छोटे भाई राजा का फोन देखकर आश्चर्य हुआ.. बहुत दिनों बाद.
कॉल बैक किया.. उधर से आवाज आई दीदी सप्तमी तिथि को पापा का श्राद्ध का दिन पड़ा है. ओह पापा को दुनिया से गए एक साल हो गया.. उधर राजा बोल रहा था पहला पितृपक्ष है इस बार इसलिए पंडित जी ने जैसे जैसे कहा है वैसे कर रहा हूं… तुम से ज्यादा लगाव था पापा को इसलिए तुम्हे बताना उचित समझा.. आवाज में थोड़ी व्यंग थोड़ी कड़वाहट का पुट… जैसे मेरे जख्मों पर नमक छिड़कने के लिए फोन किया हो!!ओह..
शाम को रजत के ऑफिस से आने पर अनमने ढंग से बता दिया राजा का फोन आया था…
रजत बोले तुम्हे अवश्य जाना चाहिए रोमा.. मैं टिकट करा देता हूं तुम जाने की तैयारी करो..
पापा कितने सुलझे विचारों के शांत प्रकृति के इंसान थे.. उनके स्टूडेंट्स उनका कितना इज्जत करते थे..स्टूडेंट्स को शिक्षा देने वाले पापा अपने बेटों को सही गलत की शिक्षा देने में विफल रहे थे ..मां दस साल पहले हीं कैंसर से जंग हार दुनिया से चली गई थी… बड़े भैया और मेरे बच्चों को खेलाने का सुख तो मां ले चुकी थी पर राजा की शादी के एक साल हीं हुआ था.. मां को आभास हो गया था कि वो बचेंगी नही इसलिए हम तीनो बच्चों को अपने पास बिठा कर पापा की देखभाल और खुश रखने का वादा लिया था.. मां ने अपने सारे गहने दोनो बेटों को दे दिया… अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने की ये शुरुआत मां ने कर दी..
मां के पास एक सोने का चोकर था मां जब भी पहनती मैं बचपन से हीं कहती मुझे दे दो मैं पहनूंगी.. मां हंस के गाल पर प्यार से चपत लगा देती…
मां ने वो चोकर मुझे शादी में देना चाहा मैने इनकार कर दिया लेने से…
मां के काम क्रिया के बाद जब मैं ससुराल जाने लगी पापा रुंधे गले से अकेले बुलाकर मुझे वो चोकर दिया और कहा तुम्हारी मां का प्यार आशीर्वाद है इसमें.. बेटा इनकार मत करना… और मैं पापा से लिपट कर डहक पड़ी..
समय अपनी गति से आगे बढ़ रहा था.. मैं भी अपनी घर गृहस्थी में उलझी हुई थी.. भरा पूरा परिवार सास ससुर ननद देवर देवरानी दो बच्चे मेरे दो देवर के.. चाह के भी पापा से मिलने नही जा पाती.. पापा कुछ दिनों से भैया के पास लखनऊ में थे.. सुन कर अच्छा लगा… विश्वास था दोनो भाई पापा को फूल की तरह रखेंगे.. प्रिंसिपल के पोस्ट से रिटायर्ड थे पेंशन भी अच्छी खासी थी..
एक साल होने वाला है पापा से मिले… पापा लखनऊ से आ गए हैं..मैं रजत से मायके जाने की इच्छा जताई..
पता नही क्यों मायके की दहलीज पर पैर रखते हीं कुछ अजीब सा लगा..
मैं अचानक से गई थी.. राजा घर से हीं ऑनलाइन काम कर रहा था मुझे देखकर खुश नही हुआ अनमने ढंग से कहा बताया नही आ रही हो. पत्नी भी शिकायती लहजे में बोली एक फोन तो कर लेती..
अरे पापा अब उस कमरे में नही रहते किचन के पीछे वाले कमरे में चले गए हैं इधर शोरगुल बहुत होता था..
और पापा का कमरा उफ्फ .. लखनऊ से आए एक महीना हीं तो हुआ है.. जाले लटके हुए.. मच्छरदानी में कितने सारे छेद गंदी चिकट चादर हाथ में रामायण लिए पापा सो रहे थे… मैं अपनी रुलाई रोके दरवाजे पर खड़ी थी..
बढ़ी हुई दाढ़ी उम्र को और ज्यादा बढ़ा रही थी.
कितने अच्छे से पापा रहते थे.. ओह आज.. मैं दौड़ के पापा से लिपट गई.. पापा उठ गए.. अरे रोमा बेटा तुम कब आई…
एक सप्ताह रही… नाश्ता खाना कुछ भी तो पापा को ठीक से नही मिलता था.. ना फल ना हीं दूध… पूछने पर राजा बोला डाइटिशियन से बनवाया है इनका डाइट चार्ट.. ये कौन डाइटिशियन है जो बिना किसी बीमारी के फल दूध अच्छा खाना सब रोक दी है..
मैने कहा पापा का कमरा भी उसी ने बदलवाया है? अपने लिए पापा ने कितने शौक से ये कमरा बनवाया था.. पेंटिंग किताबों के लिए सेल्फ कितना कुछ ओह..
मैने कहा मैं बनाऊंगी पापा का खाना राजा की पत्नी किचन के दरवाजे पर खड़ी हो गई और कहा इतना मोह है पापा से तो ले जाओ अपने घर… अच्छा खाना खा कर हाजमा खराब हुआ तो गुह मूत साफ करने आप आएंगी..राजा बोला मां ने अपना चोकर छुपा के हमभाइयों से तुम्हे दिया है कुछ जिम्मेवारी तुम भी उठाओ.. मैं अवाक रह गई.. आज मेरे अपने हीं घर में इतना #हक #नही रहा की अपने पापा को उनके पसंद का कुछ बना के खिला सकूं.., क्यों बेटियां इतनी पराई हो जाती है… मां के चोकर के लिए इनके मन में इतनी कड़वाहट है…
और शाम की ट्रेन से पापा के लाख इनकार के बाद भी उनको लेकर ससुराल आ गई जाते जाते पापा के पेंशन का जिक्र भी कर दिया…
एक सप्ताह तो सब ठीक रहा मां बाबूजी पापा से बात करते साथ खाते नाश्ता करते ठहाके लगाते.. जैसे हीं उन्हे पता चला अनिश्चित काल के लिए पापा को मै लाई हूं उनका व्यवहार बदलने लगा…
एक दिन बाबूजी पापा से बोले कन्यादान के बाद बेटी के यहां का अन्न का एक दाना ग्रहण करना भी पाप है… मुक्ति तो बेटे के हाथों हीं मिलती है चाहे वो जैसे भी हो.. उफ्फ मेरा इतना भी #हक #ससुराल में नहीं है की अपने पिता को… आखिर हम बेटियों का #हक #आखिर कहां होता है… सास ससुर देवर ननद की जिम्मेदारी शादी के बाद से हीं बखूबी निभा रही हूं पर अपने जनक के लिए इतना करने का भी#हक #मुझे नही है… क्या ससुराल क्या मायका ओह…
Veena singh
पापा के लिए ये इशारा काफी था..
कितनी बेबस थी मैं रजत भी खुल के कुछ नही बोल पा रहे थे एक तरफ मां बाप थे एक तरफ ससुर…
पापा ने मुझे बताया अब मेरा एटीएम राजा के पास रहता है.. दोनो भाई पैसा बांट लेते हैं.. जिसके पास मैं रहता हूं वो कुछ बढ़ा कर रखता है पैसा… ओह 😥 और पापा ने एटीएम कार्ड देकर आर्थिक रूप से बेटों पर निर्भर हो अपने हीं पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली थी..
और ऐसे हीं दोनो बेटों के बीच पेंडुलम की तरह झूलते हुए पापा दिन गुजारते रहे… और मैं अपनी मजबूरियां से बेबस लाचार…
और एक लाख से ऊपर पेंशन पाने वाले पापा अंत समय में एक महीने सरकारी अस्पताल में सेप्टिक से जूझते रहे.. मुझे बड़ी देर से पता चला. वाराणसी ले जाकर मैंने और रजत ने अच्छे जगह एडमिट किया पर जहर पूरे शरीर में फैल गया था…
पापा ने बहुत आशीर्वाद दिया और वचन लिया कि मां का दिया हुआ चोकर आशीर्वाद समझ कर अपने पास रखोगी वापस नहीं करोगी गुस्से में…
कितनी बेबस थी मैं.. पापा का कष्ट याद कर कलेजा छलनी हो गया था.. आत्मा रो रही थी…
बेमन से फिर मैं उसी दहलीज पर खड़ी हूं जो कभी मेरा मायके हुआ करता था..
घर भरा हुआ है.. दुआर पर हलवाई बैठे हुए हैं..
तरह तरह के पकवानों की खुशबू वातावरण में बिखरी हुई है..
पापा की मुस्कुराती हुई बड़ी सी तस्वीर टेबल पर सजी हुई है..
दोनो भाई धोती पहने पंडितजी के साथ श्राद्ध कर्म और तर्पण की विधि कर रहे हैं कुश काले तिल जौ …. और दान की सामग्री.. आगंतुक दोनो भाइयों के खुले दिल और पापा के प्रति अथाह प्रेम और श्रद्धा की दुहाई दे रहे हैं… और मेरी अंतरात्मा चित्कार कर उठी है… जैसे मेरे जख्मों पर नमक छिड़क दिया हो..पापा खाने खाने को तरस गए थे…
दोनो भाई पत्तल पर सारे पकवानों के साथ मलाईदार दही चीनी लेकर पापा को देने जा रहे हैं जो कौवे उन तक पहुंचा देंगे… यही पाप शायद कौवों की संख्या को कम कर रहा है..
दोनो बहुएं साड़ी पहन के आज बहु होने का फर्ज निभा रही है..
हाई लाइट किए बाल रंगे पुते चेहरे और एक पल में पापा को याद कर लोगों के सामने रोने की एक्टिंग और पल भर में ठहाके.. उफ वितृष्णा से भर गई मैं… और मेरे जख्म पुनः हरे हो गए..
भैया ने कहा शाम को भजन मंडली को भी बुलवाया है..
पापा का पहला पितृ पक्ष में होने वाले श्राद्ध में हम दोनो भाई कोई कमी नही छोड़ेंगे…
पंडितजी के बाद गणमान्य लोगों ने सुस्वादु भोजन का आनंद उठाया खूब प्रशंसा हुई..
Veena singh
मुझे याद आ रहा था पापा पूरे पितृ पक्ष पानी देते दाढ़ी हजामत बंद लहसुन प्याज यहां तक की कढ़ाही चढ़ना भी बंद हो जाता..
जिस दिन तिथि होती थी उस दिन बाल मुड़वाते.. पंडित जी विधि करवाते.. मां दादाजी के पसंद का खाना बनाती.…कितने सात्विक और सादगी से सब संपन्न होता…
काश ये सच सबको समझ आ जाए जीते जी जितना हो सके माता पिता या सास ससुर या फिर जो भी बड़े बुजुर्ग हो उन्हें मन कर्म और वचन से खुश रखने का प्रयास हीं असली मोक्ष की ओर ले जाता है.…बेटी बहु को भी मायके और ससुराल में ये #हक #जरूर मिले की अपने माता पिता की सेवा देखभाल जरूरत पड़ने पर कर सके… सास ससुर और पति को भी इस अच्छे काम में बहु बेटी का साथ दें… तभी समाज में बेटा बेटी में अंतर करने की खाई को पाटा जा सकता है…
❤️❤️✍️🙏🙏🙏🙏🙏
Veena singh..
#हक
Heart touching and realistic story very nice
Rubbish!