पूनम और विवेक, मध्यम वर्गीय मध्यम आय वाले पति पत्नी। एक बेटा गौरव और बिटिया सुरभि। एक खुशहाल परिवार। विवेक का सपना था कि वह भविष्य में गौरव को उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजे और सुरभि को भी खूब पढ़ा लिखा कर
आर्थिक रूप से मजबूत बनाए और फिर दोनों की शादी भी अच्छे परिवारों में करवानी थी। विवेक की नौकरी एक प्राइवेट कंपनी में थी। वहां से वापस आने के बाद वह अपनी पत्नी के साथ मिलकर छोटे बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाता था, ताकि वह अपने बच्चों के लिए कुछ पैसा इकट्ठा कर सके।
उसके दोनों बच्चे पढ़ाई में बहुत अच्छे थे।
गौरव ने सी ए की पढ़ाई पूरी कर चुका था और सुरभि बीटेक कर रही थी। गौरव अब कनाडा जाना चाहता था। विवेक ने अपना घर गिरवी रखकर पैसों का इंतजाम किया और गौरव को कनाडा भेज दिया। वहां जाकर गौरव ने वहां का सीए बनने के लिए पढ़ाई की और सफल हुआ। उसे कनाडा के बैंक में नौकरी मिल गई। गौरव को कनाडा इतना भा गया कि वह वापस आना ही नहीं चाहता था।
जब भी पूनम और विवेक उसे फोन करते तो वह “मैं बिजी हूं”कह कर फोन रख देता था।
विवेक के मना करने के बावजूद एक दिन पूनम ने गौरव को फोन किया और उससे कहा”तेरी पढ़ाई के लिए हमने घर को गिरवी रखा था, अब तेरी नौकरी लग गई है, हमें पैसे भेजे ताकि हम घर छुड़वा सकें।”
गौरव-“मेरी पढ़ाई के लिए आपने घर गिरवी रखा था, यह तो माता-पिता का कर्तव्य होता है। इसमें आपने क्या अनोखा काम किया। हर मां-बाप अपने बच्चों के लिए करते हैं। आपका कर्जा है आप खुद देखिए, इसमें मैं क्या कर सकता हूं।”
पूनम को इस बात से बहुत गहरा धक्का लगा और वह बीमार रहने लगी। गौरव इतना कैसे बदल सकता है। उसे तो हमारी जरा भी परवाह नहीं, इतना स्वार्थी कैसे हो गया, रात दिन यही सोचती रहती थी। सुरभि अब m.tech
भी कर चुकी थी और उसकी बहुत अच्छी जॉब लग गई थी। उसने लोन लेकर घर भी छुड़वा लिया था। पूनम और विवेक उसके विवाह के लिए अच्छा परिवार ढूंढ रहे थे। ईश्वर की कृपा से एक बहुत अच्छा लड़का मिल गया और हंसी-खुशी सुरभि का विवाह , देव से संपन्न हुआ। देव और सुरभि दोनों पूनम
और विवेक का बहुत ध्यान रखते थे और उनके पास आते जाते रहते थे, ऐसे दिखने को तो पूनम ठीक लगती थी लेकिन गौरव का व्यवहार उसे अंदर ही अंदर दीमक की तरह खोखला कर चुका था। सुरभि के विवाह के कुछ समय बाद इसका एक दिन हार्ट फेल हो गया और वह इस संसार को छोड़कर चली गई।
विवेक ने गौरव को फोन करके दुख भरी खबर सुनाई और कहा-” एक बार आकर अपनी मां को देख ले।”
गौरव-“पापा, छुट्टी नहीं मिलेगी, बहुत मुश्किल है।”
पूनम का अंतिम संस्कार कर दिया गया और गौरव नहीं आया।
एक दिन सुरभि अपने पापा से मिलने आई हुई थी तब उसने अपने पापा को गौरव के फोन की बात बताई कि उसने मम्मी से क्या-क्या कहा था। विवेक हैरान रह गया, उसे तो इस बारे में पता ही नहीं था। उसे गौरव पर बहुत गुस्सा आया। उसने गौरव को कॉल करके कहा-“तुमने ही अपनी मां को मारा है।
तुम इतने स्वार्थी कैसे हो सकते हो। अब तुमने मेरे मरने पर मुझे अग्नि देने का “हक खो दिया है”वहीं रहो, यहां आने की जरूरत नहीं।”
गौरव -“आप और मम्मी हमेशा मुझ पर एहसान जताते हो, पढ़ाई लिखाई तो हर मां-बाप अपने बच्चों को करवाते हैं। वैसे भी मैं वहां आना नहीं चाहता। मैंने यहां शादी भी कर ली है और वैसे भी मरने के बाद अग्नि किसने दी, यह किसे पता चलता है।”
फोन रखने के बाद विवेक रो पड़ा और उसने कहा-“मेरी नासमझ औलाद गौरव, मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि तेरे कर्म तुझ तक घूम कर कभी ना आएं, क्योंकि माता-पिता के लिए संतान की ऐसी बातें सहन करना कितना मुश्किल होता है यह मुझसे बेहतर कौन जानेगा और तू तो बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर पाएगा।”
थोड़े समय बाद अपना घर सुरभि को देकर विवेक भी चल बसा और सुरभि ने गौरव को फोन किया, पापा चले गए। गौरव नहीं आया।
स्वरचित, अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली
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