हां मुझे शिकायत है – मंजू तिवारी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : 10 दिन पहले ही सीमा के पति का बीमारी के चलते निधन हो गया सीमा के बच्चे भी अभी बहुत छोटे हैं।,,,और उसकी उम्र भी अभी 35 साल ही होगी,,,,,,

 अभी घर में 8 दिन से सगे संबंधियों का आना-जाना सांत्वना सहानुभूति चल रही थी

 बेचारी पति के जाने से और बच्चों का मुंह देखकर सोचती कि इतनी कम उम्र में ही मेरे बच्चों के  सिर से पिता का साया उठ गया,,,, और बच्चों की जिम्मेदारी भी उसी के ऊपर आ गई,,,,, ना कोई नौकरी ना कोई सहारा,,,, मेरे और मेरे बच्चों की जिंदगी का क्या होगा कैसे होगा यह सोच सोच कर रोए जाती कभी इस बच्चे को गले लगाती कभी उसे बच्चे को गले लगाती बच्चे भी थोड़ा-थोड़ा समझ रहे थे पिता के जाने के दुख को बच्चे मां से चिपट कर रोने लगते हैं। बड़ा करुणामय दृश्य बन गया था लोगों के आंखों से अनायास अश्रु धार बह रही थी,,,

आज पति को स्वर्ग सिधारे 9 दिन हुए हैं तो आज (शुद्धता) नौ बार की तैयारी चल रही है। जिसमें परिवार खानदान के सारे पुरुष अपने बाल मुड़वाने गांव से बाहर एक निश्चित स्थान पर जाएंगे जिसे देसी भाषा में यूपी में घाट कहा जाता है।

 जहां ट्यूबवेल और खुली जगह खेत होते हैं। वहां पर इस शुद्धता की क्रिया को किया जाता है वहीं पर पुरुष सर मुंडवाते हैं और नहाते हैं।,,,,

जब पुरुष  घर आ जाते हैं तो वही खाना पीना बनाते हैं  जिसमें कढ़ी चावल बनता है जो पुरुष बनाते हैं।

पुरुषों के घर आ जाने के बाद महिलाएं जाती हैं।

पुरुष नहा धोकर सिर मुड़वा कर घर आ गए हैं अब महिलाएं शुद्धता के लिए जाने वाली है।

इससे पहले परिवार खानदान की सारी महिलाएं घर आती हैं और खूब रोती हैं क्रंदन करती हैं। तो परिवार खानदान की सारी महिलाएं सीमा के घर आ चुकी है।

 जिसमें सीमा की जेठानी सास ननद सभी वहां पर इकट्ठी है और रो रही है। 

सीमा से पर्याप्त दूरी बनाए हैं। कहीं कोई उसे छू न जाए,,,,,, नहीं तो वह भी विधवा हो जाएगी,,,

  इसलिए  थोड़ी दूरी बनाकर बैठी है।इस तरह की धारणा महिलाओं में मानसिक रूप से घर कर चुकी है। इससे पढ़ी-लिखी महिलाएं भी अछूती नहीं है। जब उनके ऊपर आता है तो वह भी कहीं ना कहीं इन सब पाखंडों पर विश्वास कर ही लेती हैं।

अब सीमा का विधिवत रूप से श्रृंगार किया जा रहा है पैरों में महावर लगाई जा रही है जो नाई का काम होता है। श्रृंगार करने के बाद सारी महिलाएं खड़ी हो गई है।,,और घाट पर जाने के लिए तैयार है।,,,

 उनमें से कुसूर कुसूर की आवाज आती है। जो एक दूसरे को सीमा से दूर रहने के लिए इशारे कर रही है।,,,,

 सीमा एक उच्च शिक्षित महिला है। इन सब चीजों को देखकर बहुत दुखी हो रही है जो पहले से ही अपनी वेदना से दुखी  है।,,,, इस तरह के आडंबर और महिलाओं की बातें उसके दुख को और बढ़ा रही है।

लेकिन बेचारी चुपचाप बैठी सभी को सुन रही है।

अब ऐसी महिला को देखा जा रहा है जो सीमा का उतार करवा दे,,, यानी कोई विधवा महिला,,,,,, क्योंकि यह काम कोई सुहागिन महिला तो करेगी नहीं और सुहागिन महिला उसको अगर छुती है। तो शायद विधवा हो जाए,,, इसका पर्याप्त डर महिलाओं में बना रहता है।,,,, 

क्योंकि एक विधवा को दूसरी विधवा से कैसा डर उसका पति तो जा ही चुका है।,,,,, एक विधवा बूढी महिला मिल जाती है जो उसको सारा कुछ समझती है जो उसके साथ हुआ था उसे बताती है कि इस तरह से होगा और तुम्हें कैसे बैठना है। और कहां बैठना है।

इस सब के बाद सारी महिलाएं बाहर खुली जगह खेत में जहां घाट लगाया गया है यानी नहाने की व्यवस्था की गई है ट्यूबवेल लगा हुआ है। पहुंच जाती है। नहाने धोने की प्रक्रिया चलती है सारी महिलाएं नहा रही है और सीमा भी नहा रही है।

सारी महिलाएं नहा कर घर आ जाती है। जिससे उन महिलाओं की नजर सीमा पर ना पड़े लेकिन सीमा अभी वही है क्योंकि उसको तो अपना उतार करवाना है यानी अपनी श्रृंगार को पूछवाना है चूड़ियों को तुड़वाना है महावर को धोना है। सिंदूर को मांग से धोना है। पैरों के बिछिया उतारने हैं। यानी सुहाग चिन्ह मिटाने हैं। उन सब में उसकी मदद वही  विधवा महिला करेगी क्योंकि उसे विधवा होने का तो कोई डर नहीं है  क्योंकि वह पहले से ही विधवा है।,,,, 

सीमा के मायके से भाई के द्वारा बिल्कुल सफेद साड़ी लाई गई है। जिसे वह बूढी महिला पहनने में मदद कर रही है। वह बूढी महिला सफेद साड़ी पहना देती है श्रृंगार चूड़ियां तोड़ देती है।,,,, पैरों की बिछिया उतरवा देती है।और सीमा के ऊपर से एक सफेद चादर और उड़ा देती है

 सीमा को बताती है बहू इस तरह से उड़ाना कि तुम्हें कोई देख ना पाए तुम्हारी एक उंगली तक बाहर नहीं देखनी चाहिए,,,,,, और जैसे ही घर पहुंचो तो एक बोरे पर बैठ जाना जो वहां पहले से ही पढ़ा होगा तुम्हारे बैठने की व्यवस्था पहले से ही कर दी गई होगी बोरा कमरे के एक छुपे हुए कोने में पड़ा होगा जिस पर तुम बैठ जाना वहां तुम्हें कोई नहीं दिखेगा,,,,,

 अपने आप को चद्दर से पूरी तरह ढके हुए  सीमा घर आती हैजैसे हीबोरे पर बैठने वाली ही थी कि जेठानी की आवाज आई अम्मा इसे यहां क्यों बैठा दिया है। इसे अपने ही घर में बिठाना चाहिए था यह घर और अशुभ कर दिया यह घर तो मेरा है जबकि सच्चाई यह थी वह घर ससुर जी द्वारा बनवाया हुआ था संयुक्त था जिसमें सीमा का भी हिस्सा था,,,, सीमा की जेठानी को अपना अनिष्ट होने का डर लग रहा था,,,,,, सीमा उसे बोरे पर बैठ जाती है सफेद साड़ी पहन रखी है। इन सब बातों से उसका हृदय द्रवित हो जाता है। एक जवानी में पति का जाने का गम दूसरा इस तरह की बातें,,,,

 सीमा ने ऊपर बड़ा सा चद्दर ओढ़कर  रखा है अब उसको हटती है। और वह अपनी सफेद साड़ी को उतार कर दूसरी साड़ी को पहनती है अपनी उतरी हुई सफेद साड़ी को तय करके एक बड़ी सी पॉलिथीन में बिल्कुल बंद करके उसे बूढी महिला को दे देती है।

 बूढी महिला उस साड़ी को एक पुरुष को देती है। और ऐसी जगह फेकने या जमीन में दबाने के लिए कहती है  कि कोई उस साड़ी को देख ना पाए,,,, 

बच्चे यह सब देखकर घबरा जाते हैं। बेटी पूछती है। मां आपकी चूड़ी और बिंदी कहां चली गई,,,,,, क्योंकि बेटी ने तो अपनी मां को हमेशा चूड़ी और बिंदी के साथ ही देखा बच्ची की बात सुनकर उसकी दोनों आंखों से आंसू गिरने लगते हैं।

 उसे सब अपशगुनी मनहूस मानने लगे हैं जो अभी कुछ दिन पहले ही सभी के लिए शुभ थी और नौ बार के दिन तो इस तरह से दूरी बनाई होती है महिलाओं ने कि जैसे सीमा को अगर छूएगी तो सभी महिलाओं के पति की मौत निश्चित हो जाएगी,,,,

 जिन हाथों में चूड़ियां कुछ देर पहले सजी हुई थी अब वह हाथ बिल्कुल चूड़ी बिना सुने हो गए हैं।। 

सीमा को बचपन से ही चूड़ियों का बहुत शौक था आज उन चूड़ियों को तोड़ दिया गया है।,,,,, 3 महीने तक घर से बाहर निकालना मनाहै।,,,, कहीं किसी पर  सीमा विधवा की परछाई ना पड़ जाए,,,,,, अगर सीमा घर से बाहर निकलती है तो सबसे पहले महिला ही ही बातें बनती है अभी पति को मरे दिन कितने हुए हैं जो घर से बाहर निकलने लगी है।,,,, 

इसे अपने पति के मरने का दुख नहीं है। भला एक पति के लिए पत्नी से ज्यादा दुखी कोई हो सकता है क्या,,,,, आज से 3 महीने बाद गंगा स्नान दीपदान करने के बाद ही सीमा पूरी तरह से पवित्र होगी,,,,,, तब कहीं आने जाने के काबिल बनेगी,,,

सीमा बड़े जतन से अपने बच्चों का पालन पोषण कर रही है लेकिन बेटी के कन्यादान का हक उसे नहीं है क्योंकि ,,,?

वह किसी मांगलिक कार्य में शामिल हो सकती लेकिन किसी मांगलिक कार्य की शुरुआत यदि उससे होगी तो मांगलिक कार्य में अनिष्ट होने की संभावना न बन जाए,,,,, अगर सीमा हल्का-फुल्का मेकअप भी करती है तो महिलाओं की नजर में आता है क्या विधवा होने के बाद ही एक स्त्री अपना श्रृंगार नहीं कर सकती,,,,,

विवाह से पहले भी तो एक स्त्री हल्का-फुल्का सिंगर तो करती ही है।

 सृजन तो स्त्री का जन्म सिद्ध अधिकार होता है। यह सीमा का अपना खुद का निर्णय होना चाहिए कि उसे कैसे रहना है क्या पहनना है रंग-बिरंगा पहनना है या सफेद पहनना है। चूड़ी पहनी है हाथ खाली रखना है घड़ी बांधनी है। उसकी अपनी इच्छा  है। सीमा एक पढ़ी लिखी समझदार आत्मनिर्भर महिला है ।जो भली-भांति समझती है इस तरह के पाखंड महिलाओं की तकिया नुशी  बातें सिर्फ एक महिला को तोड़ने का काम करती है ।

सीमा समझ चुकी है समाज कभी भी एक विधवा महिला से सांत्वना नहीं रखता उसे सताने वालों में सबसे आगे महिलाएं ही होती हैं। जो अपनी खोखले रीत रिवाज के माध्यम से एक महिला पर क्रूर प्रहार करती हैं उसको तोड़ना चाहती हैं।,,,,, इन सब को नजरअंदाज करते हुए सीमा आगे बढ़ रही है।,,,,

 भारतीय महिला की दुनिया पति के आसपास ही घूमती है सीमा की दुनिया भी पति के आसपास ही घूमती थी भला अब उसे श्रृंगार में इतनी रुचि क्यों होगी फिर भी उसकी अपनी इच्छा है ।कैसे रहे,,,,,

सीमा अपनी आप बीती के माध्यम से समाज से उन महिलाओं से शिकायत करती है। इस तरह का व्यवहार उसके साथ कोई कैसे कर सकता है। उसके साथ क्या किसी भी महिला के साथ ऐसा व्यवहार नहीं होना चाहिए ,,,सीमा को शिकायत है ऐसी खोखली परंपराओं से ऐसी महिलाओं से जो संकीर्ण मानसिकता से बाहर नहीं आना चाहती आज भी ग्रामीण क्षेत्र या छोटे शहरों में विधवा महिलाओं के साथ इस प्रकार का व्यवहार होता ही है। सीमा की समाज से शिकायत है इस प्रकार की रीति रिवाज से पाखंड से शिकायत है। जो महिलाएं छोड़ नहीं पा रही हैं अंधविश्वास में जकड़ी हुई है भला एक विधवा महिला से दूसरी सधवा महिला का अनिष्ट कैसे हो सकता है।,,,,,?

मैंने इस कहानी के माध्यम से जो देखा वही लिखने का प्रयास किया है अगर आप छोटे शहर या गांव से जुड़े हुए हो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस प्रकार का रिवाज देखने को मिल जाएगा जो एक विधवा महिला के साथ उसके सिंगर को उतारने के लिए किया जाता है यदि आपके आसपास इस तरह का हो रहा हो तो आप आगे आए  अंधविश्वासों को खुद भी ना माने और दूसरों को भी अंधविश्वासी होने से बचाए इस प्रकार का रीति रिवाज में एक महिला ही ज्यादा विश्वास रखती है वह अपनी रूढ मानसिकता को तोड़ नहीं पा रही है इस तरह की रूड मानसिकता वाली महिलाएं अपने आसपास भी देखें तो जागरूक करने का प्रयास करें,,,,, एक महिला का दूसरी महिला के प्रति इस प्रकार का व्यवहार अशोभनीय है। पति के जाने के बाद एक स्त्री के साथ जो व्यवहार होता है परंपराओं के नाम पर जो दुख पहुंचाने वाला है उसका कदापि सहयोग न करें इस प्रकार की रीति रिवाज को मिटाने की भरपूर कोशिश करें,,, कोई भी रीत रिवाज  बिना दुख पहुंचाए भी निभाई जा सकती है। मुझे ऐसी रीति रिवाज से शिकायत है।

#शिकायत#

प्रतियोगिता हेतु कहानी

मंजू तिवारी गुड़गांव

स्वरचित मौलिक रचना 

सर्वाधिक अधिकार सुरक्षित

#शिकायत

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