अचानक हुई घर के मालिक की मौत से परिवार गहरे सदमे में डूब गया।
रजनी के पति समीर की हृदयाघात से अचानक मृत्यु हो गए थी वैसे उन्हें कोई भी खास बीमारी नहीं थी।
सगे सम्बन्धियों और पड़ोसियों की भीड़ जमा हो गई थी, रजनी अपने इकलौते बेटे वेद को गोद में लिए बैठी सिसक रही थी, रात से रोते रोते जैसे उसके आंसू सूख चुके थे, पर अपने और अपने बेटे का अकेलापन उसको खाए जा रहा था।
सब उन्हें सांत्वना दे रहे थे, सबकी जुबान पर एक ही चर्चा थी कि समीर ऐसे अचानक कैसे चले गये,
मौत जैसे सन्नाटे के बीच कई बार बर्तनों की खनक सुनाई पड़ी,
सब की नज़रें बार बार रसोई की तरफ उठने लगीं ।।
क्या रसोई में कोई भोजन बना रहा था, पर ऐसा कैसे हो सकता था!
जिस घर में मौत होती है वहां कई दिनों तक भोजन नहीं बनता , खाना रिश्तेदार और पड़ोसियों के घरों से आता है, तब फिर रसोई में क्या हो रहा था?
एक पड़ोसन शीला ने उठकर रसोई में झाँका तो कामवाली शांता बर्तन साफ करती दिखाई दी।
शीला ने गुस्से से कहा-‘’ शांता ये सब बंद करो, बाहर सबको लग रहा है जैसे कोई खाना बना रहा हो।’’
शांता ने कहा-‘’ दीदी गंदे बर्तन साफ कर रही हूँ।’’
तो बाद में आकर कर देना।’’- शीला ने कहा।
शांता की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे,बरतन रात के झूठे थे इतने गंदे बरतन यूँही कैसे छोड़ दे।
ऐसे गमगीन मौके पर रजनी से भी कुछ पूछना मुश्किल था।
कुछ सोच कर शांता ने शीला ने कहा-‘ दीदी मैं एक काम करती हूँ , जूठे बर्तनों को अपने घर ले जाती हूँ, साफ करके ले आउंगी।’’
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चतुर पड़ोसन शीला को लगा कहीं शांता इस तरह कई बर्तन अपने घर में ना रख ले,
यही सोचकर शीला ने कहा –‘’ बर्तन गिन कर ले जाना और उसी तरह वापस ले आना।’’
यह बात शांता को कहीं अंदर तक बहुत बुरी लगी बोली-‘’ दीदी कम से कम मुझे चोर तो मत कहो।’’
शीला ने बात बनाते हुए कहा-‘’ अरे नहीं मेरा वह मतलब नहीं था, और बाहर चली गई।
शांता कुछ पल चुप खड़ी रही फिर बर्तनों को एक बोरी में डाल कर अपने घर ले गई ।
घर पर बेटी सिया बोरी देख कर हैरान रह गई। कहा-‘’ माँ, इतना सामान क्यों ले आई हो, शाम को आने वाले मेहमानों के लिए पापा पहले ही मिठाई और नमकीन ले आये हैं।’
बेटी की बात सुन कर शांता मुस्करा दी। बोली-‘’ बोरी में वैसा कुछ नहीं है जैसा तू समझ रही है।’ कहते हुए शांता ने बोरी उलट दी, बोरी उलटटे ही सारे गंदे बर्तन टन टन करते हुए फर्श पर बिखर गए।
गंदे बरतन देखकर सिया की आंखे जिज्ञासा से अपनी माँ की तरफ उठी तो शांता ने पूरी बात बता दी।
सुन कर सिया उदास हो गई।
वह समीर बाबू को अच्छी तरह जानती थी।
माँ-बेटी ने मिल कर बर्तन साफ किए उसके बाद घर की झाड़-पोंछ शुरू कर दी।
शाम को सिया को देखने कुछ लोग आने वाले थे। तख़्त पर नई चादर और टेबल पर सुंदर मेजपोश बिछा दिया गया।
अब प्लेटों में नाश्ता लगाने की बारी थी।
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प्लेटों में नाश्ता लगाते हुए शांता की आँखें धोकर रखे गए रजनी के घर से लाए हुए बर्तनों पर टिक गईं । स्टील के बर्तन धूप में खूब चमक रहे थे,कितने सुंदर लग रहे थे।
फिर घूमती हुई आँखें अपने घर की प्लेटों पर गईं, घर की प्लेटें पुरानी और घिसी हुई थी और आज कुछ ज्यादा ही बदरंग भी लग रही थीं।
शांता के ने कहा – इन प्लेटों में मेहमानों के सामने नाश्ता भूल कर भी मत रखना वर्ना बात बिगड़ जाएगी, शांता कुछ देर तक सोचती रही फिर रजनी की नई प्लेटें उठा कर उनमे नाश्ता सजा दिया।
हाँ यह करते हुए उसकी उँगलियाँ काँप रही थीं लग रहा था जैसे चोरी कर रही हो उसका मन लगातार धिक्कार कर रहा था पर बेटी के भविष्य की खातिर मन को समझाते समझाते नाश्ता भी लगाए जा रही थी।
सिया तैयार होकर रसोई में आयी तो देख कर चौंक गई, बोली-‘’ माँ, यह क्या ! य़ह गलत है, हम जैसे हैं वैसे ही ठीक हैं , माँ आज तुम्हे अपनी प्लेटें क्यों बुरी लग रही हैं कुछ और भी बोलना चाहती थी पर उसे चुप होना पड़ा क्योंकि मेहमान आ गए थे।
वे चार थे – लड़का, उसकी बहन और माता-पिता। स्वागत के बाद मेज पर नाश्ते की प्लेटें लगा दी गईं। सिया बहुत सुंदर दिख रही थी, जब वह धीरे से मुस्कराई तो लड़के ने ध्यान से उसकी तरफ देखा| लड़के की माँ ने सिया को अपने पास बैठा लिया और बोली –‘’ शांता बहन, भाईसाहब आपकी सिया मुझे बहुत पसंद है ,और मेरे बेटे राजेश को भी बेहद पसंद आयी है।
कुछ देर बाद मेहमान चले गए ,उनके जाते ही माँ बेटी आलिंगन में बंध गईं ,शांता ने सिया का माथा चूम लिया। बोली –‘’ आज बहुत शुभ दिन है, चल अब जाती हूँ रजनी दीदी के घर जाकर देख आऊँ,
फिर बर्तनों को बोरी में भर कर रजनी के घर की तरफ चल दी। चलते चलते शांता के मन मे रजनी के बारे मे सोचती जा रही थी रजनी दीदी के बेटे वेद की अभी उम्र ही क्या है ,अभी तो बहुत छोटा है।
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यहां तक कि रजनी दीदी की उमर भी ज्यादा नहीं है, भले ही पैसे की कोई दिक्कत नहीं है।,लेकिन पति का इस तरह एकाएक चले जाना जिन्दगी को उलट पलट कर देता है।
शांता अब चुप थी लेकिन बोरी में बंद बर्तन अब आपस में बातें कर रहे थे। एक कटोरी ने थाली से कहा-‘’ थाली दीदी, तुमने देखा शांता की बेटी सिया कितनी सुंदर लग रही थी , थाली बोली-‘’ तुमने ठीक कहा राजेश भी खूब जंच रहा था दोनों की जोड़ी खूब जमेगी,तभी एक चम्मच बीच में बोला-‘’ अगर आप बुरा न मानें तो एक बात कहूँ,,,,,,,,,,,
‘हाँ हाँ, तू भी कह डाल ,थाली ने कहा।
आप सबने शांता के घर के पुराने बर्तनों को तो देखा ही होगा, कितने पुराने और घिसे हुए थे,
तभी तो उसने नाश्ते की प्लेटें बदल दी थीं। अगर नाश्ता पुरानी प्लेटों में दिया जाता तो क्या होता?’’ ग्लास ने बात बढ़ाते हुए कहा,
‘चुप शैतान।’’ थाली ने कहा “हमेशा बुरा सोचता है यह क्यों नहीं कहता कि सिया का जीवन सुखी हो जाए।’’
शांता रजनी के पास पहुंची तो देखा काफी लोग चले गए थे, शांता की दो बहनें बैठी थीं। वे खाना लेकर आईं थीं पर किसी ने कुछ भी नहीं खाया था, वेद भी भूखा था।
शांता ने बर्तनों की बोरी एक तरफ रख दी और रजनी के पास बैठ कर उसका सिर सहलाने लगी।
फिर धीरे से बोली-‘’ दीदी आप नहीं खाएंगी तो वेद भी भूखा रहेगा ,आपको उसकी कसम।’
फिर एक प्लेट में खाना लगा कर ले आई और रजनी तथा प्रेम को खिलाने लगी। च
तभी एक चम्मच बोरी के एक छेद से बाहर गिर गयी थी,
वो लता की बातें देख सुन रही थी।
शांता रसोई में प्लेट रखने गई तो उसने चम्मच को फिर से बोरी में डाल दिय,| चम्मच ने थाली से कहा –‘’ दीदी मैंने शांता का अजीब व्यवहार देखा , अपने घर में वह कितना हंस रही थी, लेकिन यहाँ दुःख का कैसा दिखावा कर रही है।’
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थाली ने उसे डांट दिया। बोली-‘’ मैं शांता को बहुत अच्छी तरह से जानती हूँ, वह दिल की साफ़ है। अपने घर पर वह खुश थी क्यूंकि उसकी बेटी सिया का रिश्ता तय होगया, और यहाँ वह रजनी के दुःख में मन से शामिल है।
सुख और दुःख दो भाई हैं । दोनों हर घर में आते जाते रहते हैं।
आज यहाँ दुःख आया है तो कुछ समय बाद इसका भाई सुख भी आएगा। ‘
इस सबसे अनजान शांता रजनी को सांत्वना दे रही थी दोनों की आँखों में आंसू थे।
इतिश्री
नीलिमा सिंघल