मोहल्ले की सारी लड़कियों के हाथ पीले होकर गोद में बच्चा लाने की तैयारी होने लगी थी और हमारे पापा को हम अभी भी बच्ची लग रहे थे। ना,ना… ठहरिए, दिमाग के घोड़े ना दौड़ाइए। ऐसा नहीं है कि हम उम्र में बड़े हो गए थे, बल्कि बाकियों की शादियाँ जल्दी हो गई थी। वो तो दादी की ज़िद थी कि उनको हमारी शादी देखकर ही कान्हाजी के घर जाना है वरना तो जाने पापा के लिए हम कब तक छोटी सी बच्ची ही बनी रहते।
तो शादी के लिए चाहिए एक अदद ‘अच्छा लड़का’। अच्छे लड़कों की कमी वैसे होती नहीं है बस मार्केट में ऐसी हवा बनाई जाती है ताकि अच्छे लड़कों की आड़ में अच्छा दहेज भी मिल सके।
पापा को हमारे हमेशा से ही बड़ा प्राउड सा रहा है अच्छे रिश्ते करवाने का। उनके हिसाब से उन्होंने आज तक बड़े ही ख़ूबसूरत रिश्ते करवाए हैं तो अब, जब उनकी ख़ुद की बेटी की बारी आई है, रिश्ते की बात चलाने की तो लड़कों की बाक़ायदा पूरी लिस्ट तैयार की गई। इधर-उधर बताया गया कि हम शादी के लायक हो गए हैं तो कोई भी अच्छा इंजीनियर,डॉक्टर,एमबीए, सी ए लड़का आपकी नज़र में हो तो हमारे पापा से कांटैक्ट करें। वैसे भगवान ने हमारी शक्ल-सूरत में थोडी कंजूसी दिखाई थी और ऊपर से हमें सजने सँवरने का क़तई शौक़ भी नहीं था पर माँ सरस्वती की हम पर हमेशा कृपा रही है तो इसी का गुमान भी था हमारे पापा को। पापा थे भी अपने इरादे के बड़े पक्के। साफ़ बोला हुआ था कि पहले वो खुद लड़के और उसके घरवालों से मिलेंगे और अगर सब ठीक लगा तो ही हमसे मिलने न्यौता देंगे, ऐसे ही किसी से अपनी बिटिया को नहीं मिलवाएँगे।
आप सोच रहे होंगे कि वाह! कितने शानदार आदमी हैं । ये बात सच है कि शानदार तो हैं पर पापा दामाद नहीं, कोहिनूर ढूँढने में लगे थे। अब कोहिनूर के लिए कॉंच के टुकड़ों को जिस तबीयत से मना किए जा रहे थे कि मन ही मन हम से सोचने लगे कि हमारी शादी होगी भी या नहीं।
कुछ कॉंच के टुकड़ों के नमूने इस प्रकार हैं…..
एक कॉलेज लेक्चरर को देखने गए। मम्मी को सब पसंद आया पर पापा का नज़रिया पढ़िए ज़रा… लड़के के कानों में अभी से ही काले-काले बाल हैं, उसका पैर का पँजा सीधा पड़ता है जो बिल्कुल अच्छा नहीं होता, पैंट की क्रीज़ देखी थी उसकी?
ख़ारिज
इंजीनियर है लड़का और उसको पता भी था कि हम आ रहे हैं मिलने पर फिर भी क्या मजाल कि शेव भी करी हो बंदे ने। ऊपर से ऐसा दब्बू क़िस्म का लग रहा था। मेरी बेटी को भी वैसा ही बना देता।
ख़ारिज
लड़का क्या ख़ाक देखता, घर में सिर्फ़ मक्खियाँ ही दिख रहीं थी…..उफ़्फ़!! मेरी बेटी तो दिन भर मक्खियाँ ही मारेगी यहॉं।
ख़ारिज
सी ए है तो क्या करें! कम से कम तोरण मारता हुआ तो सुंदर लगे। ये तो ऐसा लग रहा है मानो जिंदगी में कभी हँसा ही नहीं।
ख़ारिज
चेहरे से ही लग रहा था कि ड्रिंक करता है। मैं तो एकबार को गोत्र फिर भी नज़रअंदाज़ कर दूँ पर पीने वाले को कभी ना दूँगा अपनी बेटी।
ख़ारिज
इसका तो घर शुरु हुआ और खत्म हो गया। मेरी लड़की तो दो कमरों में घुट ही जाएगी।
ख़ारिज
लड़के से कुछ पूछो तो भी मॉं जवाब दे और पिता से पूछो तो भी वो ही जवाब दे। ये ही कंडीशन मेरी बेटी की हो जानी है।
ख़ारिज
वकील लड़का मम्मी को पसंद नहीं,
ख़ारिज
हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करने वाला बड़े भैया को पसंद नहीं।
ख़ारिज
भाभी को आसपास के शहरों वाले लड़के पसंद नहीं,
ख़ारिज
दादी को कम सोना डालने वाला परिवार पसंद नहीं…!!!!
ख़ारिज, ख़ारिज, ख़ारिज….
चाचा,ताऊ, बुआ, मामा, मौसी सबके द्वारा लाए गए अपने-अपने रिश्ते और अपने-अपने लॉजिक…..पर हमारे पापा ने सबको ना कह दिया।
मम्मी अलग भुनभुनाए रहती कि राजकुमारी आपकी बड़ी सरूप है जो मुँह चढ़ा-चढ़ाकर मना किए जा रहे हो। कौन ब्याहेगा लड़की को? इतना घमंड ठीक ना है लड़की के बाप के लिए। कहीं तो जी टिकाना पड़ेगा ना। हम ना आए क्या आपके घर? हम किसी की बेटी ना थे? सब किया ना एडजस्टमेंट। थोड़ा सा ये भी कर लेगी तो क्या हुआ। किसी लड़के वाले को आज तक घर न बुलाया, किसी को चाय ना पिलाई, खुद ही सबके यहॉं हो आते हो और फिर मना कर देते हो। हुँह…!!!
“ तुम चुप रहो, मैं देख रहा हूँ ना सब। मेरी आँखों में जब तक कुछ भी खटकेगा, ना ब्याहूँगा अपनी बेटी को। मैं तो हर तरीक़े से परिपूर्ण खोजूँगा, बाद में इसकी क़िस्मत और तुमको चाहे ठीक लगे या ना लगे लेकिन घर पर तो तब तक बुलाऊँगा किसी को भी, जब तक मुझे ना पसंद आएगा। ऐसे ही अपनी बेटी की नुमाइश न लगाऊँगा। समझ लो तुम।” तो ऐसे हैं हमारे पापा।
तो भई! बसंत फिर से आया। नाइंटीज के गाने हमारे सिर पर चढ़कर तबला बजाने लगे। बड़ा मन करता था कि कोई तो वो ऐसा हो, जिस पर हम भी दिल हारें।
उन्हीं दिनों हमारे पापा के पास उड़ते-उड़ते ख़बर आई कि फ़लाने शहर में फ़लाने घर में फ़लाना अच्छा लड़का है, तो पापा-मम्मी वहॉं से मिल-मिलाकर वापिस पहुँचे। हम सबकी नज़रें पापा पर ठहरी हुई थी। लड़का तो नहीं मिला पर उसके मम्मी-पापा से मिलकर हमारे पापा को ज़रूर सुकून सा मिला। ये पहली बार था जब वो थोड़े निश्चिंत से थे किसी रिश्ते के लिए।
पर पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त!!
तो ये जो लड़का था ना, बार-बार ओवरबिजी होने की बात कहकर मिलना टाले जा रहा था और कोई होता तो पापा बैंड सी बजा देते पर गण दबाते हैं भई। खींच-तान करके लड़के से उसके ऑफिस में मिलने का टाइम फ़िक्स हुआ। लड़का सोच रहा होगा कि उसने ऑफ़िस में बुलाकर अपना सिक्का चलाया है पर नहीं ट्विस्ट तो ये था कि हमारे पापा को तो मिलना ही ऑफ़िस में था, ऑफ़िस जो देखना था। वहॉं स्टाफ से, कुलीग्स से मिलकर पापा बड़े ख़ुश हुए। फिर पूछा कि बेटा, घर ले रखा है तो वहॉं चलते हैं थोड़ा।
लड़का तो होटल में रह रहा था क्योंकि नए शहर में ट्रांसफ़र हुए ज़्यादा दिन नहीं बीते थे। लेकर पहुँचा होटल रूम में। पापा फ़ोन का बहाना लेकर रूम से बाहर आए और सीधे पहुँचे रिसेप्शन पर और लड़के की निकाल ली पूरी कुंडली। सीधा, सज्जन लड़का यानि फ़ाइनली पापा को अपना कोहिनूर मिल चुका था और उस कोहिनूर को पहला निमंत्रण दिया हमारे पापा ने अपनी लाड़ली यानि हमसे मिलने के लिए।
एक अकेले हमारे पापा ही ऐसे नहीं हैं, दुनिया के सारे पापा ऐसे ही होते हैं। अपनी राजकुमारी के लिए दुनिया का बेस्ट लड़का ही चुनते हैं। उनके लिए बेस्ट ही चाहते हैं।
हमारे पापा के कोहिनूर से हमारा मिलन कैसा था, वो किसी और दिन बताएँगे।