हमें क्या लेना? – डॉ उर्मिला शर्मा 

घर में चहल-पहल भरा माहौल था। सबसे ज्यादा तो दक्ष और अंशिका खुश घर में चारो तरफ दौड़ते नजर आ रहे थे। नन्हीं अंशिका सात वर्षीय दक्ष के पीछे-पीछे ‘भैया’ कहकर घूमते फिर रही थी। अंशिका दक्ष की बुआ की चार वर्षीय बेटी थी। उसकी एकलौती प्यारी बुआ कल ही तो रक्षाबन्धन के अवसर पर इस लॉक डाउन में भी आई थी। साथ में उसके लिये ढेरों उसकी फरमाईशी चीजें लेकर। दक्ष भी अंशिका के लिए राखी के उपहार के रूप में उसके लिये ‘डॉल हाउस’ जिसे वह बार- बार फोन पर दुहराते रहती थी, दिया था। उसे पाकर वह बहुत खुश थी।

          किचेन में ननद विशाखा और भाभी शिल्पी विशेष व्यंजन बनाने में लगी थी। साथ में गपशप भी चल रहा था। विशाखा तो आज ही वापस जाने वाली थी किन्तु नवीन भैया ने अपनी दुलारी बहना को बड़े मनुहार से रोक लिया था यह कहकर की आज पिताजी का 80 वां जन्मदिन है, धूमधाम से मनाएंगे। दोनों एकलौते भाई- बहन थे। आपस में दोनों की खूब बनती थी। नवीन भैया इंजीनियर थे और अपने साथ ही काम करनेवाली शिल्पी से घनिष्ठता बढ़ी थी। वही शिल्पी आज भाभी के रूप में है।

      हॉल में मम्मी- पापा और पति निखिल पिताजी से वसीयत तैयार करने को लेकर बातें करने में व्यस्त थें। नवीन भैया केक लाने को कहकर बाहर निकले थे। दक्ष भी मामा के साथ जाने की जिद कर रहा था किंतु बारिश होने की वजह से उसे किसी तरह फुसलाया गया था। तभी डोरबेल बजी। श्रीमती तिवारी ने जाकर दरवाजा खोला तो कोई अजनबी था। उसने कहा कि की पास ही में किसी का एक्सीडेंट हुआ है। वह तो उधर से गुजर था तो नजदीकी घर में खबर कर दी। इतना कह वह चला गया। बाहर लगातार बारिश हो रही थी। दरवाजा बंद कर मिसेस तिवारी वापस आ गयी। मिस्टर तिवारी के पूछने पर कि कौन था, मिसेस तिवारी ने बताया कि कोई अजनबी था जिसने पास में किसी की दुर्घटनाग्रस्त होने की खबर दी थी। मिसेस तिवारी ने साथ ही यह भी कहा कि -“कहां जाईयेगा देखने इस कोरोना में और बाहर बारिश भी हो रही है। कहीं गिर- विर गए तो…?”

मिस्टर तिवारी उठते- उठते वापस बैठ गये। तभी दक्ष गुब्बारा फुट जाने से रोते हुए अंशिका को चुप कराते हुए अपने फूफाजी निखिल के पास ले आया। वह तुरंत ही बहल गयी और नाना के कहने अपनी तोतली आवाज़ में ‘पोएम’ सुनाने लगी।




             तभी डोरबेल बजी। निखिल उठकर गया। बाहर अब भी बारिश हो रही थी। दरवाजा खुलते ही बाहर खड़े व्यक्ति ने कहा -“भाई साहब मैं इधर गुजर रहा था कि नजदीक में खंभे के पास किसी बाइकर का एक्सीडेंट हुआ पड़ा है। मैंने उसकी बाइक का नम्बर मोबाइल एप्प में डालकर देखा तो यहीं का पता दिखा रहा। इसलिये आपको इन्फॉर्म कर रहा हूँ।” यह सुन निखिल आशंका से घबरा गया। घर में आवाज़ लगाने के लिए पीछे मुड़ा ही था कि पीछे ससुरजी खड़े थे। दोनों बाहर निकले। थोड़ी ही दूर पर सुनसान सड़क पर खम्भे के पास नवीन चित्त पड़ा हुआ था। सिर के आसपास ढेर सारा खून बारिश के पानी के साथ बह रहा था। यह देखते ही नवीन के पिता का कलेजा चाक हो हो गया। वो लड़खड़ाते हुए बेटे के देह पर गिर पड़े। तबतक घर के सभी लोग वहां आ पहुँचे। उनकी चीख पुकार सुन आसपास के लोग भी आ पहुँचे। उस राहगीर ने एम्बुलेंस को फोन कर दिया था। लगभग 15 मिनट बाद वह पहुँच गयी। सदर अस्पताल पहुँचे। बेसिक ट्रीटमेंट के बाद राजधानी जो 2 घण्टे की दूरी पर था, रेफर कर दिया गया।

वहाँ तक पहुंचने पर तुरंत इमरजेंसी में पहुंचाया गया। काफी प्रयास के बाद भी पल्स नहीं मिला। काफी खून बह निकला था। साथ ही लोकल अस्पताल में भी लापरवाही बरती गई थी। नवीन को बचाया न जा सका।

          अस्पताल परिसर में नवीन की मां और बहन की चीत्कार से वहाँ मौजूद लोगों भी आंखे नम हो गयी थीं। पलभर में उनके हँसी -खुशी भरे घर में दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। घर में गुब्बारों की सजावट व नन्हे- नन्हें बल्बों वाली लड़ियों की सजावट जो थोड़ी देर पहले तक कितनी मोहक लग रही थी, वही अब उनके दुखों को बढ़ाने का काम कर रही थीं। नवीन की मां एक गहरे अपराध बोध से ग्रस्त बार- बार रट हुए बेहोश हो जा रही थीं -“मेरे ही कारण मेरा बेटा आज नहीं रहा। मैंने ही तो उस अजनबी के कहने के बावजूद बाहर जाकर नहीं देखा। उसके 45 मिनट बाद दुबारा दूसरे अजनबी ने खबर की थी। हाय! पौन घण्टा मेरा बच्चे का खून बहता रहा। मैं ही हत्यारिन हूं।” बुरा हाल था उनका रो- रोकर। उधर नवीन के पिता खामोश बूत बने बैठे थे। विशाखा कभी मां तो कभी पिता को सम्भालती। फिर खुद ही फफक- फकककर रो पड़ती। नन्हीं विशाखा दौड़- दौड़कर जमीन पर नवीन के शव के पास पापा कहते हुए भागती थी। उसे पकड़कर रोकने पर भौंचक सी सबका चेहरा देखती। उसे समझ न आ रहा था कि हुआ क्या है। उधर नवीन की पत्नी शिल्पी यह कहकर लगातार रोये जा रही थी -“नवीन! उठो न आपने मेरा आजीवन साथ देने का वादा किया था, बीच मझधार में छोड़ क्यों चले गए।”




          नवीन के परिवार वालों के दुःख देखकर सभी हृदय विह्वल हो रहा था। किसी का दुःख कम न था। उस बूढ़े मां- बाप के आगे उनके इकलौते बेटे का जाना या शिल्पी का जो कल तक अपने किस्मत पर फूली न समाती थी जिसे प्रेम किया था उसे पति के रूप में पाकर या अबोध अंशिका जो आजीवन पिता के प्यार से वंचित रह गई या एकलौते भाई के न होने का दुःख भी विशाखा के लिए कम न था। लोग बारी- बारी से इनपर चर्चा कर ही रहे थे। पर इस दुर्घटना ने सबको एक सबक भी दिया था कि आज के समय मे लोग कैसे किसी के प्रति निस्संग बने बैठे रहते हैं। बस यही सोचते हैं कि हम सुरक्षित रहें दूसरों से कोई मतलब नहीं। इसी सोच के कारण कई दुर्घटनाओं में लोगों की जाने चली जाती हैं। यहाँ भी नवीन की जान बचाई जा सकती थी। यदि 45 मिनट पूर्व उसकी मां ने उस अजनबी की बातों पर ध्यान दिया होता। बाद में यह बात नवीन के दुर्घटना के कारण के रूप में पता चली कि कुछ बच्चे सड़क पर पटाखे जला रहे थे जिसकी वजह से एक तेज रप्तार मोटर सायकल फिसला और जाकर नवीन की बाइक को टक्कर मारी जिसके कारण नवीन का सिर पास के खम्भे से जा टकराया था। यहाँ भी उन पटाखे जलाने वाले बच्चे या टक्कर मारने वाला बाइकर अगर अपना दायित्य निभाते तो भी नवीन बच जाता।ओह ! बहुत दुःख होता लोगों की ऐसी सोच पर जो यह सोचते हैं कि हमें क्या लेना? आजकल तो इंसानियत को तक पर रखकर कुछ लोग घायल को अस्पताल पहुंचाने के बजाय उल्टे मोबाइल निकालकर वीडियो बनाने लगते हैं।

 

—डॉ उर्मिला शर्मा हजारीबाग, झारखंड

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