गर्मी के मारे गला सूख रहा था इधर उधर नजर दौड़ाई तो एक रेस्टोरेंट नजर आया और मैं लपक कर घुसी और एक जगह खाली पाकर बैठ गई और फिर याद आया सुबह से कुछ खाया नहीं है तो एक नींबू पानी और सैंडविच का ऑर्डर देकर अपना मोबाइल चेक करने लगी तभी एक खुशबू का झोंका आया सामने नजर दौड़ाई तो देखा एक खूबसूरत सी 40- 45 वर्षीया महिला नजर अाई।
आंखों पर धूप का चश्मा सफेद रंग का हाई नेक का कुर्ता और प्लाजो और चेहरे पर मास्क उसने इधर उधर देखा और फिर शालीनता से एक वेटर को बुलाया और धीरे से कुछ कहा वेटर 2 मिनट के बाद ही एक गिलास पानी ले आया महिला ने पानी पीने के लिए जैसे ही मास्क उतारा मेरे मुंह से निकला “आभा” महिला ने चौंक पर मेरी ओर देखा।
आंखों में एक पहचान से उभरी और पानी का गिलास टेबल पर रख कर वह फौरन मेरे पास आई और “संगीता” कहते हुए गले लग गई आवेग से दोनों का गला रूंध गया वह आभा थी मेरी प्रिय सखी हम तकरीबन 8-10 साल बाद मिल रहे थे मैं न्यूजीलैंड चली गई थी पतिदेव का प्रोजेक्ट था तो कंपनी ने उन्हें भेज दिया बच्चे दोनों सेटल हो गए थे।
ये भी पढ़े: स्त्री भी अपने लिए प्रेम और ममत्व चाहती हैं !! – स्वाती जैंन : Short Animal Stories in Hindi
अपनी दुनिया में मस्त हो गए तो मैं भी पतिदेव के साथ चली गई वहां से मैंने आभा को कई बार फोन लगाया पर उसने शायद अपना नंबर बदल लिया था या कुछ और वजह थी उससे बात ही नहीं हो पा रही थी बहुत खोजने पर मुझे खबर मिली कि उसकी हालत बहुत खराब है वो डिप्रेशन में चली गई है और किसी से भी मिलती जुलती नहीं है।
अब डिप्रेशन में क्यों गई इसका उत्तर मुझे किसी से नहीं मिला और फिर एक बार जो पता चला उससे तो मैं भी पूरी तरह से हिल गई पर वह खबर कितनी सच थी कितनी झूठ वह पता नहीं चल पाया और फिर धीरे धीरे मैंने भी नई जगह नए देश में अपना एक सर्कल बना लिया और फिर इतने साल कैसे बीते पता ही नहीं चला।
और आज अचानक आभा को इस रूप में देखकर मैं आश्चर्यचकित हो गई थी कि जो मैंने आभा के बारे में सुना था वह सही था या यह आभा जो मेरे सामने इतने आत्मविश्वास से बैठी हुई थी। “कहां गायब थी, मैंने तुम्हें कितना फोन लगाया, सब से पूछा पर कुछ भी ना पता चला सब ठीक था ना ? मैंने आभा से पूछा ।
ये भी पढ़े: बहू…तुम अपने किस बेटे से ज्यादा प्रेम करती हो!!-मीनू झा : Simple Short Motivation Stories in Hindi
“तुम्हें कैसी लग रही हूं ?” आभा ने हंसकर पूछा । “वही तो जो सुना था उससे तो एकदम उलट ही हो एक दम बिंदास वैसे ही स्मार्ट और कॉन्फिडेंट तो पहले से ज्यादा ” मैंने भी हंसकर कहा । “अच्छा क्या सुना था तुमने ?
” प्रश्न आया आभा की तरफ से “यही कि ….छोड़ और बता सब ठीक है” मैंने एकदम बात बदल दी । “नहीं बता ना क्या सुना आभा पीछे ही पड़ गई । “यही कि…” अभी इतना ही बोल पाई की आभा की आवाज आई मुझे कोढ़ हो गया था, मैंने सुसाइड करने की कोशिश की, मैं डिप्रेशन में चली गई यही सुना था ना” मैंने झिझकते हुए हां में सर हिला दिया और पूछा क्या यह सब सच था।
आभा का जवाब था “सिर्फ एक बात सच थी कि मैं डिप्रेशन में चली गई थी” । “यह सच है तो फिर यह बीमारी का नाम बीच में कैसे आया” मुझे बीमारी का नाम लेने में भी बुरा लग रहा था और जिसने इस नाम को अपने से जुड़ा पाया होगा उसे कितना बुरा लगा होगा, मेरे दिमाग में चल रहा था । “तुझे बताया किसने … रुक मैं बताती हूं मेरी ननद ने… है ना?”
मैंने हैरानी से देखा “हां” मेरा जवाब था । “सुन मैं बताती हूं ।एक दिन मैं रवि के साथ लूडो खेल रही थी कि रवि अचानक बोल पड़ा “मम्मा ये क्या हुआ मैंने देखा मुझे मेरे पैर में एक छोटा सा दाग दिखाई दिया उस समय तो मैंने ध्यान नहीं दिया पर थोड़े समय के बाद देखा तो वह बढ़ गया और अब हाथों में भी दाग दिखने लगे तो डॉक्टर को दिखाया तो उसने कहा
ये भी पढ़े: चलो दिलदार चलो चांद के पार चलो.. – निधि शर्मा : Very Short Motivation Story in Hindi
यह ल्यूकोडर्मा है, सफेद दाग, त्वचा रोग इसमें शरीर में सफेद सफेद धब्बे होने लगते हैं जो धीरे-धीरे बढ़ते जाते हैं अब मैंने इलाज शुरू किया पर कोई फर्क नहीं पड़ा उल्टा दाग बढ़ने शुरू हो गए मुझे चिंता होने लगी पर दुख तब ज्यादा होने लगा जब लोग कुरेद कुरेद कर पूछने लगे धूप में कैसे लगता है, खारिश होती है..?
भई तुम स्विमिंग पूल में मत जाया करो । अपना खाना अलग रखा करो, बच्चे को तो छुआ मत करो वगैरा-वगैरा जबकि डॉक्टर ने कहा भी था कि यह छूत की बीमारी नहीं है पर लोगों को कौन समझाए हद तो तब हो गई जब बड़ी ननद की लड़की की शादी में ननद ने सबके सामने कह दिया भई.. हमारे भाई की तो जिंदगी खराब हो गई।
उसकी बीवी को तो कोढ़ हो गया है, अभी मैं कुछ कहती कि पतिदेव एकदम गुस्से से बोले दीदी बेकार की बात मत करो ये सफेद दाग हैं अगर कुछ पता ना ही तो मत बोला करो। बस उस दिन मेरा दिमाग ऐसा हिला कि मैंने अपने आप को घर में ही कैद कर लिया किसी से भी मिलना जुलना बंद कर दिया फोन पर भी किसी से बात नहीं करती बस अपने आप में ही घुलने लगी ।
रवि के पापा को हमेशा कहती मेरे साथ ही ऐसा क्यों ? यूनानी, आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक , एलोपैथी ऐसा कोई भी इलाज नहीं बचा जो मैंने छोड़ा हो । कोई कुछ भी बताता मैं फौरन करती दूध से बनी चीजों को छोड़ दो मैंने छोड़ दिया हरसिंगार के पत्ते लिया करो मैंने लिए पर कुछ ना होना था ना हुआ।
ये भी पढ़े: “इज्जत इंसान की नहीं पैसे की होती है” – अनु अग्रवाल : Short Moral Story for Adults in Hindi
बस रवि और उसके पापा थे जो मेरी हिम्मत बनाए रखते थे। एक दिन भाई के बहुत बुलाने पर मैं उनके घर चली गई । अभी अंदर घुसे ही थे कि भाभी ने प्लास्टिक की कुर्सी दरवाजे के पास रख दी और बोली आभा यहीं बैठ जाओ और अभी किसी की तरफ से कोई प्रतिक्रिया आती रवि और उसके पापा एकदम से उठे और मेरा हाथ पकड़ कर बाहर आ गए।
बस इसके बाद तो मैं डिप्रेशन में चली गई खाना खाती तो खाती चली जाती कभी कभी दो दो दिन तक कुछ ना खाती कई बार सोती तो उठती भी नहीं थी, बिन बात रोना शुरू कर देती बस चाहती कि कोई मुझसे कुछ ना बोले बस मुझे सोने दे ।
जिंदगी बेकार सी लगने लगी थी तुम्हें पता है ना मुझे स्लीवलेस पहनने का कितना शौक था पर अपनी इस बीमारी की वजह से लोगों के टोकने की वजह से मैंने फुल स्लीव्स और हाई नेक के गले पहनना शुरू कर दिए , दागों को छुपाने के लिए हाथों में मेंहदी लगाने लगी ऐसे ही पांच-छह साल निकल गए और फिर एक दिन तुम्हें याद होगा हमारी एक सहेली थी एकता, वही जिसने मनोविज्ञान में एम ए किया था।
वह मुझे मिली और मेरी हालत देखकर पहले तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ और फिर धीरे-धीरे उसने मुझे समझना शुरू किया और फिर मुझे समझाने के प्रयास मे लग गई । मुझे बाहर ले जाने लगी कभी मंदिर ले जाती कभी पिकनिक का प्रोग्राम बना लेती कभी मॉल ले जाती कभी डांट के, कभी प्यार से हर तरह से उसने मुझे समझाना शुरू किया ।
अपने घर भी ले गई उसकी दो बच्चियां थी जो रवि की ही हमउम्र थी 2- 4 साल का अंतर होगा उन्हें लेकर हमारे घर आ जाती घर में रौनक सी रहने लगी वह मुझे बहुत समझाती कि ऐसी बीमारी नहीं है कि तुम जिंदगी जीना ही छोड़ दो, स्थिति को स्वीकार करो, लोगों की बातों में ध्यान लगाना छोड़ दो ।
तुम्हें पता है तुम्हारा पति और रवि कितना ख्याल रखते हैं जिंदगी को जियो देखो दुनिया तुम्हें कभी खुश देख नहीं सकती आज यह बात तो कल कोई और बात। रही बात इस समाज की तो समाज किसी को दुखी देखकर ही खुश होता है जो पहनना है पहनो , जहां जाना है जाओ जब नाचने का मन करे तो नाचो पति और बेटे को अपनी वजह से दुखी मत करो तुम उनकी जिंदगी हो तुम्हारे बिना उनकी ज़िंदगी कैसी होगी तुमने कभी ये सोचा है ?
और मैंने एक बार कहीं पढ़ा था कि वक़्त के साथ हर ज़ख़्म भर जाता है हकीकत ये है कि ज़ख़्म वही रहता है पर उसे सहने की आदत हो जाती है’ और फिर सच में मैंने अपने आप को बदलना शुरू किया। एकता मुझे 1-2 NGO में ले के गई और फिर मुझे लगा कि दुनिया में तो मेरे से भी ज्यादा दुखी लोग हैं बस मैंने फिर जीना शुरु किया ।
मुझे जो मेरा दिल करता है करती हूं घर में भी खुश रहती हूं बाहर भी खुश रहती हूं । मेरी कुछ बहुत ही अच्छी सहेलियां हैं जो मेरे दर्द को, मेरी मनस्थिति को समझती हैं उनके साथ पांच छह दिन के लिए बाहर घूमने चली जाती हूं।
हफ्ते में दो बार NGO भी जाती हूं । भगवान ने एक काम तो बहुत अच्छा किया कि मुझे पति बहुत प्यारा दिया बेटा बहुत केयरिंग है वरना घर में ही अगर मेरी ननद और भाभी जैसे लोग हों तो किसी दुश्मन की तो जरूरत ही नहीं है ।
अब मैं सब को समझाती हूं जिंदगी को जिंदादिली से जियो बस सोचो तुम ही तुम हो और खुश रहो और एक बात तो समझ में आ गई कि मुझे ही मजबूत बनना होगा वरना दुनिया तो मुझे रोते हुए ही देखना चाहती है तो मैं क्यों न हंसू और इस समाज को दिखाऊं कि एक मां, पत्नी … इक नारी क्या नही कर सकती”.. और आभा की आंखों की चमक उसकी खुशी को बयां कर रही थी।
#दाग
शिप्पी नारंग
1 thought on “हंसते ज़ख्म – शिप्पी नारंग : Short Stories in Hindi”