,किसी के घर में  कोई दिक्कत हो, कोई बीमार हो, यदि उनको पता लग जाता था तो तुरंत उसके घर जा कर उसका हाल-चाल लेती।  फिर तब तक उसका हाल-चाल लेने जाती और अपनी सामर्थ्य के अनुसार उसकी मदद करती जब तक वह व्यक्ति ठीक नहीं हो जाता या उसकी समस्या हल नहीं हो जाती । लेकिन आज काकी असहाय हो गई हैं।  अब उनको सहारा लेकर चलना पड़ता है। मधुमेह रोग के कारण उनके पैर और हाथ कांपने लगे हैं। जैसा कि डॉक्टर ने उनको बताया है । जो उनसे मिलने जाता है,यही बात वो  बताती हैं। 




      उन्होंने अपने सास- ससुर की बहुत सेवा की । उनके अपने बच्चे नहीं हैं लेकिन अपने देवर के बच्चों का पालन पोषण अपने बच्चों की तरह किया ।

     देवर की बेटी सविता जो विवाहित है। वह जब उनकी बीमारी मे  आयी तो उन्होंने अपने कान के कुंडल अपने गले की चेन उसको दे दिया। उसने मना किया तो कहने लगी – ” जो दे रही हूँ रख  लो। और मैं क्या दूं ? अब तो उठने में भी दस बार कोशिश करती हूँ तो उठती हूं । एक दिन गिर गयी थी तभी छोटे ने देख लिया तो उठाया गरम करके तेल भी उसने लगाया।” ये सुनकर सविता की आंख मे आंसू आ गये मन द्रवित हो गया। 

    बचपन मे ही माता पिता एक एक्सीडेंट मे चल बसे थे । तब से काकी ने उसको और उसके दोनो छोटे भाईयों का बिल्कुल अपने बच्चो की तरह पालन पोषण किया । फिर ताऊ जिन्हे वो कक्का बोलती थी उनकी भी मृत्यु हो गयी। अब काकी ही उनकी सबकुछ थी । काकी भी उनको खाना खिलाने के बाद खाती थीं। अपनी खुशी उन बच्चो की खुशी मे समझती थीं। फिर बच्चे बडे हुए सबका विवाह भी खूब देखभाल कर अच्छे घर में किया। फिर धीरे धीरे बीमारियों ने उनको घेरना शुरू किया। तब वो न चाहते हुए भी सहारा चाहने लगीं। छोटी बहू नौकरी करती थी इसलिए  छुट्टी वाले दिन वो काकी का पूरा ख्याल रखती थी। नहाने में उनकी मदद करना,  सर में तेल लगाना कंघी करना दवा भोजन जैसे काम। लेकिन बडी बहू को काकी एक आंख न सुहाती थी। पूरे समय कर्कश आवाज मे ताने मारती रहती और बात बात पर झिड़क देती। कैसे भी करके वो बालों को फीते से लपेट लेती ।और उससे कहती- अरे  बेटा तू परेशान न हो मैं सब कर लूंगी।”  सविता को सब अह्सास था लेकिन वो कुछ कह नहीं पाती थी इसीलिए वो काकी से मिलकर थोडी देर मे चली जाती ,उतने समय मे वो काकी की जितनी सेवा कर पाती, करती थी। वो ससुराल में सास ससुर के साथ रहती थी रोज रोज नही आ सकती थी। लेकिन जब आती बडी भाभी के व्यवहार से दुखी होकर जाती थी। अभी सविता सोच ही रही थी कि काकी बोली- अब तो भगवान से कहो कि काकी को बुला लें।”

 काकी कैसी बात कर रही हो? सविता उनकी बात से दुखी हो गयी। 




    तभी अचानक दूसरे कमरे से भाभी रीना के रोने की आवाज सुनाई पड़ी । सविता तेजी से उनके कमरे में पहुंची उसने देखा भाभी के हाथ में फोन था और वह  रोते-रोते कुछ बोल रही थीं उसने पूछा-  क्या हुआ भाभी ?

वो सविता की तरह मुड़ी और बोली – दीदी, मम्मी की तबीयत बहुत खराब हो गई है। डॉक्टर बता रहे हैं कि बहुत मुश्किल है उनका बचना। उनके पास भाई के सिवा कोई नही है।”

  सविता ने कहा- भाभी खुद को संभालो और राहुल भाई को फोन करो उनके साथ चली जाओ। आपकी भाभी तो हैं, वो ध्यान रखेंगी।”

” नही दीदी वो तो मम्मी का बिल्कुल ख्याल नहीं रखती। वो सही होती तो आज ये दशा न होती।”  भाभी रोते हुए बोली।

   फिर राहुल के पास फोन लगाने लगी । तभी पीछे से आवाज आई जिसे सुनकर दोनो चौंक कर पीछे पलटी।

   अरे मम्मी आप, -भाभी आश्चर्य से चीख पडी। ये फोन किसने किया था? 

शांत रह। बताती हूं फोन मैने ही करवाया था – भाभी की मम्मी  बैठते हुए बोली। 

हां मम्मी,ये भी बताइए क्यों-” तभी पीछे से राहुल की आवाज आयी ।

” मतलब , आप लोग मेरे साथ गेम खेल रहे थे। मैं कितना रोई परेशान हुई हूं, आपको कुछ अह्सास है?” – रीना बिफर पडी।   

 “गेम नही बेटा , एक सबक, क्या मैने तुझे ये संस्कार दिए थे कि सिर्फ अपना ही कष्ट तुझे समझ में आये। दूसरे का कष्ट समझ में ना आए। किसी  की सहायता किसी की सेवा करनी पड़े तो बोझ है। क्या तेरी काकी का कष्ट तेरे लिए मायने नहीं रखता।” – रीना की मां उससे डांट के स्वरों में बोली। 

 रीना राहुल की तरफ देखने लगी जो खामोशी से सुन रहा था। वो समझ गयी कि राहुल जब उसको समझा न पाये तो मम्मी की मदद ली । लेकिन साथ ही उसे बहुत ग्लानि का अहसास हो रहा था । वो तुरन्त उधर गयी जहां काकी थीं। काकी “हैप्पी न्यू इयर”-और कहने के साथ उनसे लिपट कर रोने लगी जो उस मां से बाकी बचे थे वो अब बह चले। काकी ने  भी खुश होकर कांपते हाथो से उसको अपने सीने से लगा लिया और बोली- “हैप्पी न्यू इयर ” बेटा। “हां काकी आज सब नया हो गया।”- रीना काकी के दोनो हाथों को अपने हाथों मे लेते हुए बोली।

 

उषा भारद्वाज

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!