हां.. मैं बदल गई हूं मां जी – प्रियंका मुदगिल : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : “हां, मैं बदल गई हूं माँजी!!आपने सही कहा और मेरे इस बदले हुए रूप की वजह भी तो आप ही हैं ना..” पाखी ने अपनी सास सुरेखा जी से कहा।

“वह तो मैं देख ही रही हूं …. आजकल जुबान बहुत चलने लगी है तुम्हारी…..हर बात का उल्टा जवाब देने लगी हो.. सुरेखाजी ने गुस्से से कहा

ये कहानी है  सुरेखा जी और उनकी बड़ी बहू जो कि पिछले पाँच साल से अपने पति राजीव के साथ बेंगलुरु में अपने ससुराल से दूर रहती थी क्योंकि राजीव की बेंगलुरु में एक नामी कंपनी में अच्छे पोस्ट पर नौकरी लग गई थी। इसलिए पाँच साल पहले वह, पाखी और तीन साल के बेटे सोनू को लेकर  वही शिफ्ट हो गया था। सुरेखा जी के छोटे बेटा -बहू उनके साथ ही रहते थे।

जब पाखी शादी करके आई तो सुरेखा जी को हर तरह से ही मान- सम्मान देती ,लेकिन वो हमेशा उसे नीचा दिखाने की कोशिश करतीं। पाखी के लाख प्रयास करने के बावजूद सुरेखा जी कभी भी उसके कार्यों की और व्यवहार की प्रशंसा नहीं करतीं।

शादी के बाद जब पाखी गर्भवती हुई, तो उसे लगा कि शायद अब उसकी सास के व्यवहार में कुछ परिवर्तन आए…..लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। बल्कि वो उसे उससे मानसिक तौर पर बहुत परेशान करने लगीं।

जैसे- तैसे पहले बेटे का जन्म हुआ। ये सब राजीव भी देखता लेकिन कुछ कहता तो घर में कलेश हो जाता इसलिए  वह चुप ही रहता।

फिर बेंगलुरु में गए पाखी को कुछ ही समय हुआ था कि एक दिन

सासू माँ ने फोन पर कहा,”बहु!!तुम्हारे साथ मोहल्ले में जितनी भी शादी हुई थी….उन सबके दो बच्चे हो गए हैं…लेकिन तुम तो एक ही बच्चा लेकर बैठी हुई हो….”यह सुनकर पाखी ने कोई जवाब नहीं दिया।

जब उसने राजीव से इस बारे में कहा….

तो राजीव :- “” देखो पाखी!! हम घर से बहुत दूर रहते हैं…..सबकुछ हमें ही मैनेज करना है……और तुम्हें क्या लगता है कि दूसरा बच्चा होगा तो उसे कौन सा संभालेगा…?किसी से सहायता की कोई उम्मीद मत रखना…….””

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“लेकिन राजीव देखो ना अब हमारा बेटा 4 साल का हो गया है और दो बच्चे तो होने ही चाहिए, ताकि भविष्य में गाने उनका सुख दुख बांटने के लिए कोई साथी तो हो””



“मानता हूं पाखी!!लेकिन अभी तुम इस बारे में कुछ भी मत सोचो…””

फिर बार-बार सुरेखा जी फोन करके पाखी को परेशान करती रहती।

एक दिन पाखी ने उनसे कहा, “माँजी!! राजीव बोल रहे हैं कि डिलीवरी व प्रेग्नेंसी के समय कोई भी सहायता के लिए यहाँ नहीं आएगा…”

तब सुरेखा जी ने मीठे शब्दों में कहा, “तुम एक बार खुशखबरी तो सुनाओ ….मैं सब छोड़कर  तुम्हारे पास आ जाऊंगी….”

 

लेकिन पाखी को  राजीव की बात एकदम सही लगी क्योंकि पहले बच्चे के समय पर वह सबको परख चुकी थी इसलिए उसने  सब बातों को इग्नोर करना शुरु कर दिया।  और निर्णय  लिया कि वो तभी दूसरे बच्चे के बारे में सोचेगी जब उसका बेटा खुद के छोटे मोटे काम खुद से करने लगेगा…।

जब सोनू छह साल का हुआ तो एक दिन पाखी ने अपनी सासू मां को अपने गर्भवती होने की सूचना दी और पूछा ,””माँजी!! आपने कहा था ना,जिस दिन मैं खुशखबरी सुनाऊँगी, उसी दिन आप आ जाएंगी…””

“हां हां बहू !! जरूर आऊंगी….कुछ दिन तुम रह लो तब आती हूं “”।

ऐसे ही महीने दर महीने निकलते रहे। कई बार उसकी हालत बहुत ज्यादा नाजुक हुई और उस समय राजीव को ही ऑफिस से छुट्टी लेकर उसकी देखभाल करनी पड़ती। वह भी अपनी मां से बार बार आने के लिए कहता लेकिन हर बार कोई ना कोई बहाना लेकर टालमटोल नहीं करती रहती।

एक बार राजीव को ऑफिस के काम से कुछ दिन के लिए बाहर जाना था तो उसने घर फोन करके कहा, “”माँ!!मुझे ऑफिस के टूर पर जाना है तो क्या आप यहां पर आ सकती हैं जिससे कि  पाखी और सोनू की देखभाल हो पाए…”

” हां बेटा मैं आ तो जाती…..लेकिन यहाँ से बंगलुरु थोड़ा दूर पड़ जाता है पास में होता तो आ ही जाती है फिर यहां पर भी  छोटी बहू और पोता है उनको देखने वाला भी तो कोई नहीं है ना…”

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इसपर राजीव को गुस्सा आया

“माँ, वहाँ पापा और छोटा भाई है ना……अगर मुझे जाना नहीं होता तो मैं आपको परेशान नहीं करता”””

 

अपनी मां से कोई जवाब ना पाकर राजीव ने गुस्से में फोन रख दिया।



पाखी ने भी राजीव को दिलासा दिलाया कि मैं खुद को और सोनू दोनों को संभाल लूंगी और यहां आसपास के लोगों की काफी अच्छे हैं कोई भी परेशानी होगी तो सब संभाल लेंगे। आप आराम से जाइए।

लेकिन मन ही मन सोचने लगी कि जब जरूरत है तो कोई भी साथ देने को तैयार नहीं है। लेकिन उसने सोच लिया कि अब वह किसी के सहारे नहीं रहेगी । उसके पापा की तबीयत खराब रहती थी वर्ना उसकी मां ही आ जाती।

खैर जैसे-तैसे नौ महीने निकले। डिलीवरी की डेट से एक दिन पहले ही उसके सास वहाँ पर आई। लेकिन पाखी और राजीव की  सब उम्मीदें टूट चुकी थी।  पाखी ने एक स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया। लेकिन सासूमाँ  बच्ची को हाथ भी नहीं लगाती और पुरा दिन टीवी देखती रहती।राजीव ने ऑफिस से छुट्टी लेकर सबकुछ संभाला। उसे भी अपनी मां पर बहुत गुस्सा आता लेकिन कुछ कहता तो उसका असर भी नहीं होता था।

बच्चे के बीस दिन होते ही सास- ससुर दोनों वापसी की तैयारी करने लगे।

सास:- “बहू! इतनी खुशी की बात है कि तुमने एक बेटी को जन्म दिया है और रिवाज के हिसाब से जो तुम्हारी ननंद और मेरा हक बनता है वह फटाफट से मंगा दो तो मैं जाने की टिकट करा लेती हूं”

यह सुनकर पाखी को बहुत गुस्सा आया

उसने कहा, “रिवाज के हिसाब से तो दादी और बुआ का कई चीजों का फर्ज भी बनता है …”

 

ये सुनकर सासू मां का  मुंह बन गया और भला बुरा कहने लगी।

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खैर, पाखी को लेनदेन से ज्यादा अपनी बच्ची की होने की ज्यादा खुशी थी इसलिए सब नेग दे दिया।

बेटी के छह महीने की होने के बाद, पाखी पहली बार उसे लेकर अपने  ससुराल गई।

वहाँ बाहर की कोई महिला आती तो उनके सामने सुरेखा जी कहती, “”यह तो मैं थी जो वहां पर चली गई …..मैंने वहां जाकर पाखी और पोती को संभाल लिया….वरना  कौन  उनकी देखभाल करता………””

कभी कहती कि मैंने तो अपनी पोती के होने पर उसे  सोने की चैन और दस जोड़ी कपड़े दिये…..””

पाखी को उनका नेचर पहले से ही पता था  लेकिन न जाने क्यों अपनी बेटी के लिए उससे कुछ भी झूठ बर्दाश्त नहीं हुआ। दूसरों के सामने उसने अपने ऊपर जैसे तैसे संयम रखा।

सबके जाते ही …

“क्यों इतना झूठ बोलती है माँजी!!मैंने देखा आपने कितना मेरा साथ दिया…..आपने मेरी बेटी को हाथ तक नहीं लगाया….उसकी जो भी रस्में होती हैं वह भी नहीं निभाई…..हां लेकिन नेग लेने के लिए आपने मुंह खोल कर सब बोल दिया…..क्या दादी  सिर्फ लेने के लिए ही होती है …  जब आपकी फर्ज निभाने की बारी आती है तो आप चुपचाप वहां से निकल लेते हैं….””



सुरेखा जी ने कहा, “बहू!!आज तक तुमने मुझसे ऊंची आवाज में बात नहीं की और आज किस तरह की फालतू बातें कर रही हो …..”

“आपने ही मुझे बोलने के लिए मजबूर किया है….तब आप मेरे पीछे पड़ी हुई थी कि बहू, दूसरा बच्चा कर लो जिस दिन तुम खुशखबरी सुनाओगी…..मैं तुम्हारे पास तभी आ जाऊंगी……पूरे 9 महीने मैंने जैसे-तैसे निकाले और तो और जब राजीव भी मजबूरीवश मेरे साथ नहीं थे…..तब भी आपने यह नहीं सोचा कि अगर मुझे  कुछ भी परेशानी होगी तो, अनजान शहर में मैं किससे कहूंगी……आपकी हर जरूरत में मैंने आपका साथ दिया लेकिन जब मुझे जरूरत थी…..तब आपने मेरा साथ क्यों नहीं दिया….”

 

“कम से कम आई तो थी ना वहां पर…तुम्हारी बेटी के होने पर.”सासू मां ने दो टूक जवाब दिया

“सही कहा आपने, आप वहां मेरे लिए नहीं बल्कि समाज को दिखाने के लिए आई थी क्योंकि यहां पर सब आपसे पूछते थे कि बहू को बच्चा होने वाला है तो तुम वहां क्यों नहीं जा रही हो..?जितनी आप सबके सामने अपनी तारीफ करती हो कि मैंने यह किया मैंने वह किया    …..क्या आपकी अंतरात्मा नहीं जानती आपने क्या किया और क्या नहीं…..”पाखी ने कहा

ये सब सुनकर सुरेखा जी हड़बड़ा कर बोली, “बहुत बदल गई हो तुम……बहू….”

“हां माँजी!!आपने बिल्कुल सही कहा मैं बदल गई हूं अपने लिए नहीं अपनी बेटी के लिए ….. मेरी बेटी ने इस दुनिया में आकर मुझे दिखावे के रिश्तो से रूबरू कराया है …..अब मैं भी वैसा ही निभा पाऊंगी, जैसा व्यवहार सब मेरे साथ रखेंगे”

और यह कहकर पाखी वापसी की तैयारी करने लगी।

प्रिय पाठकगण!! परिवार का मतलब यही होता है कि हर सुख दुख में एक दूसरे के साथ खड़े रहे लेकिन जहां लोग सिर्फ मतलब के लिए ही या लेने के लिए ही दूसरों के पास जाते हैं तो उन्हें आप क्या कहेंगे…?

क्यों कुछ लोग सिर्फ हक जताना जानते हैं?? जो लोग हक मांगते हैं क्या उन्हें फर्ज नहीं निभाना चाहिए ?आपकी इस बारे में क्या राय है??

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#स्वार्थ 

धन्यवाद

स्वरचित एवं मौलिक 

प्रियंका मुदगिल

 

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