hindi stories with moral : तेरह वर्ष की उम्र में ही रघु को जो धक्का लगा था, वह जैसे ताउम्र के लिये हृदय में घर कर गया था। घाव उसके भरते ही नहीं थे क्योंकि उस घाव को देने वाला उसका पिता उसकी आंखों के सामने ही उस दूसरी औरत के साथ रहता था।
कितनी बार कहा उसने अपनी अम्मा से कि वह कहीं दूसरी जगह घर बनाकर रहें ताकि वह अपने पिता का मुंह भी कभी न देखे। लेकिन अम्मा की तो जैसे इस घर में आत्मा बसी है। वह कहीं जाने को तैयार नहीं।
अम्मा का वह बिना सिंगार सादा रूप उसे झिंझोड़ता रहता था।
जब अम्मा ने उसका विवाह करने का विचार किया तो उसने साफ दो टूक शब्दों में कह दिया कि विवाह वह तभी करेगा जब उसमें उसके पिता की कोई जगह नहीं होगी।
अम्मा ने कहा भी कि बेटा ऐसा नहीं हो सकता है कि पिता के रहते उनका अधिकार कोई दूसरा कैसे ले सकता है।
तब पहली और अंतिम बार उसने अम्मा की कोई बात काटी थी कि अम्मा, जो आपके लिये नहीं वह हमारे लिये नहीं। उन्हें जहाँ रहना था, वहीं उन्हें रहने दो।
उसकी जिद के चलते हुआ भी ऐसा ही। पिता की सारी रस्में ताऊजी ने की।
वह जानता था कि उसके पिता उससे और उसकी दोनों बहनों से बहुत प्रेम करते है। ऐसा करके वह उन्हें बहुत पीड़ा देगा।
वह उस पीड़ा को सूद समेत लौटाना चाहता था जो उसके पिता ने उन लोगों को दी थी।
सच में जो उसने सोचा था, हुआ भी वैसा ही।
बहुत तड़पे कमलकिशोर।
यह उस तड़प का प्रतिशोध था जो उसके पिता ने उसकी अम्मा, उसे और उसकी दोनों बहनों को दी थी।
समय से पहले ही रघु को परिस्थितियों ने समझदार बना दिया था। वह जानता था कि उसकी अम्मा इस घर से क्यों दूर नहीं जाना चाहतीं हैं।
धीरे-धीरे वह यह भी समझ गया था कि उसके पिता ने अपने सारे अधिकार क्यों छोड़ दिये थे।
लेकिन वह आज तक यह नहीं समझ पाया कि यदि उन दोनों में इतना ही प्रेम था तो परिस्थितियां इतनी क्यों बिगड़ी।
वह यह सोचकर ही कांप जाता है कि अभी मात्र उसके गौने को दो तीन महीने ही हुये हैं तब वह रुनझुन से इतना प्यार करने लगा है कि उसके दूर जाने की कल्पना भी उसे डरा देती है तो उसके पिता ने आखिर यह कदम क्योंकर उठा लिया था।
रघु जानता था कि इन सवालों के जवाब उसे कभी नहीं मिलने वाले हैं।
लेकिन उसका दृढ़ निश्चय था कि जिस दिन वह अपनी बहनों की जिम्मेदारियों को पूरा कर लेगा तब वह इस गांव में नहीं रहेगा।
कुछ कहानियां ऐसी भी होतीं है जिनके अंत सुखद भी नहीं होते और संपूर्ण भी नहीं लगते।
क्योंकि संपूर्ण तो कभी कोई हुआ नहीं।
यह भी एक ऐसी ही कहानी है। कमलकिशोर के आवेग में उठाये एक कदम ने जैसे सबके भाग्य में अंतहीन पीड़ा भर दी। न वह कभी सुखी रह पाये, न नयका, न उनके बच्चे।
यहाँ तक कि चंदा भी नहीं…
प्रेम की एक सलिल सरिता कब सूख गई किसी को पता भी नहीं चला। लेकिन पीड़ा के टीस की सरिता सदैव लहलहाती ही रही…
न उसे किसी का अहम भर सका, न समर्पण।
हाथ सबके खाली ही रह गये।
समाप्त…
हमारी नयका (भाग-7)
हमारी नयका : एक अव्यक्त प्रेम कहानी(भाग-7) – साधना मिश्रा समिश्रा : hindi stories with moral
साधना मिश्रा समिश्रा
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