हक – कुमुद मोहन   : Moral Stories in Hindi

“मम्मा मम्मा कहां हो?”चिल्लाती हुई पीहू जल्दी जल्दी घर में घुसी!

किचन में से गीले हाथ पोंछती राधा ने बताया “दीदी तो नानी के फ्लैट पर गई हैं नाना ने बुलाया था!”

” आप भी जानती हैं ना मम्मा तो मेरे हस्पताल से लौटने तक घर से कहीं हिलती भी नहीं चाहे कितना भी जरूरी काम हो,आज ऐसा कौन सा अर्जेंट काम आ गया?”पीहू झुंझलाकर बोली!

“कोई काम है क्या बेबी,आप जूस पी लो दीदी जल्दी में निकल गई थी,जाते जाते मुझे हिदायत दे गई थी कि आपको जूस जरूर दे दूं !पी लो वरना मेरी तो शामत आ जाऐगी!

“नहीं राधा मौसी!मुझे मम्मा से बहुत जरूरी काम है बाद में आकर पी लूंगी,अभी नाना के घर ही पकड़ती हूं उनको!”कहती हुई पीहू बुलेट ट्रेन की तरह भागती नाना के फ्लैट जा पहुंची!

नाना के बेडरूम के दरवाजे पहुंचते ही अंदर से आती आवाजों में पीहू अपना नाम सुनकर ठिठक गई,अंदर से 

 नीरा अपने मां-बाप से कह रही थी”कैसी बातें कह रहे हैं आप लोग?कुछ सोचा भी है आप लोगों ने कि पीहू को पता चलेगा कि मैं नहीं उसकी असली मां नैना है तो उसपर क्या बीतेगी,वह मुझसे नफरत करेगी कि इतनी बड़ी बात मैने उससे इतने सालों तक छुपाकर रखी,नहीं कभी नहीं!

“पर बेटा मुझसे नैना की हालत देखी नहीं जा रही,कैंसर की आख़री स्टेज है,कभी कुछ भी हो सकता है,नैना रो रो कर हाथ जोड़कर मुझसे कह रही थी सिर्फ एक बार पीहू को गले लगाना चाहती है उसके मुंह से ‘मां’ शब्द सुनना चाहती है जिसे सुनने के लिए वह सारी उम्र तरसती रही,अपने दिल में पीड़ा लेकर घुटती रही ,तड़पती रही!

मरने से पहले मैं उसकी इच्छा पूरी करूंगा यह वायदा आज नैना से कर आया हूं”हाथ जोड़कर आंखों में आंसू भरकर महेश जी ने नीरा को कहा!

“पर पापा आप एक मरने वाली की इच्छा पूरी करने के लिए अपनी बेटी को जीते जी कैसे मार सकते हो!”रूंधे गले से नीरा बोली!

“बेटा नैना के पिता ठाकुर रामपाल के मुझ पर बहुत अहसान हैं जब जब मुझे जरूरत हुई वही संकट मोचन बन कर खड़े हो गए “महेश जी रो रोकर कह रहे थे!

“पर पापा आपने भी तो उनकी बिन ब्याही बेटी को कलंकित होने से बचाकर उनपर बहुत बड़ा उपकार किया है!नैना ने तो उस लफंगे लुच्चे शिबू के साथ मुँह काला कर उनकी इज्ज़त की धज्जियाँ उडाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी,आप क्यूं भूल जाते हैं आज आपकी वजह से उनका सर ऊंचा है,वर्ना वे लोग तो “लोग क्या कहेंगे?”

सोचकर रात के अंधेरे में मुँह छुपाकर बेचारी पीहू को रातों-रात किसी कूड़े के ढेर या अनाथाश्रम के झूले में डाल कर उससे पीछा छुड़ा लेते!वो तो भगवान ने मेरे किसी अच्छे पुण्य का फल पीहू के रूप में मुझे दे दिया,पापा आप जानते हैं मैने मानव से अलग होने के बाद कैसे अकेले पीहू की परवरिश की है,उसके बिना मैं मर जाऊंगी,मैं आपसे कभी कुछ नहीं मांगूंगी बस! मेरी पीहू को मुझसे अलग मत करिये”रो रोकर नीरा का बुरा हाल था!

उन लोगों का वार्तालाप सुनकर पीहू की टांगे आश्चर्य और दुख के मारे कांपने लगी!उसे नाना और मम्मा की बातों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था,वह सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि नीरा उसकी मां नहीं ,वह इतने बरसों से देख रही थी कैसे नीरा के रात दिन ,हर लमहा, हर पल बस उसी के इर्द-गिर्द घूमते बीतते थे पीहू को जरा सा जुकाम भी हो जाता तो नीरा सबकुछ छोड़कर उसे गोद में लेकर बैठ जाती,और नाना नानी वो तो एक पल को भी उदास नहीं होने देते,कितने भी थके बीमार हों पर पीहू के मुँह से निकला एक भी शब्द उनके लिए ब्रह्म वाक्य बन जाता!ये सब झूठ कैसे हो सकता है

पीहू पशोपेश में थी!उसका बदन थर थर कांप रहा था!उसकी जोर से चीख निकली और वह बेहोश होकर गिर पड़ी। पीहू को सामने देख और यह जानकर कि पीहू ने सबकुछ सुन लिया सब हक्के बक्के रह गए ।जल्दी से उसे हस्पताल ले गए। 

आगे बढ़ने से पहले

जानिये पीहू की कहानी

नीरा अपने मां-बाप की इकलौती औलाद थी! 

नीरा और उसके पति मानव के ब्याह के कई साल बाद भी संतान नहीं हुई तो उन्होंने एक बच्चे को गोद लेने का मन बनाया था!

मानव के मां-बाप किसी बाहर वाले का बच्चा गोद लेने को किसी हालत राजी नहीं थे! नीरा किसी अनजान व्यक्ति का बच्चा चाहती थी जिससे बच्चे को कभी पता ही न चले कि वे उसके असली मां-बाप नहीं हैं!

बहुत समझाने के बाद मानव के मां-बाप इस शर्त पर राजी हुए कि वे लड़की नहीं लड़का गोद लें!

उनका सोचना था कि लड़की तो ब्याह कर अपने घर चली जाऐगी,उसके ब्याह पर जो खर्च होगा बेकार जाऐगा!लड़का होगा तो उसपर किया गया खर्च घर का घर में ही रहेगा!उसकी बहू को भी जो जेवर वगैरह दिया जाऐगा घर में ही रहेगा जबकि लड़की सब समेट कर दूसरे का घर भरेगी!

नीरा के पिता महेश जी नौकरी के सिलसिले में मुम्बई आ गए थे पर उनका पुश्तैनी घर गांव में था!उनके पड़ोसी ठाकुर रामपाल से उनके घनिष्ठ संबंध थे!दोनो पडोसियों की दोस्ती पूरे गाँव में मशहूर थी!एक दूसरे के लिऐ वे कुछ भी करने को तैयार थे!

ठाकुर रामपाल की बेटी नैना थी!नैना गाँव के स्कूल में पढ़ाई कर रही थी पर उसका मन पढ़ाई लिखाई में कम इधर उधर गप्पें मारने में ज्यादा लगता!

गाँव के मुंशी जी के बेटे शीबू के साथ नैन मटक्का करते करते नैना और शीबू एक दूसरे के प्रेम प्यार में पड़कर कब संस्कारों की सीमा लांघ बैठे पता ही नहीं चला!

बात जबतक नैना के मां-बाप को पता चली पानी सर के ऊपर सरक चुका था!नैना गर्भवती थी !अबॉर्शन कराने पर उसकी जान को खतरा था!

खानदान की इज्जत और समाज की जिल्लत से बचने के लिए परेशानी की घड़ी में रामपाल जी को महेश जी की याद आई! 

महेश जी ने दोस्ती का मान रखते हुए फौरन नैना और रामपाल जी के लिए रहने का बंदोबस्त मुम्बई में कर दिया!पैसे की ठाकुर को कोई कमी नहीं थी!पैसे के बल पर उन्होंने शिबू को अगवा करा कर मोटी रकम दे उसे कहीं दूर भिजवा दिया ताकि वह नैना की तरफ भूले से भी रूख न कर सके!

कुछ दिन बाद नैना को बेटी हुई! ठाकुर रामपाल हस्पताल से ही नर्सों डाक्टर से साठगांठ करके नवजात बच्ची(पीहू)को कहीं फिंकवा देना चाहते थे,बल्कि वे उसे जिंदा ही नहीं रहने देना चाहते थे ताकि उनकी बेटी का कलंक दुनिया में आने से पहले या आते ही मिट जाए। 

नीरा के बच्चे न होने की वजह से महेश जी और शीला परेशान तो थे ही एकाएक उनके दिमाग मे ख्याल आया नीरा और मानव एक बच्चा गोद लेना ही चाह रहे हैं क्यों न नैना की बेटी ही ले लें!जान पहचान की बच्ची है उसका भविष्य भी सुधर जाऐगा!गाँव में नैना बदनामी से भी बच जाऐगी !किसी को पता भी नहीं चलेगा।

 महेश जी ने अपने परिवार से सलाह लेकर रामपाल जी को मनाकर मुम्बई में ही नीरा की गोद में नैना की बच्ची(पीहू) डाल दी!

नीरा और मानव में शुरू से ही आपसी मतभेद के कारण उनका वैवाहिक जीवन कुछ ठीक नहीं था!सोचा था शायद बच्चे के आने पर कुछ ठीक हो जाऐ!पर रोज-रोज के झंझट झगड़ों से तंग आकर नीरा ने महेश जी से कहकर तलाक ले लिया!

महेश जी ने एक ही सोसाइटी में एक फ्लैट अपने और एक नीरा के लिए ले लिया।नीरा एक स्कूल में टीचर हो गई! 

नीरा ने बेटी का नाम पीहू रखा!नीरा की दुनिया तो पीहू से शुरू होकर पीहू पर ही खत्म होती थी!

नीरा के साथ-साथ पीहू नाना नानी की भी बहुत दुलारी थी!नाना की तो जैसे जान थी पीहू!कोई फरमाइश पीहू के मुँह से निकले और नाना उसे पूरा न करें ऐसा तो हो ही नहीं सकता था!

कभी कभी नीरा महेश जी को टोकती भी कि वे पीहू की गलत सलत डिमांड को पूरा करके उसे बिगाड़ देगे!पर महेश जी कब सुनने वाले थे,हंस कर टाल जाते!

दो एक साल बाद महेश जी नीरा और पीहू को लेकर गाँव भी जाते!नैना पीहू को देखकर बहुत सुकून महसूस करती और सोचती कि शायद वह भी इतना प्यार और दुलार पीहू को न दे सकती जितना उसे नीरा से मिल रहा था!

उधर जब भी नीरा पीहू को लेकर गाँव जाती उसका दिल धक-धक करता कहीं ममता के आवेश में नैना पीहू के सामने राज़ न खोल दे!वह बहुत ही अनमने मन से पीहू को गाँव ले जाती!

नीरा तो खानदान की किसी शादी-ब्याह में भी जाने से कतराती यही सोचकर कि कहीं कोई रिश्तेदार पीहू के गोद लेने पर को टिप्पणी ना कर दे और पीहू के कानों में कोई ऐसी वैसी बात न पड़ जाऐ!

कभी कभी पीहू नीरा से पूछती” मेरी सब दोस्त कहती हैं तुम्हारी शक्ल तुम्हारी मम्मा से बिल्कुल भी नहीं मिलती,बताओ मेरी शक्ल किससे मिलती है”नीरा को पीहू के ऐसे अटपटे सवालों से बहुत डर लगता!

महेश जी ने शहर के सबसे अच्छे स्कूल में पीहू का दाखिला करवाया!

नीरा और महेश जी की प्रेरणा से पीहू पढ़ाई में अव्वल ही आती!महेश,शीला और नीरा की दुनिया तो जैसे पीहू में ही सिमट कर रह गई थी!

पीहू का सेलेक्शन मेडिकल में हो गया!

नैना के पिता ने नैना का आखिरी समय जानकर उसे उसी हस्पताल में दाखिल कर दिया जहां पीहू इंटर्नशिप कर रही थी!

अब आगे

 होश में आने पर पीहू का निर्विकार चेहरा देखकर उसके दोनों हाथ पकड़कर नीरा ने रो रोकर उससे कहा “बेटा मुझे माफ कर दे अपने स्वार्थ के कारण मैने तुझसे ये सब छुपाया!तुझे खोने का डर मेरी जान ले रहा था”

इससे पहले कि पीहू कुछ कहती ठाकुर रामपाल बदहवास से आऐ और बोले “नैना अब इस दुनिया में नहीं रही”सुनते ही महेश जी रोने लगे और कहा”मैं नैना की आख़री इच्छा पूरी नहीं कर सका वह मुझे कभी माफ नहीं करेगी,उसकी आत्मा पीहू के लिए भटकती रहेगी”

पीहू एकटक नैना के पार्थिव शरीर को देख रही थी ,उसे याद आ रहा था जब भी वह गाँव जाती कैसे प्यार भरी नज़रों से नैना उसे एकटक देखा करती थी !लौटकर उसने एकाध बार नीरा से कहा भी था कि उसे नैना का इस तरह देखना बड़ा अटपटा लगता है पर नीरा उसकी बात को घुमाकर टाॅपिक ही बदल देती!

पीहू सोच रही थी एक वो मां थी जिसने एक दुधमुंही बच्ची,जो उसका ही अंश थी से अपना पीछा छुड़ा लिया सिर्फ इसलिए कि लोग क्या कहेंगे और एक ये मां है जो किसी दूसरे के बच्चे के लिए ही जी रही है!

ठाकुर रामपाल जी ने कहा कि नैना अपने जीते जी तो पीहू के मुँह से “मां” शब्द सुनने को तरसती रही वे चाहते हैं कि अब जब पीहू सबकुछ जान चुकी है तो नैना की चिता को मुखाग्नि वही दे ताकि उनकी बेटी की आत्मा यूं ही भटकती ना रहे उसे शांति मिले!

नैना के क्रियाकर्म के बाद रामपाल जी के मन में स्वार्थ का सर्प सर उठाने लगा ,नैना के मरने के बाद बुढापे में अब कौन उनकी देखभाल करेगा ये सोचकर उन्होंने महेश जी और नीरा से कह दिया कि पीहू उनका खून है, उनकी बेटी का अंश है और उनके खानदान का चिराग भी उनकी पूरी जमीन जायदाद की एकमात्र हकदार है ,वे उसे अपने साथ ले जाना चाहेंगे! 

सुनकर नीरा की तो जैसे जान निकल गई उसका चेहरा सफेद पड़ गया!वह गिरने ही वाली थी कि उसे बाहों में संभाल कर पीहू जो चुपचाप खड़ी सबकुछ देख सुन रही थी एकाएक बिफर कर ठाकुर रामपाल जी की तरफ उंगली उठाकर चिल्लाई “खबरदार जो मुझ पर हक जताने की कोशिश भी की!तब ये खून का रिश्ता कहां था जब आपने मुझे समाज और बिरादरी के डर से छोड़ा था,आपकी बेटी की चिता के साथ मेरा रिश्ता भी खत्म हुआ!रखिये अपने महल, जमीन जायदाद अपने पास! मैं अपने छोटे से घर में अपनी मां और नाना-नानी के साथ खुश हूं!

चलो मम्मा घर चलें,इस मतलबी और दिखावे के माहौल में मेरा दम घुट रहा है”

नीरा की आंखों से खुशी के आँसू बह रहे थे ,उसे जैसे जीवनदान मिल गया था!पीहू नीरा को सहारा देकर बाहर ले गई! उसने ठाकुर रामपाल की तरफ पलट कर देखा भी नहीं!

खून का रिश्ता न होते हुए भी उनके प्यार की बॉन्डिंग इतनी मजबूत थी कि ठाकुर रामपाल की दलीलें धरी की धरी रह गई! 

कुमुद मोहन 

स्वरचित-मौलिक

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